सालते सवाल!

शिवशरण त्रिपाठी
किसी देश की आजादी के ७० साल कम नहीं होते। निश्चित ही इन ७० सालों में देश ने विभिन्न क्षेत्रों में आशातीत प्रगति भी हासिल की है। शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी एवं आवास जैसी समस्याओं पर देश भले ही पूरी तरह काबू नहीं पा सका पर इस दिशा में सरकार की उपलब्धियां संतोषजनक तो कही ही जा सकती है। अलावा इनके आईटी, अंतरिक्ष व मिसाइल तकनीकि के क्षेत्र में भारत ने अनुकरणीय उपलब्धियां हासिल करके पूरे विश्व को चकित कर दिया।
नि:संदेह यदि देश के राजनीतिक दलों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि  के लिये तुष्टिकरण की नीति का घिनौना खेल-खेलना न जारी रखा होता। ऊपर से नीचे तक भयावह भ्रष्टाचार को संरक्षण व बढ़ावा न दिया जाता रहा होता तो देश की तस्वीर इतनी चमकीली होती कि देखने वालों की आंखे चुंधियाये बिना न रहती। देश इतना शक्तिशाली हो गया होता कि चीन जैसा साम्राज्यवादी सोच वाला देश सन् १९६२ की धमकी दोहराने की जुर्रत ही नहीं करता। पाकिस्तान जैसा पिद्दी, दुष्ट पड़ोसी देश से बार-बार युद्ध करने, आतंकी हमला कराने से पहले सौ बार सोचता।
फिर भी मूलत: अपनी सहनशीलता, क्षमाशीलता व उदार प्रवृत्ति के चलते देशवासियों को, तमामोतमाम कमियों, खामियों से उतना रंज/परेशानी नहीं है जितना रंज व परेशानी देश की दीर्घकालीन उन समस्याओं को लेकर है जिनमें से तीन हमारी अपनी सरकारों की ही देन है। जिन्हे आजादी के ७० सालों में दूर करना तो दूर उलटे उलझानें व बढ़ाने का काम किया जाता रहा है। पहली ज्वलन्त व राष्ट्रघाती समस्या देश का स्वर्ग माने जाने वाले राज्य जम्मू कश्मीर में उसके विलय के समय लागू किया गया अनुच्छेद ३७० व ३५ ए की है। जिसके चलते आज तक देश में एक संविधान तक लागू न हो सका। ज्ञात रहे अनुच्छेद ३७० जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। नतीजतन देश के अनेक कानून इस राज्य में लागू ही नहीं होते।
यही ऐसा कवच है जिसने जम्मू कश्मीर को बर्बाद करके रख दिया। यहां के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने कालांतर में अलगाववादियों से मिलकर जहांं कश्मीर घाटी की शान रहे कश्मीरी पंडितों को दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर कर दिया वहीं घाटी को आतंकियों के हवाले कर दिया। बीते कुछदिनों से आलगाववादियों के जो काले चिट्ठे देश के सामने आ रहे है उनसे अब किसी प्रमाण की जरूरत ही कहां बचती है।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि जिस कांग्रेस पार्टी के आलाकमान व देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद ३७० के तहत विशेष राज्य का दर्जा दिया था उसे एक सीमित समय के लिये दिया गया था। पर विडम्बना देखिये कि पण्डित जी की उसी कांग्रेस के खिलाडिय़ों ने इस अनुच्छेद को सत्ता का साधन बना लिया। परिणामत: अर्से तक पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता का सुख भोगने वाली कांग्रेस ने इस अनुच्छेद को समाप्त करने की बार-बार मांग उठाये जाने के बावजूद कोई परवाह तक नहीं की। जब भी विपक्षीदलों अथवा देश के लोगो की आवाजे उठी तब-तब अप्रत्यक्षत: कांग्रेस के इशारे पर  वहां के क्षेत्रीय दलों की ओर से ऐसा हो हल्ला मचाया जाने लगता, ऐसी धमकियां दी जाने लगती कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार देशवासियों को यही समझाती दीखती कि जम्मू कश्मीर से ३७० अनुच्छेद खत्म करना देश को आग में झोंकने से कम नहीं है। हद तो तब हो गई जब ३७० अनुच्छेद हटाने की ब ात तो दूर रही ३५-ए अनुच्छेद जोड़कर और भी सहूलियतें व अधिकार दे दिये गये।
उम्मीद थी कि जम्मू कश्मीर में पीडीपी भाजपा की गठबंधन सरकार बनने के बाद मोदी सरकार जहां प्राथमिकता से देश के विभिन्न भागों में खाना बदोस जिंदगी जी रहे कश्मीरियों का पुर्नवास करायेगी वहीं कश्मीर में अनुच्छेद ३७० समाप्त करने की पहल करेगी पर फि लहाल अभी तक ऐसा कुछ भी न हो सका।
खैर इसी बीच जहां गत १७ जुलाई को मा. सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद ३५-ए को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के लिये विशेष पीठ का गठन कर दिया है वहीं गत ८ अगस्त को अनुच्छेद ३७०की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुये केन्द्र को ४ हफते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय मेंयाचिका दायर होने के बाद जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने २८ जुलाई को दिल्ली की एक संगोष्ठी में जो बयान दिया उसे बयान से ज्यादा खुली धमकी कहा जाये तो गलत न होगा। महबूबा ने कहा कि यदि अनुच्छेद ३५-ए से छेड़छाड़ किया गया तो कश्मीर में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं मिलेगा आदि।
महबूबा ने ऐसा विवादास्पद कोई पहली बार नहीं दिया है। इस तरह की बयानबाजी वह पहले भी कर चुकी है।
महबूबा मुफ्ती की वास्तविक परेशानी सत्ता को लेकर है। उन्हे ही नहीं जम्मू कश्मीर के सभी क्षेत्रीय दलो को पता है कि जिस दिन इस राज्य से अनुच्छेद ३७० व ३५-ए समाप्त कर दिये गये उसी दिन इन सभी की राजनीतिक दुकाने भी बंद हो जायेगी और इनकी औकात टके की भी नहीं रह जायेगी। यही नहीं यहां आतंकी गतिविधियों का नामों निशान नहीं रह जायेगा और कश्मीर में प्रगति की नई इबारत लिखी जा सकेगी। और फि र भारत गुलाम कश्मीर को भारत में मिलाने की प्रक्रिया भी तेज कर सकेगा।
जो भी हो अब जिस तरह  मा. सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त प्रकरण पर अपनी कार्यवाही शुरू कर दी है उससे पूरी उम्मीद है कि अब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद ३७० व ३५-ए हटकर ही रहेगा। निश्चित ही केन्द्र सरकार भी हर संभव प्रयास करेगी कि उक्त अनुच्छेद हर हाल में समाप्त हो जाय।
देश की दूसरी गंभीर समस्या बढ़ते जातिगत आरक्षण की है। संविधान में आरक्षण का प्रावधान समाज की दबी कुचली जातियों के लोगो को आरक्षण देकर मुख्य धारा में शामिल करने के लिये किया गया था।
यह भी कहा गया था कि एक समय सीमा के बाद इसे आगे न बढ़ाया जाय पर जब भी समय सीमा समाप्त करने का समय आया तो इसे आवश्यक बताकर और आगे, और आगे बढ़ा दिया गया। देखते-देखते आरक्षण वोटो का एक सशक्त हथियार बन गया। कांग्रेस ने तो इसे खूब भुनाया ही अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसका फ ायदा उठाने में चूक नहीं की ।
भला देश कैसे भूल सकता है पूर्व प्रधानमंत्री स्व. वीपी सिंह के कार्यकाल के उस काले अध्याय को जिसमेें उन्होने मण्डल कमीशन की रपट लागू करके पूरे देश को आरक्षण की नई आग में झोक दिया था। इसके विरोध में अनेक मेधावी छात्र-छात्राओं ने अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर दी थी। और कोई देश होता तो शायद इन आत्महत्याओं के लिये सीधे प्रधानमंत्री वीपी सिंह को जिम्मेदार मानकर उन पर हत्या का मुकदमा चलता और सजा भी मिलती। दुख तो इस बात का है कि उन बलिदानी छात्र-छात्राओं का बलिदान भी बेकार सिद्ध हुआ। कारण कि उसके बाद भी आरक्षण का फ ीसद बढ़ाने की होड़ सी मच गई। हालत यह हो गई कि मा. सर्वोच्च न्यायालय को निर्देश देना पड़ा कि ५० फ ीसद से अधिक आरक्षण अमान्य होगा।
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जातिगत आरक्षण की बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की सुगबुगाहट शुरू ही हुई थी कि बिहार के विधान सभा चुनाव के ऐन मौके पर संघ प्रमुख के जातिगत आरक्षण समाप्त करने की आवश्यकता जताये जाने के बयान से खासकर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने आसमान सर पर उठा लिया।  आखिर  भाजपा ने चुनावी हालात हाथ से निकलते देख इसका कई बार जोरदार खण्डन किया कि देश में आरक्षण समाप्त नहीं होगा। संघ ने भी सफ ाई दी पर भाजपा को इसका खामियाजा बिहार चुनाव में भुगतना पड़ा।
अब जब देश में वोटो पर आरक्षण का इतना सशक्त प्रभाव हो तो भला कौन अपनी सत्ता गंवाना चाहेगा। अब तो इसका एक ही रास्ता है कि जातिगत आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय ही समाप्त करने की निर्णायक पहल करें वरन् राजनीतिक दल तो ऐसा करने से रहे। चूंकि यह मसला संविधान से जुड़ा है अतएव इसे सर्वोच्च न्यायालय में बेहद आसानी से उठाया जा सकता है।
आजादी के ७० सालों में देश में एक राष्ट्र भाषा का न होना भी देश के नीति नियंताओं की नीयत पर ही सवाल उठाता है। कदाचित भारत ही दुनिया का ऐसा अभागा व अजूबा देश होगा जिसकी कोई अपनी भाषा नहीं है और ऐसा महज इसलिये नहीं हो सका कि भाषा को भी वोट की राजनीति से जोड़ दिया गया।
आज यदि आजादी के ७० साल बाद भी अंग्रेजी शान से हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं पर राज कर रही है तो यह हमारे राजनीतिक दलों के राजनीतिक स्वार्थो की ही पराकाष्ठा का परिणाम है। जिस तरह बीते १० सालों में बतौर प्रधानमंत्री डा्. मनमोहन सिंह ने देश से लेकर विदेशों तक में अपने भाषणों में अंग्रेजी का प्रयोग करके हिन्दी का अपमान किया वो शर्मनाक ही कहा जायेगा।
कम से कम यह शुभ लक्षण है कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीते तीन वर्षो से देश हो या विदेश अपने भाषण हिन्दी में देते रहे है। उम्मीद की जानी चाहिये कि उनके शासनकाल में हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा बनकर ही रहेगी।
अन्तिम सवाल देश की अस्मिता राम मंदिर से जुड़ा है। आजादी के ७० सालों में जन-जन के आराध्य भगवान श्रीराम का उनकी जन्मस्थली अयोध्या में मंदिर न बन पाना शर्मनाक तो है ही दुनिया के हिन्दुओं को मुंह चिढ़ाने वाला है। दुर्भाग्य से भगवान राम के मंदिर निर्माण को सत्ता लोलुपों ने वोट का एक कारगार अस्त्र बना डाला।
मामले की सुनवाई फि लहाल सर्वोच्च न्यायालय में शुरू हो चुकी है तो उम्मीद की जाने चाहिये कि जल्द ही निर्णय राम मंदिर के पक्ष में आयेगा और अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण होकर ही रहेगा।
होना तो यह चाहिये था कि देश के तमामो तमाम मुसलमान एक साथ उठ खड़े होकर और वोटों के सौदागारों को आइना दिखाते हुये राम मंदिर निर्माण की अगुवाई करते। अभी भी ऐसी पहल का सुनहरा अवसर है। यदि यह पहल होती है तो यकीन मानिये कि पूरी दुनिया भारत की गंगा जमुनी तहजीब पर दांतों तले अंगुुली दबाने को मजबूर होगी और भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता के ऐसे नये युग की शुरूआत होगी जहां सिर्फ  और सिर्फ  अमन चैन व देश की प्रगति की नित नई-नई इबारते ही लिखी जायेगी।

 

****************************** ****************************** ****************************** ****
नंगे होकर विदा हुये नायब साहेब!
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की विदाई बेला पर जहां राष्ट्रवासी उनके द्वारा दिये गये भाषण से अभिभूत थे वहीं उपराष्ट्रपति पद से विदा हुये हामिद अंसारी के विदाई उद्बोधन से अधिसंख्य राष्ट्रवासी बेहद क्षुब्ध दिखे।
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बखूबी उनके अतीत पर रोशनी डालते हुये इसे उनकी छटपटाहट बताया तो नये उपराष्ट्रपति बने वेंकै या नायडू ने भी उन्हे आइना दिखाने में चूक नहीं की।
कोई यह नहीं समझ पा रहा है कि आखिर ऐसे व्यक्ति को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किस योग्यता/विशिष्टता के आधार पर उपराष्ट्रपति पद पर बिठाया था। यह और भी समझ से परे है कि आखिर ऐसी शख्सियत लगातार दो टर्म कैसे उपराष्ट्रपति पद की शोभा बढ़ाती रही।
ऐसा भी नहीं है कि उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुये माननीय अंसारी जी ने मोदी सरकार पर तंज न कसे हों। ऐसा खासकर तब देखने को मिला था जब देश में कथित असहिष्णुता को लेकर देश के छद्म बुद्धिजीवी अथवा बामपंथी सोच में पूरी तरह डूबे कथित बुद्धिजीवियों में राष्ट्र प्रदत्त सम्मानों को लौटाने की होड़ मची थी। इन महोदय ने एक बार अपने विदेश दौर में भी देश में असहिष्णुता की बात कहने में झिझक नहीं महसूस की थी।
अव्वल तो ऐसी बयानबाजी के वक्त उन्हें यह भी खयाल नहीं रहा कि वे कांग्रेस के कोई ओहदेदार/प्रवक्ता न होकर एक जिम्मेदार  संवैधानिक पद पर आसीन है।
दूसरे उन्हे देश के उस संविधान की ताकत, देश के उस चरित्र का भी ध्यान नहीं रहा जिसकी बदौलत ही वह एक ‘अंसारी जैसे परिवारÓ से उठकर देश के उपराष्ट्रपति जैसे द्वितीय शीर्ष पद पर पहुंचने में कामयाब रहे।
तीसरे उन्हे यह भी हिचक महसूस नहीं हुई कि आज जब पूरी दुनिया भारत के प्रखर नेतृत्व की, भारत की हर दृष्टिकोण से बढ़ती ताकत की प्रशंसा कर रही है तो  दुनिया के लोग उनकी अपनी ही राष्ट्र के प्रति कृतघ्नता पर क्या सोचेगें!
कदाचित अंसारी साहेब उस कांग्रेस से किसी बड़े ईनाम की न भी सही तो भी उसकी आलाकमान से पीठ थपथपाने की उम्मीद तो पाले ही रहे होगें। उन्हे यह भी उम्मीद रही होगी कि देश की वे पार्टियां भी उन्हे हाथोहाथ लेने में देरी न लगायेगी जो भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही देश की तकदीर फ ूटने जैसी विधवा विलाप करने में जुटी है। उन्हे यह भी उम्मीद रही होगी कि देश के मौलाना/मौलवी उनकी खैर मकदम में जलशेे आयोजित करने लगगें। उनकी तकरीरे कराने की होड़ मच जायेगी। पर ऐसा कुछ न होना यकीनन उन्हे किसी सदमें से कम न लग रहा होगा।
माना की माननीय अंसारी जी में डॉ. जाकिर हुसैन बनने की काबिलियत नहीं थी माना कि वो डॉ. अब्दुल कलाम की ऊंचाईयों के सामने बौने थे। पर जाते-जाते देश के उस संविधान की ताकत का गुणगान तो कर ही सकते थे जिसकी बदौलत ही वह उपराष्ट्रपति जैसे पद पर आसीन हो सके थे। देशवासियों के प्रति कृतज्ञता तो व्यक्त कर ही सकते थे जिसने कभी भी उन्हे एक मुसलमान के नजरिये से न ही देखा और न ही  आंका!
राष्ट्र भले ही आपकी संकुचित सोच, तंग दिली को माफ  कर देगा पर क्रूर इतिहास शायद ही माफ  करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,673 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress