19 नवंबर: पुरुष दिवस
इस बार की थीम ‘पुरुष स्वास्थ्य चैंपियन’
डॉ घनश्याम बादल
स्त्रियों के प्रति सहानुभूति जमाने का दस्तूर रहा है और स्वयं स्त्रियां भी अपने आप को अबला, निरीह त्रस्त और भी न जाने क्या-क्या कहकर प्रस्तुत करती रही हैं । स्त्रियों को महत्व देने के लिए दुनिया भर में कितने ही दिवस मनाए जाते हैं जिनमें महिला दिवस, मदर्स डे, बेटी दिवस, महिला सशक्तिकरण दिवस और भी न जाने कितने दिवस हैं। मगर अब वह ज़माना नहीं रहा जब महिलाएं खास तौर पर प्रगतिशील महिलाएं दबकर या त्रस्त होकर रहने को तैयार हों। दुनिया के कोने -कोने से आज पुरुषों पर भी अत्याचार एवं उनके अधिकारों के हनन के साथ-साथ उन्हें प्रताड़ित करने उन पर झूठे मुकदमे दर्ज कराने एवं झूठे मामलों में फंसाने गृह क्लेश में पीड़ित करने जैसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं । शायद इसी बात का ध्यान रखते हुए आज दुनिया में महिला दिवस की तरह पुरुष दिवस भी होता है और लोग इसे मनाते भी हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इसकी लोकप्रियता महिला दिवस जितनी नहीं है. तो आइए, जानते हैं पुरुष दिवस के बारे में ।
आज 19 नवंबर और आज के दिन को भारत में मुख्य रूप से पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी तथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि हर साल 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस भी मनाते हैं ।
पुरुष दिवस मनाने का लक्ष्य पुरुषों और बच्चों के स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और आदर्श पुरुषों के बारे में दुनिया को बताना है। वैसे जान लें कि पुरुष दिवस 1960 के दशक से ही मनाया जा रहा है । इस दिन पुरुषों की उपलब्धियों का उत्सव मनाया जाता है और साथ ही समाज, परिवार, विवाह और बच्चों की देखभाल में पुरुषों के सहयोग पर भी बात होती है। बाद में अमेरिका के मिसौर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थॉमस योस्टर की कोशिशों के बाद पहली बार 7 फरवरी 1992 को अमेरिका, कनाडा और यूरोप के कुछ देशों ने अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस का मनाया था, लेकिन साल 1995 से कई देशों ने फरवरी महीने में पुरुष दिवस मनाना बंद कर दिया। खास बात ये है कि कुछ साल पहले भारत में मौजूद ऑल इंडिया पुरुष कल्याण एसोशिएशन ने सरकार से एक खास मांग की और कहा कि वो महिला विकास मंत्रालय की तरह ही पुरुष विकास मंत्रालय भी बनाए, साथ ही राष्ट्रीय पुरुष आयोग का गठन हो, और लिंग समानता का मतलब समानता की तरह पेश करे।
इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस 2024 की थीम “पुरुष स्वास्थ्य चैंपियन” है जो लड़कों व पुरुषों के स्वास्थ्य में सुधार पर केंद्रित है। अतंरराष्ट्रीय पुरुष दिवस की एक आधिकारिक वेबसाइट भी है और फेसबुक पेज भी बना हुआ है. इनके जरिए डोनेशन ली जाती है । संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस दिन को मान्यता दी है ।
इतिहास की नजर :
पुरुष दिवस पुरुषों से जुड़ी समस्याओं पे चर्चा और विचार विमर्श हो सके इस लिए दुनिया भर में अंतरराष्ट्र पुरुष दिवस 1998 में त्रिनिदाद एंड टोबेगो में पहली बार मनाया गया और इसका श्रेय डॉ. जीरोम तिलकसिंह को जाता है उन्होंने इसे मनाने की पहल की और इसके लिए 19 नवंबर का दिन चुना। उनके इस प्रयास के बाद हर साल दुनिया भर के 60 देशों में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है और यूनेस्को ने भी इस प्रयास की सराहना कर की है।भारत में पहली बार 2007 में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया और इसे पुरुषों के अधिकार के लिए लड़ने वाली संस्था‘सेव इंडियन फैमिली’ ने पहली बार मनाया था।
पुरुष दिवस क्यों ?
आपको यह आपको थोड़ा अटपटा जरूर लगेगा, लेकिन यह सच है। महिलाओं की तरह पुरुष भी असमानता के शिकार होते हैं। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में होने वाली कुल आत्महत्याओं में 76 फीसदी पुरुष होते हैं। पूरी दुनिया में 85 फीसदी बेघर पुरुष हैं। यहां तक कि घरेलू हिंसा के शिकार लोगों में 40 फीसदी संख्या पुरुषों की है।
बेशक, नारी के बिना जीवन अधूरा है, लेकिन पुरुष भी उस जीवन को जीवंत बनाने में योगदान देते हैं। मां बच्चे को पेट में पालती है तो पिता भविष्य में आने वाली उसकी जरूरतों को दिमाग में पालता है। बतौर पिता, भाई, दोस्त, दादा, चाचा, मामा, नाना पुरुष कई किरदार हमारे-आपके जीवन में निभाते हैं, जिनकी काफी अहमियत होती है । कुल मिलाकर जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं स्त्री पुरुष । जीवन की सार्थकता इसी में है कि दोनों पहिए एक गति के साथ चलें और शिखर की ओर बढ़ें जब जब भी दोनों पहियों की गति अलग होगी या उनकी दिशा में अलगाव होगा तब तक गाड़ी ध्वस्त ही होगी ।
जहां सारी दुनिया आज महिला अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही है उनके प्रति सम्मान का भाव बढ़ रहा है तथा उनके शोषण के खिलाफ लगातार आवाजें उठ रही हैं वही यह भी समय की मांग है कि पुरुष के अधिकारों के लिए भी आवाज उठे वह भी केवल इसलिए शोषण का शिकार ना बने कि वह पुरुष है इसलिए उसकी भावनाओं की बेकद्री न की जाए कि वह तो कठोर हृदय का होता है एवं भावनात्मक संवेग ओं को रोकने में सक्षम है आज की दुनिया नव पुरुष प्रधान रही है और नहीं उसमें स्त्री को शोषित बनाकर रखा जा सकता है और जो ऐसा करने का प्रयास करता है उसे स्वयं भुगतना होता है अतः स्त्री हो या पुरुष दोनों को मानवीय दृष्टिकोण के साथ एक दूसरे का सम्मान करना सीखना होगा मैं तो पुरुष को शारीरिक बल के आधार पर स्त्री के शोषण की सोचनी चाहिए और नहीं स्त्री को भी निरर्थक ‘ मी टू ‘ जैसे अभियान चलाकर या उसे मिले अधिकारों का दुरुपयोग करके पुरुष को नीचा दिखाना चाहिए।
डॉ घनश्याम बादल