दो सितम्बर की शानदार हड़ताल संघर्षों के इतिहास में मील का पत्थर है !

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२-सितमबर की शानदार सफल हड़ताल से देश के मजदूर -किसान और कर्मचारी वर्ग के हौसले बुलंद हैं। जिन लोगों को इस हड़ताल से कुछ कष्ट या परेशानी हुई ,वे यह मानकर चलें कि उन्होंने अपने वतन के महान यज्ञ में पवित्र आहुति देकर राष्ट के प्रति अपना महानतम अवदान दिया है। जैसा की अपेक्षित था कि सत्तापक्ष के नेताओं ने , कुछ पूँजीपतियों ने और उनके पालित-पोषित मीडिया ने अपनी-अपनी समझ और सोच के आधार पर इस हडताल से असहमति जताई है ! जिन लोगों ने हड़ताल को कमतर आंकने का कृत्य भी किया है उनका यह अपराध भी छम्य है। वास्तव में इस हड़ताल की सफलता से न केवल केंद्रीय श्रम संगठनों के एजेंडे पर – देश और दुनिया का ध्यान आकर्षित हुआ है ,अपितु संकटग्रस्त भारत को एक नव संजीविनी – एक नव सकारात्मक क्रांतिकारी सन्देश भी प्राप्त हुआ है !एक नयी वैकल्पिक व्यवस्था की समभावनाएं बलबती हुईं हैं। इस बार २० करोड़ भारतीय इस हड़ताल में शामिल हुए ,अगली बार ५० करोड़ मेजनतकश हड़ताल में शामिल होंगे ! और उससे भी अगली बार १०० करोड़ लोग जब हड़ताल में शामिल होंगे तो लाल किले पर तिरंगे के साथ लाल झंडा भी लहराएगा !

विविध सभ्यताओं के सनातन संघर्ष के उदरशूल से पीड़ित भारत राष्ट्र को जातीयता की घातक एलर्जी नष्ट कर रही है ! साम्प्रदायिक उन्माद ,आतंकवाद ,अलगाववाद ,सामाजिक -आर्थिक असमानता,आरक्षण की लालसा और क्षेत्रीयतावाद- इत्यादि असाध्य रोग इस भारत भूमि के अधिकांस अंगों को स्थायी रूप से दुर्बल बनाये हुए हैं।इस दौर में केवल अमीरों ,महाभृष्टों और चरित्रहीनों की जठराग्नि ही चरम पर है। इन तमाम भौतिक व्याधियों की एकमात्र रामबाण औषधि है -सर्वहारा की क्रांति ! यह तब तक संभव नहीं जब तक युवा पीढ़ी इंकलाब या क्रांति के लक्ष्य को ठीक से चिन्हित नहीं करती। जब तक युवा पीढ़ी वर्ग चेतना से सुशिक्षित नहीं होती !जब तक युवा और छात्र -राष्ट्रीय सम्पदा एवं उत्पादन के साधनों पर सामूहिक स्वामित्व के विषय को ठीक से नहीं जान लेते , जब तक देश के छात्र -युवा-मजदूर -किसान किसी भी किस्म की क्रांति के विषय में ठोस चिंतन -मनन नहीं करते , तब तक किसी क्रांतिकारी बदलाव की कोई संभावना नहीं ही। और तब तक भारत की यह राष्ट्रीय रुग्णता यथावत बनी रहेगी।

autoयूपीए ,एनडीए ,जनता दल परिवार ,क्षेत्रीय पार्टियाँ या ‘आप’ जैसे लोग भारत को और ज्यादा रुग्ण बना रहे हैं ! ये लोग देश को पश्चमी राष्ट्रों की गयी गुजरी तकनीकी के बलबूते विकसित करने की जब तक कोई योजना कागज पर उतारते हैं तब तक वह तकनीकी २-जी से ४-जी में पहुँच जाती है। यथास्थतिवाद के दल-दल में धकेल रहे हैं। अन्ना हजारे,और रामदेव जैसे लोग देशभक्त हो सकते हैं ,किन्तु वे किसी भी क्रांतिकारी दर्शन से अनभिज्ञ हैं। वे ओंधे घड़े जैसे हैं। उनके पास सदिच्छाएँ तो भरपूर हैं किन्तु वे देश का इलाज नहीं कर सकते। भारत का समग्र स्वाश्थ तभी ठीक हो सकता है जब -देश की आवाम का समग्र स्वाश्थ ठीक होगा ! क्रांति की कड़वी दवा पीने के बाद ही भारत का स्वाश्थ ठीक होगा ! तभी वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी सम्मानित स्थान पा सकेगा ! तभी वह अलगाववाद ,नक्सलवाद ,साम्प्रदायिकता पर लगाम कस सकेगा ! तभी वह पाकिस्तान, चीन इत्यादि से सुरक्षित हो सकेगा। तभी वह देश के अंदर छिपे हुए ‘राष्ट्रद्रोहियों’ से भी मुक्ति पा सकेगा ! तभी यह गीत सार्थक होगा “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा ” ! इस अभीष्ट की प्राप्ति के लिए देश के नौजवानों को क्रांतिकारी विचारों से लेस होना जरूरी है। २-सितम्बर जैसी हड़तालें सभी जाती-वर्ग -धर्म के मजूरों ,किसानों और युवाओं को एकजुट संघर्ष के लिए तैयार करती हैं ! ये शानदार सफल हड़ताल संघर्षों के इतिहास में मील का पत्थर है। यह संघर्ष कभी जाया नहीं होगा अपितु महान क्रांतियों के पूर्व की क्रमिक तैयारियों का सिलसिला बनाये रखने में अवश्य मददगार होगी !

3 COMMENTS

  1. तिवारी जी आपने बिलकुल ठीक लिखा है कि देश धीरे धीरे सर्वहारा की क्रांति की तरफ बढ़ रहा है। कांग्रेस के भ्र्ष्टाचार और अहंकार की वजह से कोई उपयुक्त विकल्प न होने से साम्प्रदायिक शक्तिया झूठे वादे करके धोखे से फिलहाल सत्ता में आ गए हैं लेकिन इनके पास हिन्दू राष्ट्र के अलावा जनहित का चूंकि कोई एजेंडा नहीं है इसलिये डेढ़ साल में ही ये इतने अलोकप्रिय हो चुके हैं जितनी कोई सरकार शायद ही आज तक हुई हो। इनके अमीर समर्थक कामों से इनकी पोल लगातार खुल रही है। 2004 के इंडिया शाइनिंग की तरह इनकी उलटी गिनती अभी से शुरू हो गयी है। देश की जनता इनकी असलियत समझने लगी है इनके दावों से कुछ नहीं होने वाला। इनका भरम हमेशा के लिये टूटने जा रहा है अगर इन्होंने गुजरात की तरह एक बार फिर पूरे देश में भावनाओं का तूफ़ान न खड़ा किया…….

  2. Instead of educating the working class politically the Left movement in this country has played a cruel joke with the proletariat class. Little wonder, the trade union movement has been reduced to the white collared work force in government offices. The trade unions have failed grandly and gravely to read, understand and comprehend the changing complexities of the trade union movement in the age of globalisation and economic liberalisation. Still, they are out to pat their back for the alleged success of the one-day strike and fail to read the writing on the wall.

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