
मनोज ज्वाला
चन्द्रमा के अभियान पर जा रहे ‘विक्रम’ नामक भारतीय चन्द्रयान के ‘इसरो’ से सम्पर्क टुटने और जुटने के बीच भारत में सदभावनाओं व दुर्भावनाओं की दो धारायें भी फुट पडीं । राष्ट्रीय सदभावना-सम्पन्न आम लोग इस चन्द्र-अभियान की सफलता के निमित्त प्रार्थनायें करने लगे, तो अराष्ट्रीय दुर्भावनाओं से जकडे कुछ खास लोग इस खगोलीय अनुसंधान कार्यक्रम पर फब्तियां कसने लगे और मोदी सरकार पर व्यंग्य-वाण चलाने लगे । इन खास लोगों में से एक प्रकार के लोग इसरो-वैज्ञानिकों को सफलता का बपतिस्मा पढाने लगे, तो दूसरे प्रकार के लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के क्रिया-कलापों की आलोचना करने लगे । अपने देश में प्रायः ऐसा देखा जाता है कि राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से जुडे कार्यों की सफलता में विलम्ब होने अथवा विफलता की सम्भावना मात्र दिखने लगने पर थोडा सा मौका मिलते ही कुछ राजनीतिबाज व बुद्धिबाज लोग उसके लिए भी सनातन सांस्कृतिक परम्पराओं-मान्यताओं की आलोचना करते हुए उन अवसरों का इस्तेमाल अपने गुप्त इरादों के क्रियान्वयन में करने लगते हैं । मैं बात कर रहा हूं एक बडे बुद्धिबाज पूर्व सांसद उदितराज की , जिसने ‘इसरो’ से ‘विक्रम’ का सम्पर्क टुटते ही सम्बन्धित वैज्ञानिकों को इंगित करते हुए यह बयान जारी कर दिया कि “हमारे वैज्ञानिक नारियल फोडने और पूजा-पाठ पर विश्वास करने के बजाय वैज्ञानिक शक्ति और आधार पर विश्वास करते तो उन्हें ऐसी असफलता का मुंह नहीं देखना पडता ।” उदित के इस बयान के विरुद्ध देश भर में तिखी प्रतिक्रियाओं के साथ उनकी आलोचना हो रही है । सन २०१४ में मोदी-लहर पर सवार हो कर पहली बार सांसद बने और इस बार टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस का पल्लू पकड लेने वाले ये वही उदितराज हैं, जो आरक्षण की वैशाखी से भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बन जाने के पश्चात राजनीति का स्वाद चखने की तिकडम रचते-भिडाते रहे हैं । इस हेतु पहले ‘अनुसूचित जाति-जनजाति महासंघ’ नाम से एक संस्था बना कर चर्च-मिशनरियों से प्राप्त विदेशी अनुदान डकारते हुए सनातन धर्म की पारम्परिक-सामाजिक व्यवस्थाओं के विरुद्ध विषवमन करते रहे । फिर ‘इण्डियन जस्टिस पार्टी’ नामक रजनीतिक संगठन कायम कर सांसद-मंत्री बनने की मशक्कत करने लगे, जिसमें स्वयं की काबिलियत से सफल नहीं होने पर अपनी उस पार्टी के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे । और , मोदी जी की कृपा से जब सांसद बन गए तब अपना पुराना राग आलापने लगे- हनुमान को काल्पनिक बताने व राम की ऐतिहासिकता को नकारने की बयानबाजी कर-कर के अपनी बौद्धिकता का भौंदा प्रदर्शन करने के चक्कर में भाजपा को ही बट्टा लगाने लगे । नतीजतन इस बार के चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिला, तब रातोंरात कांग्रेस का दामन थाम लिए । उदितराज की सियासी शख्सियत बस इतनी ही है, किन्तु इसके भीतर का ‘राज’ कुछ और है । ये महाशय हिन्दुओं के धर्मान्तरण तथा सनातन धर्म के उन्मूलन और भारत के विखण्डन की विविध योजनायें क्रियान्वित करने वाली अमेरिकी संस्थाओं के धन से जो स्वयंसेवी संस्था चलाते रहे हैं, उसके माध्यम से ईसाई धर्मान्तरणकारी शक्तियों द्वारा भारत में सामाजिक विखण्डनकारी गतिविधियों को अंजाम देने के बावत प्रायोजित जातीय भेदभाव विषयक झूठे-झूठे मामलों में विभिन्न अमेरिकी आयोगों के समक्ष भारत सरकार के विरूद्ध गवाहियां देते रहे हैं । अमेरिका में रहने वाले एक प्रवासी भारतीय लेखक राजीव मल्होत्रा ने अपनी पुस्तक- ‘ब्रेकिंग इण्डिया’ में जातीयता के विषवमन से राजनीति करने वाले इस नेता की पोल खोलते हुए लिखा है- “ अमेरिका की डी०एफ०एन०(दलित फ्रीडम नेटवर्क) नामक संस्था भारत से वक्ताओं और आन्दोलनकारियों को अमेरिकी सरकार के विभिन्न आयोगों , नीति-निर्धारक विचार मंचों एवं चर्चों के समक्ष गवाहियां देने के लिए बुलाती है, जिसका स्पष्ट उद्देश्य भारत में यु०एस०ए० के हस्तक्षेप को अपरिहार्य बताना होता है । ऐसे ही एक आन्दोलनकारी हैं- उदितराज, जो ‘अखिल भारतीय अनुसूचित जाति-जनजाति महासंघ’ के अध्यक्ष हैं और भारत में हिन्दुओं का धर्मान्तरण कराने के बाद विख्यात हुए । उनकी इस संस्था द्वारा आयोजित एक तत्विषयक रैली का गुप्त सूत्रधार व धन-प्रदाता संगठन था ‘ऑल इण्डिया क्रिश्चियन कॉउन्सिल” । तो उन्हीं अमेरिकी संस्थाओं के इशारे पर भारत की राजनीति में दखल देने के लिए उदितराज ने ‘इण्डियन जस्टिस पार्टी’ की स्थापना की थी, जिसे वे फरवरी 2014 में भाजपा को निर्यात कर उसके टिकट से उत्तर-पश्चिम दिल्ली के सांसद बने थे । किन्तु अपने यहां यह जो कहा गया है कि ‘गेरुआ पहन लेने मात्र से कोई योगी नहीं हो जाता’ सो बिल्कुल सही कहा गया है और ऐसे ‘उदितराजों’ के लिए ही कहा गया है । सांसद बन जाने के बाद उदितराज केवल इस उक्ति को चरितार्थ करने में ही नहीं लगे रहे , बल्कि यह भी सिद्ध करते रहे कि ‘साज बदल जाने से मिजाज नहीं बदल जाता’ । भाजपा में आने और उसी की वैसाखी से संसद में जाने के बाद भी इनका मिजाज वही का वही रह गया- सनातन धर्म की परम्पराओं-स्थानाओं के विषैले विरोध से बजबजाता बदमिजाज । इनकी बदमिजाजी को बयां करने वाले इन्हीं के बयानों की कुछ बानगी देखने मात्र से चन्द्रयान सम्बन्धी इनके ताजा बयान का मर्म समझ में आ जाएगा । उदितराज ने गौमांस-भक्षण की वकालत करते हुए अपने एक बयान में यह कह रखा है कि “बीफ (गोमांस) खाने से ही ‘उसेन बोल्ट’ ने ९-९ ओलंपिक गोल्ड मेडल जीत लिए” । उन्होंने ओलम्पिक के दिनों में विश्वविख्यात धावक ‘उसेन बोल्ट’ को लेकर अपने ट्विटर में ऐसा लिखा था- “बोल्ट गरीब थे और ट्रेनर ने उन्हें दोनों बार बीफ खाने की सलाह दी थी” । जाहिर है उदित के इस बयान का आशय भारतीय खिलाडियों को बीफ खाने के लिए प्रेरित करना है । इसी तरह से पिछले साल उदितराज ने रामायण के ‘हनुमान जी’ को नकार देने वाले अपने बयान में कहा था कि “हनुमान का कोई अस्तित्व ही नहीं है, क्योंकि साइण्टिफिक व आर्क्योलॉजिकल एविडेन्स या डीएनए टेस्ट अथवा कार्बन डेटिंग जैसा कोई आधार नहीं है” । तब उदित के इस बयान पर देश के घोर धर्मनिरपेक्षी कांग्रेसी नेता व भाजपा के धुर विरोधी कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह ने भी आपत्ति जताई थी । अब चन्द्रयान-०२ के सम्बन्ध में इसरो-वैज्ञानिकों की आस्था पर चोट करने वाला बयान देने वाले उदितराज की बौद्धिकता का निर्माण दरअसल चर्च-मिशनरियों से सम्बद्ध ऑल इण्डिया क्रिश्चियन कॉउंसिल व डी०एफ०एन० एवं फ्रीडम हाउस जैसी उन संस्थाओं के द्वारा हुआ है, जो सनातन धर्म की सभी परम्पराओं-व्यवस्थाओं–मान्यताओं के विरोध को दलितों के सामाजिक सशक्तिकरण हेतु आवश्यक मानती हैं और धर्मान्तरण को मुक्ति का माध्यम बताती हैं । यही कारण है कि उपरोक्त संस्थाओं के धन से राजनीति करने वाले उदितराज प्रायः हर मौके पर सनातन धर्म के संस्कृत शास्त्रों और इससे जुडी आस्था का भी अनावश्यक रुप से मखौल उडाते रहते हैं, जबकि जिसस काइस्ट के प्रति जबरिया विश्वास पैदा करने वाले धर्मान्तरण का समर्थन करते हैं । चन्द्रयान-०२ को प्रस्थान करने के मौके पर इसरो-वैज्ञानिकों द्वारा सनातन भारतीय परम्परानुसार नारियल फोडने एवं पूजा-पाठ किये जाने को उक्त चन्द्र-अभियान में आये व्यावधान का कारण बताने और विज्ञान की शक्ति व आधार पर विश्वास करने की नशीहत देने वाले उदितराज क्या यह बता सकते हैं कि जिस अमेरिकी से उन्हें सनातन धर्म के विरुद्ध अनाप-शनाप बोलते रहने के लिए धन मिलते रहता है उसकी ‘नासा’ नामक अन्तरिक्षीय शोध संस्था के परिसर में ‘नटराज शिव’ की प्रतिमा वहां के वैज्ञानिकों ने यत्नपूर्वक आखिर क्यों स्थापित कर रखी है ? उदितराज को यह भी मालूम होना चाहिए कि ‘नासा’ के द्वारा सातवीं पीढी के सुपर कम्प्युटर का जो निर्माण किया जा रहा है, सो संस्कृत भाषा पर ही आधारित है ।
इनकी कोई विचार धारा नहीं है न इनका कोई राजनीतिक आधार है , केवल अवसरवादिता इंक सिद्धांत है , सरकारी सेवा तो राजनीति की मलाई चाटने के लिए छोड़ी थी , कांशीराम व मायावती की नेतागिरी फलते फूलते देख दलित नेता बन ने के ख्वाब जाग उठे लेकिन दाल गली नहीं , अब जगह जगह भटक रहे हैं , समय समय पर अस्तित्व जताने व सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए ऐसे बयान दे कर अपना अहसास कराते हैं , लेकिन यह भूल जाते हैं कि जब दलित राजनीति करने वाले राहुल, माया, मुलायम, अखिलेश सब की दुकानअभी ठप्प पड़ी है तो इनकी दुकान में कौन आएगा