बजते घुँघरू बैल के, मानो गाये गीत !
चप्पा चप्पा खिल उठे, पा हलधर की प्रीत !!
देता पानी खेत को, जागे सारी रात !
चुनकर कांटे बांटता, फूलों की सौगात !!
आंधी खेल बिगाड़ती, मौसम दे अभिशाप !
मेहनत से न भागता, सर्दी हो या ताप!!
बदल गया मौसम अहो, हारा-थका किसान !
सूखे -सूखे खेत है ,सूने बिन खलिहान !!
चूल्हा कैसे यूं जले, रही न कौड़ी पास !
रोते बच्चे देखकर, होता खूब उदास !!
ख़्वाबों में खिलते रहे, पीले सरसों खेत !
धरती बंजर हो गई, दिखे रेत ही रेत !!
दीपों की रंगीनियाँ, होली का अनुराग !
रोई आँखें देखकर, नहीं हमारे भाग !!
दुःख-दर्दों से है भरा, हलधर का संसार !
पर सच्चे दिल से करे, ये माटी से प्यार !!
— डॉo सत्यवान सौरभ