अनटोल्ड ट्रैजेटी आफ स्ट्रीट डॉग्स …!!

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तारकेश कुमार ओझा
हे देश के नीति – नियंताओं  । जिम्मेदार पदों पर आसीन नेताओं व अफसरों
… आप सचमुच महान हो। जनसेवा में आप रात – दिन व्यस्त रहते हैं। इतना
ज्यादा कि आप शूगर , प्रेशर , थाइराइड आदि से परेशान रहते हैं। आप देश
के खेवैया हो। राष्ट्र की यह नैया आपके भरोसे ही आगे बढ़ रही है। आपका
बड़ा एहसान हम पर है। प्लीज एक एहसान और कीजिए… और इन आवारा – लावारिस
कुत्तों का कुछ कीजिए। अपनी बोलेरो , स्कार्पियो आदि से गुजरते समय जगह –
जगह आवारा कुत्तों की भीड़ पर आपकी नजर पड़ती ही होगी। कभी – कभार शायद
आपकी गाड़ियों के आगे – पीछे दौड़ते भी हों या पहियों के नीचे आ जाते
हों। हम नहीं कहते कि आप आवारा या लावारिस कुत्तों को पकड़ कर मार डालिए।
आप ऐसा कर भी नहीं सकते। क्योंकि कानून ने इस पर रोक लगा रखा है। देश में
हर जगह एक सी हालत है। लेकिन उनका बंध्याकरण तो किया ही जा सकता है।
जिससे कुत्तों की बेहिसाब बढ़ती संख्या पर कुछ हद तक रोक लग सके। शहर की
क्या हालत हो गई है , लावारिस कुत्तों की बढ़ती संख्या के चलते। चाय –
बिस्कुट की दुकान पर दर्जन भर कुत्ते बुरी तरह से लड़ते – भिड़ते रहते
हैं। हर चार कदम पर गैंग्स बना कर बीच सड़क पर बैठे रहते हैं। कब किस पर
टूट पड़े कहना मुश्किल है। आप ठहरे बड़े आदमी…। फोर  व्हीलर से चलते
हैं। इधर – उधर घूमने वाले आवारा कुत्ते भला आपका क्या बिगाड़ लेंगे। इन
कुत्तों का आतंक तो हमसे पूछिए .. जो बाइक – साइकिल से या फिर पैदल चलते
हैं। अक्सर इनका कहर हम पर टूटता है। चौदह इंजेक्शन की पीड़ा भी हमीं
झेलते हैं। जबकि यह भी कड़वा यथार्थ है कि सरकारी अस्पतालों में एंटी
रैबिज वैक्सिन का घोर अभाव है। प्राइवेट इलाज पर कम से कम दो – दो हजार
के दो गुलाबी नोट तो इस पर कुर्बान होने ही हैं। क्या यह हर किसी के लिए
आसान है। ऐसा नहीं है कि इस समस्या से पैदा हुई  त्रासदी  खुद बेचारे
लावारिस  कुत्तों को नहीं झेलनी पड़ रही।  वे भी परेशान हैंँ। जगह – जगह
उनके बीच इलाका दखल को ले लड़ाईयां चलती रहती है। कभी कार तो कभी बाइक के
धक्के से घायल होते रहते हैं। कमर टूट जाने से कोई सड़क पर घिसटता नजर
आता है  तो टांग टूट जाने के चलते कहीं कोई कुत्ता घंटों करुण क्रंदन
करता नजर आता है। उस रोज एक पिल्ले के लगातार रोने की आवाज हृदय को
द्रवित कर गया। क्योंकि वह कड़ाके की ठंड में आश्रय के लिए इधर से उधर
भटक रहा था। किसी ने कोई भारी चीज उसके पैरों पर दे मारी थी। जिसके दर्द
से वह कराह रहा था। गंभीर रूप से बीमार कुत्तों की हालत तो और भी दयनीय
हैं। जख्म के शिकार घायल कुत्ते  पूरे दिन इधर से उधर खदेड़े जाते हैं।
वाहनों की ठोकर से घायल कुत्तों और उनके पिल्लों का दारुण कष्ट संवेदनशील
मन को झकझोर कर रख देता है। लेकिन इंसान चाह कर भी उनकी ज्यादा मदद नहीं
कर सकता। ज्यादा से ज्यादा उन्हें भोजन – पानी दिया जा सकता है। वह भी एक
सीमा के भीतर ही।  यह भी हकीकत है कि सड़कों पर विचरने वाले आवारा
कुत्तों की सहायता करने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं भी  देश में गिनी – चुनी
ही है। इसलिए बेहतर यही होगा कि जिम्मेदार पदों पर आसीन हमारे नेता व
अधिकारी मिल कर लावारिस कुत्तों के मामले में एक ऐसी नीति बनाएं जो
नागरिकों के साथ ही इन कुत्तों के लिए भी हितकर साबित हो ।
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*लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार
हैं।——————————**——————————*
*————————-तारकेश कुमार ओझा,

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