यह दिल्ली दर्प दमन है – अशोक वाजपेयी

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प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, छत्तीसगढ़ का दो दिवसीय आयोजन

राष्ट्रीय आलोचना संगोष्ठी-एक रपट

श्रीभगवान सिंह एवं कृष्ण मोहन को प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान

DSC06316रायपुर। महानगरों में रहने वाले ज्ञात और प्रसिद्ध आलोचकों की जगह छोटे कस्बों के योग्य आलोचकों को प्रथम प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान दिया जाना बौद्धिक रूप से बहुकेन्द्रीयता की ओर लौटने की प्रवृत्ति है जो साहित्य का शुभ संकेत है। वास्तव में यह दिल्ली दर्प दमन है। यह इस प्रवृत्ति को ख़ारिज़ करता है कि सफल होने के लिए महानगरों का निवासी होना ज़रूरी है। उक्त विचार हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक, कवि श्री अशोक वाजपेयी ने 10 एवं 11 जुलाई 2009 को आयोजित दो दिवसीय आलोचना संगोष्ठी एवं प्रथम प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान समारोह के दौरान व्यक्त किए।

संस्थान की ओर से प्रत्येक वर्ष प्रमोद वर्मा की स्मृति में दिये जाने वाले राष्ट्रीय आलोचना सम्मान का शुभारंभ करते हुए वर्ष 2009 के लिए भागलपुर के आलोचक श्री भगवान सिंह तथा वाराणसी के श्री कृष्ण मोहन को सम्मानित किया गया। उक्त सम्मान में पुरस्कृत आलोचक द्वय को क्रमशः 21 हज़ार एवं 11 हज़ार रूपये देने के साथ ही प्रमोद वर्मा समग्र, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिह्न, शॉल एवं श्रीफल भेंट कर अलंकृत किया गया। उक्त सम्मान के निर्णायकों में थे श्री केदारनाथ सिंह, डॉ. धनंजय वर्मा, डॉ. विजय बहादुर सिंह, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, श्री विश्वरंजन एवं संयोजक जयप्रकाश मानस ।

पुरस्कारों की विश्वसनीयता फिर स्थापित – श्रीभगवान सिंह

सम्मानित आलोचक श्री भगवान सिंह ने कहा कि उन्होंने कभी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए नहीं लिखा था और न ही वे पुरस्कारों में विश्वास रखते हैं, लेकिन वे छत्तीसगढ़ के आभारी हैं कि यहाँ पर उनके द्वारा जिस विचार को लेकर लिखा जा रहा है उसे पुरस्कार दिया गया। पुरस्कार की विश्वसनीयता एक बार फिर स्थापित हुई। दिल्ली दर्प दमन जिसकी आवश्यकता संगोष्ठी में अशोक वाजपेयी द्वारा जताई गई, वह रायपुर में हुआ है।

दो दिवसीय आलोचना संगोष्ठी का उद्घाटन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने किया। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि सुप्रसिद्ध कवि, नाट्य लेखक,शिक्षाविद् और साहित्य समीक्षक स्वर्गीय डॉ. प्रमोद वर्मा की महत्वपूर्ण रचनाओं के संकलन प्रमोद वर्मा साहित्य समग्र जो कि राजकमल प्रकाशन से चार खण्डों में प्रकाशित हुआ है के विमोचन एवं तीन सत्रों में आलोचना पर विचार-विमर्श करने के साथ ही छत्तीसगढ़ का नाम एक बार पुन: साहित्य के आकाश पर छा गया है। देश के कई राज्यों के मूर्धन्य साहित्यकारों के बीच सिर्फ़ गजानंद माधव मुक्तिबोध और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ही नहीं, बल्कि साहित्य मनीषी स्वर्गीय राहुल सांकृत्यायन की कालजयी किताबों के साथ प्रमोद वर्मा की आलोचना दृष्टि को भी याद किया जायेगा।

साहित्य रसिक मुख्यमंत्री ने समारोह का शुभारंभ करते हुए कहा कि कालजयी कवियों और साहित्यकारों के रूप में सूर्य और चंद्रमा पैदा करने की ताक़त केवल हिन्दुस्तान की माटी में ही है, जिसने सूरदास जैसे साहित्य के सूर्य और तुलसीदास जैसे चंद्रमा को जन्म दिया। छत्तीसगढ़ सहित देश के कुछ राज्यों में व्याप्त नक्सल हिंसा और आतंक की तीखी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि व्यक्ति और समाज की आज़ादी का हनन करनेवाले किसी भी हिंसक विचार के लिए साहित्य में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उन्होंने इस अवसर पर प्रमोद वर्मा की महत्वपूर्ण रचनाओं के संकलन साहित्य समग्र तथा समारोह की स्मारिका का विमोचन करते हुए उनकी साहित्यिक जीवन यात्रा और रचनाओं पर केन्द्रित व संस्थान के कार्यकारी निदेशक श्री जयप्रकाश मानस द्वारा निर्मित (www.pramodverma.com) नामक पोर्टल का उद्घाटन भी किया। माओवादी हिंसक गतिविधियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी वाद अथवा विचार को मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन का अधिकार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि प्रमोद वर्मा जैसे वरिष्ठ दिवंगत साहित्यकार को श्रद्धांजलि देने का इससे अच्छा माध्यम और कुछ नहीं हो सकता। कार्यक्रम में पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल, आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास मंत्री श्री केदार कश्यप और पूर्व मंत्री श्री सत्यनारायण शर्मा के सहित छत्तीसगढ़ और देश के विभिन्न राज्यों के अनेक साहित्यकार और स्थानीय प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।

समारोह तीन सत्रों में विभाजित था। प्रथम सत्र “समकालीन आलोचना का हाव भाव” में अध्यक्षीय दीर्घा से बोलते हुए श्री नदंकिशोर आचार्य ने कहा कि रचना को समग्रता में देखना आलोचना है, लेकिन हिन्दी काव्य में साहित्य चिंतन की रूचि समाप्त हो गई है। उन्होंने कहा कि आलोचना आत्महीनता की शिकार हो गई है। शिव कुमार मिश्र ने कहा कि विदेशियों को उद्धृत करना बुरा नहीं है, उन्होंने मेहनत की है और हिन्दी के लोगों को भी वैश्विक सापेक्ष में साहित्य को देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिन्दी आलोचना का कोई चरित्र नहीं है। डॉ. श्यामसुंदर दुबे ने कहा कि आलोचना में न्यायिक और सम-सामयिक संतुलन नहीं है। ये कबीर से लेकर नागार्जुन तक को एक खाने में रखते हैं। आलोचनात्मक हाव-भाव में या तो प्रशंसा कर रहे होते हैं या फिर विरोध। उक्त सत्र में संवाद में हिस्सा लेते हुए डॉ. कल्याणी वर्मा, डॉ. वंदना केंगरानी, डॉ. उर्मिला शुक्ल, डॉ. श्री सुशील त्रिवेदी और श्री गिरीश पंकज ने अपने विचार रखे।

 

दूसरा सत्र आलोचना का प्रजातंत्र विषय पर केन्द्रित था जिसमें अध्यक्षीय आसंदी से बोलते हुए श्री खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आलोचना को यथार्थ की धरती पर खड़ा किया। उन्होंने कहा कि आजकल आलोचना में असहिष्णुता का भाव बढ़ गया है। डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिाय ने कहा कि प्रजातंत्र का अर्थ वरण की स्वतंत्रता से है। आलोचक को विषय चुनने तथा उस पर दृष्टिकोण रखने की आशावादी होनी चाहिए। वरिष्ठ कवि श्री चंद्रकांत देवताले ने बहुत ही विचारोत्तेजक वक्तव्य देते हुए कहा कि रचनाकारों को ज़्यादा आलोचकों की चिंता नहीं करनी चाहिए। हमारा साहित्य समीक्षक का मोहताज़ नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी विचारधारा को कोई चुनौती नहीं दे सकता। कवि का कोई देश नहीं होता उसी तरह विचारधारा का कोई देश नहीं होता, भूख का कोई देश नहीं होता। उन्होंने ज़ोर देकर इस बात की ओर इशारा किया कि रचना की विचारधारा, आलोचक की विचारधारा की जो बातें की जाती हैं, वह मिथ्या धंधा है `अकादमिक´ धंधा है। मुक्तिबोध को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आज आलोचक और रचनाकार को अपनी पॉलिटिक्स साफ़ करनी चाहिए। हमें अपनी जातीय, देशज संस्कृति की रक्षा करते हुए वैश्विक होना है। उक्त सत्र में संवाद में भाग लेते हुए श्री एकांत श्रीवास्तव, सुश्री रंजना अरगड़े, सुश्री मुक्ता सिंह, श्री कृष्ण मोहन, श्री अरूण शीतांश और श्री बसंत त्रिापाठी ने भी अपने विचार रखे।

 

तृतीय सत्र आलोचना के परिसर में प्रमोद वर्मापर केन्द्रित था। सत्र अध्यक्ष श्री अशोक वाजपेयी ने कहा कि एक आलोचक अपने दूसरे मित्र रचनाकारों के निर्माण में सहचर की भूमिका निबाह सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण प्रमोद वर्मा थे। वर्मा ने अपनी आलोचनाओं से गजानंद माधव मुक्तिबोध तथा हरिशंकर परसाई के लेखन को प्रोत्साहित किया है और उनके विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। अध्यक्ष मंडल की आसंदी से श्री कमला प्रसाद ने बोलते हुए कहा कि आलोचना के क्षेत्र में श्री प्रमोद वर्मा का अपना स्थान है। वे लेखक की स्वतंत्रता के हिमायती थे। उन्होंने कहा कि प्रमोद वर्मा समाजवाद में लोकतंत्र चाहते थे। श्री रमाकांत श्रीवास्तव ने कहा कि प्रमोद वर्मा किसी विचारधारा के प्रति कट्टर नहीं हुए, क्योंकि विचारधारा की कट्टरता अहितकर होती है। उन्होंने कहा कि जब मार्क्सवाद कट्टर होता है तो नक्सलवाद और जब इस्लाम कट्टर होता है तो तालिबान के रूप में सामने आता है। श्री देवेन्द्र दीपक ने कहा कि मुक्तिबोध के शब्दों में जो है उससे बेहतर चाहिए दुनिया के लिए एक मेहत्तर चाहिए कुछ इन्हीं पंक्तियों को ध्येय बनाकर श्री प्रमोद वर्मा जीवन भर समाज की गंदगी दूर करने का प्रयास अपने लेखन से करते रहे। संवाद सत्र में श्री प्रभात त्रिपाठी, डॉ.बलदेव, श्री रवि श्रीवास्तव, श्री विनोद साव, श्री नंद किशोर तिवारी, डॉ. बृजबाला सिंह, आदि ने भी अपने विचार रखे।

 

कल़मकारों की ताक़त असीम – राज्यपाल

 

अलंकरण समारोह में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री ई.एस.एल. नरसिम्हन ने कहा कि कलम की ताक़त असीमित होती है। कलाकारों, साहित्यकारों को अपनी इस ताक़त का इस्तेमाल सकारात्मक कार्यों में करना चाहिए। उन्होंने कहा कि साहित्य की ताक़त से समाज व उसका परिवेश बदला जा सकता है।  साहित्यकार वर्तमान समाज को अपने नवीनतम विचारों से अवगत कराकर युवा वर्ग को दिशा प्रदान करें। साहित्य केवल पठन-पाठन तक सीमित नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के परिवेश में सशक्त एवं मार्गदर्शी साहित्य की सख़्त ज़रूरत है, जिसके प्रकाश में भावी पीढ़ी अपनी परंपरा, संस्कृति, नैतिक मूल्यों से भली-भांति परिचित हो सके और उन्हें सही राह मिल सके। श्री नरसिम्हन ने कहा कि विकास को केवल भौतिक अर्थों में नहीं बल्कि मानसिक विकास के साथ आंका जाना चाहिए और इसीलिए हमारे मनीषियों ने सांस्कृतिक प्रोत्साहन को विशेष बल दिया है। उन्होंने साहित्यकारों का आह्वान करते हुए कहा कि वे अपनी सशक्त लेखनी से आने वाले समय की चुनौतियों का सामना इसी तरह प्रतिबद्ध होकर करते रहें। राज्यपाल ने कहा कि साहित्यकार एवं सुरक्षा बल के अधिकारियों के साथ यह एक तरह का अनोखा तालमेल है और सुरक्षा कर्मचारियों का दायित्व भी समाज के हित में ही काम करना है। उन्होंने संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन को खासतौर पर बधाई दी और कहा कि उनका यह साहित्यिक कार्य समाज के सामने संदेश प्रस्तुत करता है कि पुलिस संस्थान समाज के हित में काम करने वाला एक महान् और सृजनात्मक बल है तथा इसी मार्गदर्शन को सुरक्षा बल के अधिकारियों को अपनाना चाहिए। उन्होंने आलोचक द्वय को प्रथम प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान से अलंकृत भी किया।

 

अशोक बाजपेयी ने कहा उन्हें छत्तीसगढ़ी होने का गर्व है और यह अच्छी बात है कि छत्तीसगढ़ ने हिन्दी साहित्य आलोचना के सम्मान का मान रखा है। वर्तमान पीढ़ी को साहित्य के प्राप्त अपने उत्तराधिकार के लिए सजग करने का दायित्व साहित्यकारों का है। उन्होंने कहा कि आलोचना केवल बौद्धिक ज़िम्मेदारी है। साहित्यकार की आलोचना से कोई सहमत हो या नहीं उसे हर हालत में अपनी बात रखने से पीछे नहीं हटना चाहिए। यह भी कहा कि साहित्य ही एक रणभूमि, रंगभूमि या रंगमंच है,जहाँ अभी तक मूल्य की राजनीति एवं लोकतंत्र बचा है। उन्होंने कहा कि आलोचना वह नैतिक कार्य है जो सत्य का यथार्थ चित्रण करती है।

 

संस्था के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन ने संस्थान की आगामी कार्य योजनाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए कहा कि संस्थान द्वारा भविष्य में महिला, आदिवासी, और दलित समाज के लेखकों के लिए विशेष तौर पर राष्ट्रीय लेखन शिविरों का आयोजन सहित राजधानी में हिन्दी भवन निर्माण का कार्य भी किया जायेगा।

 

नाट्य मंचन एवं राष्ट्रीय कविता पाठ

 

कार्यक्रम के पहले दिन श्री प्रमोद वर्मा की कविताओं पर आधारित कविताओं का नाट्य मंचन श्री कुंज बिहारी शर्मा के निर्देशन में प्रसिद्ध नाट्य संस्था रूपकद्वारा किया गया। इस अवसर पर काव्य गोष्ठी का आयोजन भी किया गया, जिसमें देश के नामी-गिरामी कवियों यथा-श्री नंदकिशोर आचार्य,श्री चंद्रकांत देवताले, श्री विनोद कुमार शुक्ल, श्री प्रभात त्रिपाठी, श्री एकांत श्रीवास्तव, श्री विश्वरंजन, डॉ. वंदना केंगरानी, श्री अशोक सिंघई, श्री शरद कोकास, श्री कमलेश्वर साहू, श्री अरूण शीतांश, डॉ. बलदेव एवं श्रीमती पुष्पा तिवारी ने अपनी कविताओं का काव्य पाठ किया। काव्य पाठ का संचालन श्री रवि श्रीवास्तव ने किया।

 

कार्यक्रम में राजकमल प्रकाशन दिल्ली के प्रमुख अशोक माहेश्वरी, डॉ. गंगा प्रसाद बरसैंया, डॉ. कल्याणी वर्मा, बसंत त्रिपाठी, राजेन्द्र मिश्र, कनक तिवारी, डॉ. बलदेव,राजुरकर राज, कैलाश आदमी, रमेश नैयर, डॉ. प्रेम दुबे, विनोद शंकर शुक्ल, सुभाष मिश्र,संतोष रंजन, श्री राम पटवा, अशोक सिंघई, मुमताज, एस. अहमद,  बी.एल पॉल, तपेश जैन एवं राज्य भर के प्रबुद्ध साहित्य रसिक गण उपस्थित थे। 

रपट- जयप्रकाश मानस

7 COMMENTS

  1. बहुत अच्छी रपट..बस एक कोण छूट गया, जिसपर भी प्रबुद्ध वर्गों का ध्यान जाना चाहिये. जैसा की रपट में भी वर्णित है, ”साहित्यप्रिय” डीजीपी इस कार्यक्रम के माई-बाप थे. और वे आयोजनों की अपनी थकान मिटा भी नहीं पाये थे की प्रदेश के नांदगांव जिले के मदनवाडा में नक्सली हमला हो गया.प्रदेश को एक बहादुर एसपी समेत तीस जवानों से भी हाथ धोना पड़ा. तो इसके बाद यह बहस जोर पकड़ने लगी की क्या सार्वाधिक आतंकग्रस्त इलाके के पुलिस कप्तान को, जिसपर तलवार भांजने की जिम्मेदारी है वो क्या नीरो की तरह वंसी बजाने में व्यस्त रहे? इस प्रतिक्रिया में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुचा गया है केवल रपट में छूट गए एक कोण की तरफ इशारा भर किया गया है.छत्तीसगढ़ में इस विषय पर काफी विचार-विमर्श किया गया. अगर प्रवक्ता पर भी इस मुद्दे पर बहस हो तो बेहतर.

  2. सुन्दर् और् सार्थक् रिपॊर्त्

    Dr.Puneet Bisaria
    Senior Lecturer, Hindi, Nehru P.G. College, Lalitpur U.P. 284403 India
    Mob. +919450037871

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