
17वीं लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं । इस समय एक सुखद अनुभव यह हो रहा है कि 2014 के चुनावों की भांति इस बार भी जातिवाद चुनावों पर बहुत अधिक हावी नहीं है । यह देश के लिए आवश्यक भी है , क्योंकि देश का संविधान ही यह कहता है कि देश के नागरिकों के मध्य जाति ,संप्रदाय व लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा । जब हमारे संविधान की मूल भावना ही ऐसी है तो फिर देश के चुनावों के समय ही जातिवाद , लिंग ,संप्रदाय आदि को हावी क्यों होने दिया जाए ? – देश की राजनीति उन लोगों को सौंपी जानी चाहिए जो जाति , संप्रदाय और लिंग में विश्वास नहीं रखते हैं और सर्व समाज की उन्नति में ही अपनी उन्नति अनुभव करते हैं । ऐसे राजनीतिक दल जो जाति ,संप्रदाय और लिंग के आधार पर वोट मांगते हैं , उनको जनता अब चलता कर दे और राजनीति से ही उनका सफाया कर दे तो यह वास्तव में बहुत बड़ी बात होगी। 2014 के चुनावों में हमने जनता की ओर से ऐसा होते हुए देखा भी है ,जब जनता ने जाति ,संप्रदाय ,क्षेत्र ,प्रांत , भाषा आदि के संकीर्ण विचारों से ऊपर उठकर अपना मतदान किया था । अभी सपा ,बसपा और कई ऐसे राजनीतिक दलों के नेता हैं जो किसी न किसी प्रकार से लोगों को अपनी ओर जाति ,संप्रदाय आदि के नाम पर जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं ,लेकिन जनता को चाहिए कि ऐसे लोगों से सावधान रहें और देश उन सुरक्षित हाथों में दे जो वास्तव में देश की सुरक्षा को अपने लिए सबसे पहले समझते हैं। जिनके लिए देश पहले है और दल बाद में है ।भारत में जातिवाद को अंग्रेजों ने हमारे भीतर पैदा किया और उन्होंने कहीं मराठा शक्ति को मराठा शक्ति के नाम से पुकारने में लाभ समझा , तो कहीं सिक्खों को सिक्ख , जाटो को जाट ,गुर्जरों को गुर्जर आदि आदि बिरादरियों के रूप में देखने का काम किया। उन्होंने इन लोगों को हिंदू शक्ति के रूप में कभी भी महिमामंडित नहीं किया। यही मुस्लिम समय में सुल्तान और बादशाह भी करते आ रहे थे । आज भी यदि हम इसी प्रकार जातीय आधार पर बांटकर देखे जाते रहे और हम राष्ट्रवाद के नाम पर एक स्थान पर नहीं आए तो देश को नीचा दिखाने वाली शक्तियां हम पर शासन करती रहेंगी और ऐसे लोग जो यहां रहकर पाकिस्तान के गीत गाते हैं या पाकिस्तान के इमरान को मोदी से अधिक वरीयता देते हैं – उन लोगों को इसका लाभ मिलता रहेगा।जो लोग हमसे सबूत मांगते हैं या देश की सुरक्षा व्यवस्था से खिलवाड़ करते हैं , ऐसे लोग राजनीति में सांप्रदायिकता और जातिवाद को हावी करके सत्ता हथियाने की कोशिश कर सकते हैं ,लेकिन देश की जनता को सावधान होकर अपना सही निर्णय लेना होगा ।अपने – अपने क्षेत्र से ऐसे- ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनकर न भेजना जनता का कर्तव्य है जो लोगों को जाति ,संप्रदाय, भाषा ,प्रांत आदि के नाम पर लड़ाता हो । इसके विपरीत ऐसे व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा जाना समय की आवश्यकता है ,जिसका चिंतन स्पष्ट हो , जो देश को वरीयता देता हो और जो देश के धर्म ,संस्कृति और इतिहास की अच्छी जानकारी रखता हो , देश के नागरिकों के मध्य प्रेम और सद्भाव को बढ़ाने का काम करने के लिए विख्यात रहा हो और जन समस्याओं के निराकरण में जो अधिक से अधिक रुचि रखता हो।देश के मतदाता को राजनीति के उस गंदे वायरस से अपनी रक्षा करनी चाहिए जो उन्हें जाति , संप्रदाय आदि में विभाजित करने का घिनौना काम करता आया है या कर रहा है । यह लोग राजनीतिक चिंतन के स्तर पर नपुंसक होते हैं , क्योंकि इनका चिंतन सर्वग्राही और सर्व लोकोपयोगी नहीं होता । इनकी संकीर्ण सोच इन को किसी क्षेत्र विशेष तक सोचने की ही अनुमति देती है। साथ ही यह लोग किसी जाति विशेष का सहारा लेकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर जाते हैं और देश के लोगों के लिए यह ना तो देश की किसी विधानसभा में जाकर कोई लाभ कर सकते हैं और ना ही देश की संसद में जाकर जनता की समस्याओं को उचित ढंग से उठा सकते हैं । यह केवल हाथ उठाने वाले प्यादे होते हैं । जो यहां से निकल करके विधानसभाओं में या देश की संसद में जाकर बैठ जाते हैं और जब उनके आका इन से किसी भी समय हाथ उठाने के लिए या शोर मचाने के लिए कहते हैं तो यह उस समय केवल हाथ उठाकर और शोर मचाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं । इनके पास देश को आगे बढ़ाने का कोई चिंतन नहीं होता ।देश के लिए कोई ऐसी योजनाएं नहीं होती जिससे देश विश्वगुरु के रूप में स्थापित हो और विश्व मे सम्मान पूर्ण स्थान प्राप्त करें।देश के संविधान निर्माताओं ने देश में लोकतंत्र की स्थापना इसीलिए की थी कि यहां प्रतिभासंपन्न जनप्रतिनिधि जनता के बीच से निकल प्रदेश के विधान मंडलों और संसद में जाकर बैठें । सोच थी कि देश के समाज को जोड़ने वाले ऐसे लोग देश के नेता बनें ,देश की जनता के प्रतिनिधि बनें , जिनका चिंतन इतना ऊंचा और पवित्र हो कि वे देश के लोगों को स्वाभाविक रूप से सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ाने वाले हों । उनका चरित्र अपने आप में एक संस्था का काम करने वाला हो । हमें अपने देश के संविधान निर्माताओं की इस पवित्र भावना का सम्मान करना सीखना होगा । उन्हीं के अनुसार चलते हुए जब हम अपने देश के जनप्रतिनिधियों का इसी आधार पर चयन करेंगे तो हमें पता चलेगा कि हम वास्तव में भारत में लोकतंत्र की स्थापना करने में सफल हो सके हैं। देश के पढ़े-लिखे मतदाता भी यदि देश के राजनीतिज्ञों के बरगलाने से जाति ,संप्रदाय ,भाषा ,प्रांत आदि के प्रवाह में बहकर जनप्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं तो समझ लेना कि वे बहुत बड़ा पाप करते हैं । जिस बुराई को इन पढ़े-लिखे मतदाताओं को अब तक देश से समाप्त कर देना चाहिए था , यदि उसी को चुन-चुन कर यह अपने लिए भेज रहे हैं तो समझिए कि इस बुराई के बनाए रखने में इनका सबसे बड़ा योगदान है । उससे नीचे जो कम पढ़े लिखे मतदाता हैं और शराब आदि में बिककर अपनी जाति ,संप्रदाय या भाषा या प्रांत के लोगों को ही वोट देना अपना धर्म समझते हैं – वह भी देश के लिए अच्छा कार्य नहीं कर रहे । जबकि उन से नीचे कुछ ऐसे मतदाता भी इस देश में है जो बेचारे यह जानते ही नहीं कि उनके वोट का क्या महत्व है ? – लेकिन उन पर वोट लाद दी गई है , उन्हें कभी कभी तो दो जून की रोटी लेकर या सौ – दो सौ रुपये देकर ही खरीद लिया जाता है , उनका किया हुआ ऐसा कार्य इसलिए पाप नहीं है कि वह नहीं जानते कि वे कर क्या रहे हैं ? देश के राजनीतिज्ञ इन लोगों को ऐसा ही बनाए रखना चाहते हैं , वह नहीं चाहते कि उनकी अशिक्षा, भुखमरी की और ऐसी निराशापूर्ण स्थिति समाप्त हो । देश के राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता चाहे अपनी किसी पार्टी विशेष के लिए वोट मांग रहे हो , लेकिन देश के पढ़े-लिखे मतदाताओं को अपने अनपढ़ ,अशिक्षित , हताश ,उदास व निराश मतदाता भाइयों को भी समझाना चाहिए कि उनकी वोट का मूल्य क्या है ? उन्हें अपना वोट कैसे प्रत्याशी को देना चाहिए ? इस प्रकार की चाक-चौबंद व्यवस्था और सुरक्षा होनी चाहिए कि हमारे देश का अनपढ़ व अशिक्षित मतदाता किसी भी स्थिति में इस बार शराब आदि में बिकने के लिए विवश न किया जाए ?- उसे समझा दिया जाए कि उसकी वोट भारत के भाग्य का निर्माण करेगी , इसलिए तुम भारत के भाग्य के निर्माता हो और भारत भाग्य निर्माता होने के कारण तुम्हारे वोट का बहुत अधिक मूल्य है। जब तक हमारे देश का पढ़ा लिखा मतदाता जाति ,संप्रदाय ,भाषा ,प्रांत आदि से प्रभावित होकर वोट देता रहेगा और जब तक उससे नीचे का मतदाता अपने वोट का सही मूल्यांकन करने में सफल नहीं होगा तब तक भारत में लोकतंत्र होकर भी लोकतंत्र नहीं हो सकेगा ।