तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं को क्या न्याय मिलेगा ?

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डा. राधेश्याम द्विवेदी
अवैधानिक और महिलाओं के अधिकार का उल्लंघन:-मुस्लिम समाज में पति-पत्नी के बीच संबन्ध विच्छेद करने वाली परंपरा ‘तलाक-तलाक-तलाक’ को लेकर भले ही सुप्रीम कोर्ट संवैधानिकता को लेकर अध्ययन कर रहा हो, लेकिन देश की करीब 92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं इस मौखिक तलाक के खिलाफ है। केंद्र सरकार की धार्मिक समुदाय और सेक्स जनगणना की वैवाहिक स्थिति पर जारी रिपोर्ट भी चिंताजनक है, जिसमें 67 प्रतिशत महिलाएं तलाक के बाद अलग रहने का जिक्र किया गया है। हावड़ा की इशरत जहां, नैनीताल की शायरा बानो, जयपुर की आफरीन समेत कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही सुनवाई कर रहा है और मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को नोटिस जारी कर चुका है. कोर्ट ने केंद्र से भी जवाब दाखिल करने को कहा है.
ट्रिपल तलाक को अवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं के गौरवपूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए पश्चिम बंगाल के हावड़ा की इशरत जहां भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं. इशरत ने अपनी याचिका में कहा है कि उसके पति ने दुबई से ही फोन पर तलाक दे दिया. अपनी याचिका में इशरत ने कोर्ट में कहा है कि उसका निकाह 2001 में हुआ था और उसके बच्चे भी हैं जो उसके पति ने जबरन अपने पास रख लिए हैं. याचिका में बच्चों को वापस दिलाने और उसे पुलिस सुरक्षा दिलाने की मांग की गई है. इशरत ने कहा है कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है. याचिका में कहा गया है कि ट्रिपल तलाक गैरकानूनी है और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है. मुस्लिम बुद्धिजीवी भी इसे गलत करार दे रहे है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यी बैंच ने तीन बार तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी करके केंद्र सरकार और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से फिर इस मामले में उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। हालांकि उन्होंने संकेत दिये हैं कि बिना तलाक लिए मुस्लिम समाज में कई-कई शादियों के मामले की भी अदालत जांच करके किसी ठोस निर्णय लेगा।
निम्नलिखित रूपों में ही तलाक जायज:- सीजेआइ ने देश में मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम-1939 के अनुसार मुस्लिम महिला(पत्नी) को कई आधारों पर तलाक पाने का अधिकार दिया गया है, जिसमें पति द्वारा तीन साल से अपने वैवाहिक दायित्वों का निर्वाह न करना, पति द्वारा क्रूरता का व्यवहार करना या चार साल से गायब रहना अथवा सात साल से ज्यादा जेल में रहने के अलावा दो साल तक भरण-पोषण न करना जैसे कई कारण शामिल हैं। अदालत भी मानती है कि मुस्लिम समुदाय के विवाह से संबंधित प्रचलित मुस्लिम कानून ही लागू होते है। जहां तक उनके तलाक का संबंध है, मुस्लिम पत्नी को तलाक के बहुत सीमित अधिकार प्राप्त हैं। अलिखित और पारंपरिक कानूनों में निम्नलिखित रूपों में तलाक के बहुत सीमित अधिकार प्राप्त हैं।
मौखिक तलाक के खिलाफ महिलाएं:- पिछले दिनों एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में देश की करीब 92 फीसदी महिलाओं ने मौखिक रूप से तीन बार तलाक बोलने से पति-पत्नी का रिश्ता खत्म होने के नियम एकतरफा करार दिया है, जिस पर प्रतिबंध लगाने की मांग तक की गई। है। यही नहीं मुस्लिम समुदाय में स्काइपी, ईमेल, मेसेज और वाट्सऐप के जरिये तीन बार तलाक बोलने की नई तकनीक ने महिलाओं की इन चिंताओं में इजाफा किया है। यह सर्वे मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक, शादी की उम्र, परिवार की आए, भरण-पोषण तथा घरेलू हिंसा जैसे पहलुओं के आधार किया गया है। इस अध्ययन में यह तथ्य भी सामने आए कि महिला शरिया अदालत में विचाराधीन तलाक के मामलों में 80 फीसदी मामले मौखिक तलाक वाले शामिल हैं।
पुरुषो से आगे महिलाएं:-केंद्र सरकार की धार्मिक समुदाय और सेक्स जनगणना-2011 पर नजर डाली जाए, तो देश में शादी के बाद तलाक लेने के बाद 48.97 लाख लोगों में से अकेले 67 फीसदी यानि 32.82 लाख महिलाएं हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में 35.35 लाख लोग शादी के बाद अलग रह रहे हैं, जबकि 16.62 लाख लोग तलाक ले चुके हैं। देश में 23.72 लाख महिलाएं शादी के बावजूद अपने पति से अलग रह रही हैं, तो वहीं 11.62 लाख पुरुष शादी के बाद अपनी पात्नियों से अलग रह रहे हैं। जनगणना रिपोर्ट में मुस्लिम समाज की स्थिति बेहत चिंताजनक बताई गई है। मसलन मुस्लिमों की 17.22 करोड़ की आबादी में 22 फीसदी (3.84 लाख) लोग शादी के बाद अलग-अलग रह रहे हैं। जबकि 15 फीसदी (2.69 लाख) लोगों ने तलाक लिया है।
बोर्ड की राय है :यह पत्नी का मर्डर होने से बचाता है:-तीन बार तलाक के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए. अगर इसे खत्म किया गया तो मर्द अपनी पत्नी से छुटकारा पाने के लिए उसे जलाकर मार सकता है या फिर उसका कत्ल कर सकता है। तीन बार तलाक के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर इसे खत्म किया गया तो मर्द अपनी पत्नी से छुटकारा पाने के लिए उसे जलाकर मार सकता है या फिर उसका कत्ल कर सकता है। बोर्ड ने कहा, ‘अगर कपल के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ तो फिर वह साथ ना रहने का फैसला कर लेंगे। ऐसे में वे अलग होने के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाएंगे तो उसमें काफी वक्त लग सकता है। ऐसी स्थिति में पति गैरकानूनी तरीके को अपना सकता है। उसमें कल्त करना, जिंदा जला देना जैसे आपराधिक तरीके शामिल हैं।’ ये बात बोर्ड ने शुक्रवार (2 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट में कही। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का आधार बनाकर तीन बार तलाक कहने के मुद्दे पर सुनवाई शुरू हुई थी। उसी बात को लेकर अब बोर्ड ने अपना जवाब दिया है। कई महिलाओं का कहना था कि पुरुष तलाक के जरिए उन्हें प्रताडि़त करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट फैसला नहीं ले सकता:-दो सितम्बर 2016 को मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने कहा कि तीन बार तलाक कहने की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट फैसला नहीं ले सकता। बोर्ड ने कहा, ‘पति को तीन बार तलाक कहने की इस्लाम में अनुमति है, क्योंकि वे निर्णय लेने की बेहतर स्थिति में होते हैं और जल्दबाजी में ऐसा नहीं करते। एक धर्म में अधिकारों की वैधता पर कोर्ट सवाल नहीं उठा सकता। कुरान के अनुसार तलाक से बचना चाहिए लेकिन जरुरत होने पर इसकी अनुमति है।’बोर्ड की तरफ से दलील दी गई कि तलाक की कानूनी प्रक्रिया अपनाने से महिला की दूसरी शादी होने में भी परेशानी आ सकती है। बोर्ड ने कहा कि पति महिला को कोर्ट में गलत चरित्र वाली बता सकता है। बोर्ड की ओर से दिए गए एफिडेविट में कहा गया कि यह एक मिथक है कि तलाक के मामले में मुस्लिम पुरुषों को एकतरफा ताकत मिली होती है। साथ ही इस्लाम जब बहुविवाह प्रथा की अनुमति देता है तो यह उसको प्रोत्साहित नहीं करता। इस मामले में चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बैंच ने सुनवाई की। इस मामले में कई महिलाओं ने याचिका दायर की है। इशरत जहां को फोन पर तलाक दे दिया गया था।
‘धार्मिक मामलों में दखल नहीं दे सकती सुप्रीम कोर्ट:-अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक को जायज ठहराया है. एआईएमपीएलबी ने तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. लॉ बोर्ड ने हलफनामे में कहा, “सामाजिक सुधार के नाम पर पर्सनल लॉ को बदला नहीं जा सकता.”लॉ बोर्ड ने कहा, “पर्सनल लॉ कोई कानून नहीं है. यह धर्म से जुड़ा सांस्कृतिक मामला है. ऐसे में कोर्ट तलाक की वैधता तय नहीं कर सकता.” हलफनामे में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक को चुनौती देने को असंवैधानिक करार दिया है. पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, “पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसा करना संविधान के खिलाफ होगा.”लॉ बोर्ड ने कोर्ट से कहा है कि धार्मिक अधिकार पर अदालत फैसला नहीं दे सकता. आपको बता दें कि तीन तलाक के मुद्दे पर अलग-अलग चार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. मार्च महीने में शायरा बानो नाम की महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी.
कोर्ट हद तय करेगा:-चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर सुनवाई के दौरान कह चुके हैं कि यह कोर्ट यह तय करेगा कि अदालत किस हद तक मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल दे सकती है और क्या उसके कुछ प्रावधानों से नागरिकों को संविधान द्वारा मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है. कोर्ट ने केंद्र समेत इस मामले में सभी पक्षों को जवाब दाखिल करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही संकेत दिया है कि अगर जरूरी लगा तो मामले को बड़ी बेंच को भेजा जा सकता है.

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