विविधा

शंकराचार्य के बयान के संदर्भ में…

-बीनू भटनागर-
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हिंदू धर्म सबसे पुराना धर्म है जिसको मानने वालों की विश्व में तीसरे स्थान पर है। हिन्दू धर्म में अनेक देवी देवताओं की पूजा करने की परम्परा है।हर क्षेत्र में कुछ स्थानीय देवी देवताओं की भी पूजा होती है, जिन्हें आम तौर पर मुख्य देवी देवताओं का रूप ही बता दिया जाता है। समय समय पर नये नाम से देवी देवताओं की पूजा का सिलसिला शुरू हो जाता है। एक समय संतोषी माता के व्रत और पूजा हर दूसरा व्यक्ति करने लगा था। हिंदुओं मे तो जीवित गुरुओं को भगवान का दर्जा देकर उनकी पूजा भी की जाने लगी है। राधास्वामी जो बुनियादी रूप से हिन्दू ही हैं अपने गुरु को ‘मालिक’ यानि भगवान ही कहते हैं। इनके अलावा अन्य बहुत से गुरु भगवान की तरह ही पूजे जाते हैं। हिन्दुओं में तो पीपल, बरगद, गाय, नाग, अस्त्र-शस्त्र और वाहन की भी पूजा होती है। किसी को भी पूजने की स्वतन्त्रता इसे दूसरे धर्मों से अलग बनाती है। हिन्दू गुरुद्वारे भी जाकर मत्था टेक लेते हैं और अजमेर मे दरगाह पर चादर भी चढ़ा देते हैं। पिछले कुछ दशकों में पूरे देश क्या विदेशों में भी साईं बाबा के भक्तो की संख्या कई गुना बढ़ी है।
दरअसल, पिछले 40-45 सालों से सांई बाबा के भक्तों की संख्या निरंतर बढ़ रही है, इसका कारण क्या हो सकता है ये कह पाना तो संभव नहीं है, पर भक्तों की संख्या बढ़ने से मंदिर की आमदनी भी कई गुना बढ़ी है। मंदिर में ख़ूब सोना चांदी और नक़द आने से अब आर्थिक दृष्टि से शिरडी मंदिर तिरुपति और दक्षिण के कुछ अन्य मन्दिरों के समक्ष खड़ा है। इतना अनुदान कौन देता है? क्यों देता है? या मंदिरों को इतना धन स्वीकार करना चाहिये, या नहीं इस पर विवाद हो सकता है। (इस विषय को इस लेख की परिधि से अलग रखना ज़रूरी है)। 4 दशक पहले जहां शिरडी में एक छोटा सा मन्दिर हुआ करता था, वहां अब एक भव्य मन्दिर बन चुका है। बाबा का सिंहासन और छतरी सोने की बन चुकी है। शिरडी में यात्रियों के लिये समस्त सुविधायें हैं। शिरडी गांव से शहर बन चुका है। बाबा जो पहले स्थानीय लोगों में जाने जाते थे, अब पूरे भारत क्या विश्व में पूजे जाने लगे हैं।शंकराचार्य जी का यह बयान कि हिंदुओं को साईं मंदिर में नहीं जाना चाहिये और उनकी पूजा नहीं करनी चाहिये, उनकी इसी खीज का परिचायक है।
पहले भी कुछ हिन्दू कट्टरवादी संगठनों ने साईं बाबा के विरोध में आवाज़ उठाई थीं, पर वो उनकी लोकप्रियता के सामने दब गईं। अब स्वरूपान्द जी का ये कहना कि वो अवतार नहीं थे सूफ़ी संत थे, इसलिये उनकी पूजा नहीं की जा सकती हास्यास्पद लगता है। अवतार कौन था, कौन नहीं, ये कोई सिद्ध नहीं कर सकता, ये बातें विश्वास और आस्था की हैं। हिन्दू जन्म से हिन्दू होता है और वह किसी शंकाराचार्य, या अन्य व्यक्ति की बात मानने के लिये प्रतिबद्ध नहीं होता।

साईं बाबा के बारे में जो भी जानकारी उपलब्ध है, उससे ये पता नहीं चलता कि जन्म से उनका धर्म क्या था। वो एक पुरानी मस्जिद में रहते थे जिसे उन्होंने द्वारकमाई नाम दिया था। उनके जीवन काल में वो आस-पास के गांवों के हिन्दू और मुसलमानों में बराबर रूप से लोकप्रिय थे। कालांतर में उनका मन्दिर बना और पूरे हिन्दू रीति रिवाजों के साथ उनकी पूजा अर्चना होने लगी, दूर-दूर से लोग दर्शन के लिये आने लगे। इस्लाम मुसलमानों को हिन्दू धर्म के विधि विधानों में भाग लेने की स्वतन्त्रता नहीं देता, ऐसा माना जाता है। इसलिये साईं मंदिर में मुसलमान नहीं आते है। साईं हिन्दू अवतार थे, या नहीं इसको कोई प्रमाणित नहीं कर सकता। यदि वो सूफ़ी थे तो हिन्दुओं ने उनकी पूजा अर्चना शुरू ही क्यों की? शुरू होने के बाद मंदिर क्यों बनवाया? अब जब विश्वभर में उनके करोड़ों भक्त है, तो उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का क्या अर्थ है! ऐसी बयानबाज़ी शंकराचार्य को शोभा नहीं देती।