तुरुप का पत्ता

2
204

भारतीय राजनीति में गरीब का किरदार बडा अहम होता है और कांग्रेस के लिए तो यह तुरुप का पत्ता है। तभी तो इन्डिया शाईनिन्ग कि सारी शाईनिंग कान्ग्रेस का हांथ गरीब के साथ कह कर शाईनिंग को धुमिल किया और सत्ता पे काबिज हो गई। सत्ता पाने के बाद गरीबों से इन्का मोह तुरंत हि चला जाता है,क्योंकि इन्हें अपना भविष्य गरीबों के साथ के बजाए कारपोरेट नाम कि भरोसेमंद जमात के साथ नजर आता है। जिसके साथ चलने पर न तो विपक्ष को परेशानि होगी न हि मिडिया वाले इन मुद्दों को उछालेंगे। क्योंकि कारपोरेट जगत तो म्युचुवल रिलेशनशिप वाली व्यवस्था है।तो भला गरीब का क्यों साथ दें वहां तो वन वे है। अब आप सोंच रहे होंगे अखिर पछ विपछ राजनीति दोनो का कारपोरेट जगत से क्या सम्बन्ध होगा। चंदा जिसके दम पर चुनाव होता है। अब जरा इनकी सादगी तो देखिए hहर साल सरकार बजट परित करती है।बजट पारित होने के बाद मीडिया का काम है गरीब को तो मिला लेकिन कम मध्यवर्गीय को तो कोई लाभ ही नहीं मिला इतना कहकर इनकी खोजी पत्रकारिता का द इण्ड हो जाता है। अब विपक्ष पार्टियां कांव कांव करना करना शूरु करती है और बजट को महगाई बढाने वाला व देश के विकास में औरोधक बता कर अपनी जिम्मेदारी पुरी कर लेता है।कोई इस बजट में आखिर किया था विस्तार से पढने कि जहमत नहीं करता,कारण भोग विलासिता से फुर्सत  नहीं और देश के पक्ष विपक्ष के सहयोग से एक मोटी रकम कारपोरेट घराने को बतौर सौगात के रुप में दे दी जाती है।

आपको जानकर हैरत होगा कि मनमोहन सरकार ने साल 2005-2006 से 31-03-2010-2011 तक कारपोरेट घराने को इनकम टैक्स एक्साइज और कस्टम ड्यूटी में 21लाख 25हजार 23 करोड़ का फायदा पहुंचाया है।सिर्फ साल 2010-2011 में हि कारपोरेट घराने को 4लाख 60हजार 9सौ बहत्तर करोड़ रुपये की छुट दी गई है।इनमें इनकम टैक्स 88263 करोड़,एक्साईज ड्यूटी 198291 करोड़ और कस्टम ड्यूटी 174418 करोड़ रुपया है। सत्ता रुढ सरकार द्वारा हर साल इतनी बडी छूट देने का परिणाम हि है के देश के कुछ अमीर और ज्यादा अमीर,गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहें हैं।मनमोहन सरकार जितनी रकम का फायदा कारपोरेट जगत को देती है उतनी रकम यदि गरीबों पर खर्च करती तो शायद गरीबों कि मौत भूख से न होती गरीबों को दूषित पानी न पीना पडता, ईलाज के अभाव में अकारण मौत का दंश नहीं झेलना पडता और किसानो के देश में कर्ज न चुकाने कि हालत में किसानो को आत्मह्त्या न करना पडता। सत्ता रुढ पार्टी के इस कारपोरेट प्रेम पर कोई सवाल नहीं उठाता कारण साफ है सबको कारपोरेट जगत से फायदा होता है क्या पक्ष क्या विपक्ष? अगर ऐसा नहि होता तो जो विपक्ष कथित रुप से पौने दो लाख के घोटाले पर पार्लियामेन्ट का शीतकालीन सत्र नहीं चलने देती, वहि विपक्ष कारपोरेट घराने को 460972 करोड इतनी बडा टेक्स में छुट पर क्यों मौन साध लेती है।जबकी यह रकम टू जी स्पेक्ट्र्म घोटाले की रकम से कहीं ज्यादा है। दरअसल यही राजनीति है । आम जनता में खूद को जिम्मेदार विपक्षी पार्टी साबित करने के लिए उन मुद्दों को तो विपक्ष उठाती है जिनसे उनका नुकसान न हो और आम जनता को बेवकूफ बनाया जा सके,लेकिन उन मुद्दों को कभी नहि उठाती जिनसे आम गरीब जनता का भला हो।स्वास्थ ,शिक्षा,बेरोजगारी,जैसी ज्वलंत मुद्दों पे मौन रह्कर सरकार को कैसे गिराया जाए या बदनाम किया जाए इस प्रकार के विचारों का ताना बाना बुनने में विपक्ष अपना समय गवांता है।कोई रचनात्मक कार्य ये करना हि नहीं चाहते। यदि विपक्ष सकारात्मक रोल अदा करती तो यकीनन विपक्ष आम जनता कि नजर में अपने को साबित कर पाती और सरकार को इतना घोटाला करने का मौका न देती।

बे लाग लपेट कि बात

क्या कोई सांसद या विधायक अपने क्षेत्र का विकास करना चाह्ता हो भले हि वह विपक्ष पार्टी का ही क्यों न हो, विकास का कार्य नहीं कर सकता है? यकीनन कर सकता है बस इसके लिए इच्छा शक्त्ति व जमींर का जिन्दा रहना जरुरी है।

2 COMMENTS

  1. जिनका जमीर मर गया होता है केवल वाही व्यक्ति सांसद या विधआयक बन सकता hai

  2. “जमींर का जिन्दा रहना जरुरी है।”
    पगला गए हैं आप…
    जमीर जिन्दा रहेगा, तो आदमी सांसद या विधायक कैसे बन पायेगा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here