महापुरुषों को अपमानित करने वाले ज़रा अपनी परिवारिक व संस्कारिक पृष्ठभूमि भी देखें

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तनवीर जाफ़री
गत 27 मई को जब कृतज्ञ राष्ट्र आधुनिक भारत के निर्माता व देश के यशस्वी प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्य तिथि मना रहा था इससे ठीक दो दिन पूर्व मध्य प्रदेश के सतना शहर में कलेक्ट्रेट कार्यालय के बिल्कुल क़रीब धवारी चौराहे पर पंडित नेहरू की प्रतिमा पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा लाठी डंडे व पत्थर बरसाये गये और प्रतिमा को खण्डित करने प्रयास किया गया। देश के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर इसे आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ले जाने तक में पंडित नेहरू की राजनैतिक सूझ बूझ व उनकी दूरदर्शिता का क़ायल है। पंडित नेहरू के विषय में देश के महान क्रांतिकारी भगतसिंह ने कहा था कि -‘मैं देश के भविष्य के लिए गांधी, लाला लाजपत राय और सुभाष बोस वग़ैरह सब को ख़ारिज करता हूं। केवल जवाहरलाल वैज्ञानिक मानववादी होने के कारण देश का सही नेतृत्व कर सकते हैं। नौजवानों को चाहिए नेहरू के पीछे चलकर देश की तक़दीर गढ़ें।’ परन्तु चतुर चालाक नेहरू विरोधी भगत सिंह के इस कथन को याद करने के बजाये कभी पंडित नेहरू व भगत सिंह के मध्य तो कभी पंडित नेहरू व सरदार पटेल के मध्य नये नये मतभेदों की कथायें गढ़ते रहते हैं। नेहरू ही थे जिन्होंने देश को योजना आयोग, भाषावादी प्रांत,भाखड़ा नंगल डैम, आणविक शक्ति आयोग, अनेक सार्वजनिक उपक्रम, तथा भिलाई इस्पात संयंत्र आदि के अतिरिक्त और भी बहुत सारे उपक्रम,संस्थान,संस्थायें योजनायें देकर देश को प्रगति पर लाने अपना बेशक़ीमती योगदान दिया।
भारत से लेकर विदेशों तक में इसी विचारधारा के लोगों द्वारा न केवल पंडित नेहरू बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व संविधान निर्माता बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की प्रतिमाओं पर भी अनेक स्थान पर दर्जनों बार हमले किये जा चुके हैं और उन्हें खंडित भी किया जा चुका है। कहीं इनकी प्रतिमाओं पर पेन्ट लगाया गया तो कहीं स्याही फेंक कर अपनी भड़ास निकाली गयी। इसी वर्ष 14 फ़रवरी को बिहार राज्य के पूर्वी चंपारण ज़िले के मोतिहारी शहर के मध्य स्थित गांधी स्मारक एवं संग्रहालय के समक्ष स्थित चरख़ा पार्क में स्थापित महात्मा गांधी की आदम क़द प्रतिमा को कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा तोड़ दिया गया । इस चरख़ा पार्क का निर्माण मोतिहारी के ऐतिहासिक गांधी स्मारक के सामने 2017 में किया गया था। यह चंपारण का वही ऐतिहासिक स्थल है जो गाँधी की कर्मभूमि व सत्याग्रह आंदोलन की प्रयोग स्थली के रूप में विश्व विख्यात है। कितना दुखद है कि जिस चंपारण से महात्मा गांधी ने अपना सत्याग्रह शुरू किया था,ठीक उसी जगह पर उनकी प्रतिमा को तोड़ कर फेंक दिया गया ? उस प्रतिमा को जिसे बापू के सत्याग्रह आंदोलन की स्मृति में लगाया गया था ?
गाँधी से नफ़रत का जो सिलसिला उनकी हत्या से शुरू हुआ था वह ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। गोडसे को गाँधी उपलब्ध हो गये थे इसलिये उसने उनकी हत्या कर दी। परन्तु आज जिन ‘गोडसेवादियों ‘ को गांधी नहीं मिल पाते वे या तो गांधी का पुतला बना कर उसी पर गोलियां बरसाकर अपने ‘संस्कारों ‘ पर फूल चढ़ाते हैं या इसी तरह प्रतिमाओं को खंडित कर या इन्हें अन्य तरीक़ों से अपमानित करने का प्रयास कर अपने दिल की भड़ास निकालते रहते हैं। सवाल यह है कि क्या इस तरह की हरकतों से महात्मा गांधी के शांति,सत्य व अहिंसा तथा साम्प्रदायिक सद्भावना के विचारों को कभी समाप्त किया जा सकता है? इतिहास तो यही बताता है कि गांधी लोगों के दिलों पर जितना अपने जीवनकाल में राज नहीं करते थे,हत्या बाद उनका व्यक्तित्व उससे कहीं ज़्यादा प्रभावी हो गया। गाँधी व नेहरू की प्रतिमाओं की ही तरह बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमाओं व मूर्तियों पर जब जब आक्रमण किया जाता रहा है तब तब उनके विचारों को और भी बल मिलता है।
इन महापुरुषों की लोकप्रियता व स्वीकार्यता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि लोग भले ही अपने संस्कार व शिक्षा के चलते स्वयं को इन महापुरुषों को अपमानित करने के तरह तरह के प्रयासों से स्वयं को न रोक पाते हों। परन्तु इसी विचारधारा के ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग इन महापुरुषों के देश के प्रति किये गये योगदान की वजह से इनके विरुद्ध उतने आक्रामक नहीं हो पाते जितना कि इनके मातहत के छुटभैय्ये हो जाते हैं। बल्कि प्रायः इन ‘ज़िम्मेदारों ‘ को तो देश व दुनिया को दिखाने के लिये इनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण भी करना पड़ता है। यहाँ तक कि बुझे दिल से ही सही परन्तु इनका थोड़ा बहुत गुणगान भी करना पड़ता है।
गाँधी,नेहरू और अंबेडकर अलावा भी हमारे देश में तमिलनाडु के वेल्लुर में समाज सुधारक पेरियार की मूर्ति तोड़ी जा चुकी। बंगाल के बीरभूम में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति तोड़ी गयी , त्रिपुरा में लेनिनकी मूर्ति ध्वस्त की गयी। और भी अनेक महापुरुष की प्रतिमायें समय समय पर असामाजिक तत्वों के निशाने पर रही हैं। देश के लोगों के लिये आदर्श स्थापित करने वाले महापुरुष जो हमारे देश की धरोहर हैं,उन्हें अपमानित करने की कोशिश करने वाले लोगों को ऐसा करने से पहले कम से कम देश के प्रति स्वयं उनके अपने योगदान,अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि व संस्कारों पर भी ग़ौर करना चाहिये ? आख़िर उन्हें ऐसी शिक्षा व निम्नस्तरीय संस्कार कहाँ से हासिल होते हैं जो उनमें देश के महापुरुषों को अपमानित करने का साहस पैदा करते हैं ?

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