मोहन भैया की सीख से उज्जैन ने की नजीर कायम 

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मनोज कुमार

महाकाल की नगरी उज्जैन हमेशा से अपने शहर के प्रति संवेदनशील रहा है. उज्जैन का हर नागरिक इस बात को लेकर चिंता करता है कि उसके शहर का विकास कितनी दु्रत गति से हो. विकास के इस सिलसिले में वे बिना किसी राग-द्वेष और आपसी मनमुटाव के सब एक हो जाते हैं. साम्प्रदायिक सौहाद्र्र इस शहर की पहचान है. यह शहर मोहन भैया का शहर है. आज मोहन भैया मध्यप्रदेश के मुखिया बन गए होंं लेकिन उज्जैन के हर एक नागरिक के लिए वे हमेशा उपलब्ध हैं. मोहन भैया मंत्री रहें हो, संगठन में काम करते रहे हों या छात्र जीवन में कॉलेज का नेतृत्व करते रहे हों, उन्होंने सबको एक ही मैसेज दिया है कि सबसे ऊपर आपसी मेल-जोल और साम्प्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल बन जाना. 

इस महीने उज्जैनवासियों के लिए इम्तहान का समय आ गया था जब शहर के केडी मार्ग चौड़ीकरण के लिए धार्मिक स्थलों को हटाया जाना जरूरी हो गया था. उज्जैन ही नहीं, पूरा प्रदेश हैरान था कि शहर के विकास के लिए सभी धर्मों के लोग एकत्रित होकर स्वेच्छा से हटाना मंजूर कर लिया. रत्तीभर कोई आवाज विरोध में नहीं उठा बल्कि उठे तो हजारों हाथ उज्जैन के विकास के लिए.  केडी मार्ग चौड़ीकरण के लिए आपसी सामंजस्य एवं समन्वय से शांतिपूर्वक धार्मिक स्थलों को लोगों द्वारा स्वेच्छा से हटाना विकास की दिशा में सांप्रदायिक सौहार्द का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत करता हैं। सबसे उल्लेखनीय पक्ष यह रहा कि एकाध धार्मिक स्थल को हटाने का मसला होता तो बात कुछ और होती, यहां तो 18 धार्मिक स्थलों को हटाया जाना था. मोहन भैया का गुरुमंत्र काम आ गया और लोगों ने शांति और सामंजस्य से एक अनुकरणीय पहल की. यह पहल उज्जैन ही नहीं, पूरे देश के लिए नजीर बन गया. 

        ऐसा नहीं है कि धार्मिक स्थलों को हटाने के लिए पहुंचे जिला प्रशासन, पुलिस एवं नगर निगम की संयुक्त टीम की पेशानी पर शिकन ना हो लेकिन उन्हें भी उज्जैनवासियों पर पूरा भरोसा था. प्रशासन की इस कार्यवाही में केडी गेट तिराहे से तीन इमली चौराहे के जद में आने वाले 18 धार्मिक स्थलों को जनसहयोग से शांतिपूर्वक ढंग से हटाने की कार्रवाई की गई है। इस कार्य में धार्मिक स्थलों के व्यवस्थापकों, पुजारियों और लोगों द्वारा दिल से सहयोग किया गया। जिन 18 धार्मिक स्थलों को हटाया गया उनमें 15 मंदिर, 2 मस्जिद, एक मजार हैं। केडी चौराहे से  पीछे करने और अन्यत्र स्थापित करने की कार्यवाही की गई हैं। हटाई गई प्रतिमाओं को प्रशासन द्वारा धार्मिक स्थलों के व्यवस्थापकों द्वारा बताए गए निर्धारित स्थान पर विधि विधान से स्थापित किया गया। साथ ही 20 से अधिक भवन जिनका गलियारा आगे बढ़ा लिया गया था। ऐसे भवनों के उस हिस्से को भी भवन स्वामियों द्वारा स्वेच्छा से तोडऩे की कार्यवाही की गई।

यह कार्यवाही में प्रशासन ने भी संवेदनशीलता का परिचय दिया और किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे, इस बात का खास खयाल रखा गया। कलेक्टर नीरज कुमार सिंह और पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा के निर्देशानुसार धार्मिक स्थलों को हटाने से पूर्व और दौरान प्रत्येक संप्रदाय के व्यस्थापकों और प्रमुख लोगों से चर्चा की गई और समन्वय स्थापित किया गया। इस सहमति के बाद ही धार्मिक स्थलों को हटाने और अन्यत्र स्थापित करने की कार्यवाही की गई. इतनी बड़ी संख्या में धार्मिक स्थलों को हटाए जाने पर सुई पटक सन्नाटा ने लोगों और प्रशासन के भीतर यह भाव भर दिया कि सूझबूझ से काम किया जाए तो सब संभव है और अपने शहर के विकास के प्रति लोगों की चिंता और लगाव देखने को मिला.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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