निराशा असमय मृत्यु और आशा जीवन की वीणा है

मित्रों, हममें से अधिकतर लोग इस कारण से दुःखी, परेशान और तनावग्रस्त रहते हैं, क्योंकि हम जाने-अनजाने अपने वर्तमान को, स्वयं ही नष्ट कर रहे हैं। कोई भी सामान्य व्यक्ति यदि ईमानदारी से स्वयं का आकलन करेगा तो वह पायेगा कि गुजर चुका समय और आने वाला समय हमेशा उसे परेशान रखता है और भूत एवं भविष्य की उधेडबुन में ऐसा व्यक्ति अपने वर्तमान को भी ठीक से नहीं जी पाता है। परन्तु इसे लोगों का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि वे कभी न लौटाये जा सकने वाले भूतकाल को लेकर रोते और पछताते रहते हैं। काश मैंने ऐसा कर लिया होता! काश मैंने वह सौदा नहीं किया होता तो मैं लाखों के घाटे के सौदे से बच जाता! काश मैंने अपनी बेटी की शादी करने से पहले, लडके वालों के बारे में सारी जानकारी कर ली होती तो! काश मैंने शराब पीने की आदत तीन वर्ष पहले छोड दी होती तो!

भूतकाल को लेकर भी दो प्रकार की तकलीफें होती हैं, एक होती हैं जो गुजर चुके समय को स्वयं की गलतियों के चलते सही से उपयोग नहीं करने की। जबकि दूसरी में व्यक्ति किन्हीं परिस्थितियों के कारण अपने भूत का मनचाहा उपयोग नहीं कर पाता है, जिसका पछतावा उसे सताता रहता है। हालांकि दोनों ही स्थितियों में गुजर चुका समय तो वापस नहीं आ पाता है, लेकिन दूसरी स्थिति में व्यक्ति अधिक दुःखी रहता है और उसे उन लोगों या हालातों पर गुस्सा करने का बहाना मिलता रहता है, जिनके चलते वह अपने भूत का मनचाहा उपयोग नहीं कर सका होता है।

कुछ लोग आने वाले कल अर्थात्‌ भविष्य को लेकर आशंकित और भयभीत रहते हैं। उन्हें अपने आने वाले कल में असुरक्षा और आशंकाएँ ही आशंकाएँ नजर आती हैं। जिसके चलते वे अपने वर्तमान को छोडकर भविष्य की उधेडबुन में ही लगे रहते हैं। उन्हें भविष्य अन्धकारमय नजर आता है। इसके अलावा अनेक लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने भूत और भविष्य दोनों में बुरी तरह से उलझे रहते हैं। जिसके चलते उनके लिये अपने वर्तमान में कोई रस नहीं रहता है। ऐसे लोग किसी भी तरह से अपने भूतकाल के अधूरे सपनों को फिर से साकर करने के सपने देखते रहते हैं। हालांकि इस तरह से वे न तो भूत को लौटा सकते हैं, न वर्तमान को जी पाते हैं और ऐसे लोगों का भविष्य निश्चय ही अनिश्चित और दुःखों से भरा हुआ होता है।

अतः समझने वाली महत्वूपर्ण बात यही है कि “हो गया सो गया, अब सोच करना व्यर्थ है।” जो गुजर चुका उसे तो लौटाया नहीं जा सकता, लेकिन हम अपने वर्तमान को अपने हिसाब से जीकर, अपने आने वाले भविष्य को अवश्य संवार सकते हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जिन लोगों को वर्तमान को जीने का सलीका नहीं आता, उनका भविष्य निश्चय ही अन्धकारमय है। जबकि जिन लोगों ने वर्तमान को सम्पूर्णता से जीना सीख लिया है, वे इस बात की आशा अवश्य कर सकते हैं कि उनका भविष्य सुन्दर और सुखद ही होगा।

इसलिये निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि बेहतर तो यही है कि हम अपने गुजर चुके जीवन से सबक सीखें और वर्तमान को पूर्णता से जियें, जिससे कि हमारा भविष्य संवर सके। जिनके पास आज को जीने का कारण है, उनके पास आने वाले सुन्दर कल की अपार सम्भावनाएँ हैं। परन्तु दुःख तो इस बात का है कि सौ में से नब्बे लोगों के पास गुजर चुके समय को वापस लौटाने के हजारों कारण हैं, लेकिन उनको अपने वर्तमान को रस लेकर और शान्ति से जीने का कोई कारण नजर नहीं आता है! जबकि उनके आसपास जीने के अनेक सुन्दर-सुन्दर कारण बिखरे पडे हैं। जीवन उनका स्वागत करने को बेताब है। आवश्यकता इस बात की है कि परमात्मा के अनुपम उपहार इस जीवन रूपी उपहार का हम स्वयं स्वागत करना सीखें। हम जब तक जीवन का स्वागत एवं सत्कार नहीं करेंगे। तब तक हमें खुशियों के बजाय दुःखों का ही समाना करना पडेगा।

अतः मित्रों सब कुछ भूलकर अपने वर्तमान को जियो। वर्तमान ही सत्य है। एक क्षण बाद क्या होने वाला है, कुछ नहीं कहा जा सकता। यद्यपि वर्तमान को पूर्णता से जीने के बाद इस बात की उम्मीद एवं आशा अवश्य की जा सकती है कि हमारा आने वाला कल भी सुन्दर और सुखद होगा। अतः वर्तमान को सम्पूर्णता से जियें। आज से और इसी क्षण से अपने वर्तमान में रस लेना शुरू करें। वर्तमान को पूर्णता और सम्पूर्णता से जीन के लिये, अपने दैनिक जीवन में कुछ परिवर्तन लाने होंगे :-

1. सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा अपने आपके प्रति, अपने अपनों के प्रति और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के प्रति सकारात्मक विचार और सोच रखें।

2. आशावादी बनें। निराशाओं को त्यागें। उम्मीद करें कि दुनियाँ अच्छी है और अधिक अच्छी बन सकती है।

3. दूसरों की बातों को सुनें। दूसरों के अनुभवों से सीखें। जरूरी नहीं कि आप स्वयं ही हर बात को सिद्ध करें। लोगों ने जिन बातों को अपने अनुभव से बार-बार सिद्ध किया है, उनमें आस्था पैदा करें।

4. चीजों या परिस्थितियों को कोसना छोडें और उन्हें जैसी हैं, वैसी ही स्वीकारना शुरू करें। अस्वीकार नकारात्मकता और स्वीकार सकारात्मकता है।

5. निराशा असमय मृत्यु और आशा जीवन की वीणा है।

6. निराशा और नकारात्मकता दोनों ही चिन्ता, तनाव, क्लेश और बीमारियों की जननी हैं, जबकि आशा और सकारात्मकता जीवन में आनन्द, प्रगति, सुख, समृद्धि और शान्ति का द्वार खोलती हैं। जिससे जीवन जीने का असली मकसद पूरा होता है।

7. अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम किसका चुनाव करते हैं? निराशा का सन्नाटा या आशा की वीणा की झंकार? चुनाव हमारे अपने हाथ में है।

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा “निरंकुश”

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

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