विश्व के स्थाई भविष्य के लिए चेतावनी है यूक्रेन – रूस युद्ध

डॉ. शंकर सुवन सिंह

यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस से जुडी है। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) खत्म होने के बाद दुनिया दो गुटों में बंट गई थी। एक तरफ अमेरिका और दूसरी तफर सोवियत संघ था। यूक्रेन वर्ष 1991 से पहले सोवियत संघ का हिस्सा था। 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ टूट गया और 15 अलग-अलग देश बन गए। ये 15 मुल्क हैं- यूक्रेन, आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान। यूक्रेन ने वर्ष 1991 में अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा की थी। 1991 में यूक्रेन के अलग होने के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया था। रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद से रूस की शक्ति और प्रभाव के नुकसान से गहरा आघात पंहुचा है। विघटन के बाद आजाद मुल्कों को अपनी मान्यता मिल गई, लेकिन कई मुल्कों के बीच आज तक विवाद पूरी तरह नहीं सुलझा है। यूक्रेन के सामने शुरू से कई बड़ी चुनौतितयां रहीं हैं। पहली चुनौती पूर्वी और पश्चिमी यूक्रेन के लोगों के बीच भिन्न-भिन्न विचारधारा का होना। दूसरी चुनौती पूरब और पश्चिम में भाषा के साथ साथ राजनीतिक रूझान भी दोनों इलाकों के अलग अलग हैं। तीसरी चुनौती अलगाववाद का होना। कहने का तात्पर्य यह है कि यूक्रेन के अंदर भी बगावत की आग जल रही थी। रूस उसी आग में घी डालने की कोशिश कर रहा था। यही कारण है की जंग अब शोलों के गोलों में बदल गई है। वर्ष 2013 ई. में यूक्रेन से रूसी समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को हटा दिया गया था तब दोनों देशों के बीच विवाद अत्यधिक बढ़ गया था। राष्ट्रपति यानुकोविच को अमेरिका-ब्रिटेन समर्थित प्रदर्शनकारियों के विरोध के कारण फरवरी 2014 में यूक्रेन छोड़ कर रूस में शरण लेनी पड़ी थी। यूक्रेन की स्थिति को बिगड़ता देखकर रूस ने दक्षिणी यूक्रेन क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था। फिर रूस ने यूक्रेन के अलगाववादियों को खुला समर्थन देना शुरू कर दिया था। जिसकी वजह से आज भी यूक्रेन सेना और अलगाववादियों के बीच जंग जारी रहती है। पूर्वी यूक्रेन के कई इलाकों पर रूस समर्थित अलगाववादियों का कब्जा है। यहीं के डोनेटस्क और लुहांस्क को तनानती के बीच रूस ने अलग मुल्क के तौर पर मान्यता दे दी है। ये वही इलाका है जहां पुतिन ने हाल ही में सैन्य कार्यवाही का आदेश दिया था। रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है। रूस – यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है और उनके पास इस बात का सबूत है कि यूक्रेन पर रूस हमला करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति की यह आशंका सच साबित हुई। यूक्रेन द्वारा अमेरिका से नाटो (नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन) में शामिल होने का वादा करना यूक्रेन के लिए मंहगा पड़ गया। एक सैन्य गठबंधन है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। नाटो को सबसे अधिक फंडिंग अमेरिका करता है। अभी तक नाटो में 30 सदस्य देश हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में यूक्रेन में वोलोदिमीर जेलेंस्की राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने डोनबास की पुरानी स्थिति को बहाल करने का वादा किया। जेलेंस्की ने सत्ता में आते ही नाटो में शामिल होने की कोशिशें तेज कर दीं थी। नवंबर 2021 में सैटेलाइट तस्वीरों में सामने आया था कि रूस ने यूक्रेन की सीमा के पास सैनिकों की तैनाती करनी शुरू कर दी है। दो देशों का युद्ध, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का शिकार होता है। सामान संस्कृति, सभ्यता एवं भाषा वाले देश आपस में लड़ रहे हैं। जो देश कभी एक हुआ करते थे वो आज एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं। जो देश जिस देश के निकट हैं वो एक दूसरे के प्रति उतनी ही विकटता पैदा करते हैं। यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अत्यधिक निकटता विकृति को पैदा करती है। भगवान् विष्णु के नवें अवतार महात्मा गौतम बुद्ध ने कहा था – वीणा के तारों को इतना भी मत कसो कि वह टूट जाये और इतना ढीला भी मत रखो कि उससे सुर ही न निकले। कहने का तात्पर्य अति किसी भी चीज कि बुरी होती है। चाहे वह निकटता हो या दूरी हो। प्रत्येक देश को संतुलित रहने कि जरुरत है। संतुलन ही किसी भी समाधान का मूल मंत्र है। प्रतिस्पर्धा हमेशा उससे ही होती है जिसके बारे में हम जानते हैं या जिससे हमारी निकटता होती है। जो हमको दिखती है वही प्रतिस्पर्धा का कारण बनती है। स्वतः के साथ प्रतिस्पर्धा स्व को निर्मित करती है, साथ ही साथ समाज और राष्ट्र को मजबूत करती है। व्यक्ति,समाज और राष्ट्र सभी की प्रतिस्पर्धा स्वयं से होनी चाहिए। प्रकृति, दूसरों से प्रतिस्पर्धा की अनुमति नहीं देती है। प्रकृति हमेशा स्व से जुड़ने की ओर प्रेरित करती है। स्व से जुड़ना ही असली प्रतिस्पर्धा है। एक सफल राष्ट्र की प्रतिस्पर्धा स्वतः से होती है। जैसे बेरोजगारी, महंगाई, खाद्यान, मेडिकल, शिक्षा आदि को लेकर प्रतिस्पर्धा। बेरोजगारी से प्रतिस्पर्धा मतलब बेरोजगारों को रोजगार देना,आदि। कहने का तात्पर्य एक सफल राष्ट्र की प्रतिस्पर्धा स्वयं के दृष्टिकोण से होती है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से प्रतिस्पर्धा करके उस पर शिकंजा तो कस सकता है पर पूर्णतः विकास नहीं कर सकता है। युद्ध विनाश का कारण बनता है। शांति, विकास का कारण बनती है। युद्ध वैमनस्यता का कारक है। शांति मित्रता का कारक है। भारत एक शांत देश है क्योंकि वो हमेशा पड़ोसी देशों से मित्रता करके चलता है। शांति, आस्तिकता को प्रकट करती है। युद्ध नास्तिकता को प्रकट करती है। आस्तिकता स्वर्ग को प्रकट करती है। नास्तिकता नरक को प्रकट करती है। शांति स्वर्ग के द्वार को खोलती है। युद्ध नरक के द्वार को खोलता है। इसलिए तो द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी में गिराए गए बम का असर आज तक है। वर्ष 2013 में अमेरिका का रूस के विरुद्ध यूक्रेन में प्रदर्शनकारियों को समर्थन देना और हाल में रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले अमेरिका द्वारा युद्ध की भविष्यवाणी करना, अमेरिका के दोहरे चरित्र को चरितार्थ करती है। इन सभी तथ्यों से एक ही निष्कर्ष निकलता है कि अमेरिका विश्व के सभी राष्ट्रों को आपस में लड़वाकर सिर्फ और सिर्फ अपनी विजय पताका लहराना चाहता है। जिस किसी देश ने अमेरिका को अपने देश में दखलंदाजी करने की सह दी वह देश बर्बाद हो गया। दो देशों में प्रतिस्पर्धा करवाकर आपस में लड़वा देने का काम अमेरिका का है। भारत को इससे सचेत रहने की जरुरत है। भारत जैसा शांतिप्रिय देश तभी तो महान है। मेरा भारत महान। यूक्रेन – रूस युद्ध विश्व के भविष्य के लिए चेतावनी है। विश्व को ऐसे युद्धों से सबक सीखना चाहिए। सभी देशों को मिलकर विश्व के स्थाई भविष्य के लिए काम करना चाहिए। अतएव हम कह सकते हैं कि यूक्रेन – रूस युद्ध तृतीय विश्व युद्ध की पहल करता नजर आ रहा है।

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