वोटिंग लिस्ट के पुनरीक्षण को लेकर बवाल

कुमार कृष्णन

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटिंग लिस्ट के पुनरीक्षण को लेकर बवाल मचा हुआ है। कारण चुनाव आयोग अपने नागरिकों से उसकी नागरिकता का प्रमाण मांग रहा है। चुनाव आयोग की तरफ से वोटिंग लिस्ट का पुनरीक्षण का काम शुरू भी कर दिया गया था और इसके लिए जो नियम बनाए गए थे। उस पर विपक्ष चिंता में डूब गया था क्योंकि लोगों से भारत की नागरिकता साबित करने को कहा जा रहा था। विपक्ष ने चुनाव आयोग के नियम पर सवाल उठाए लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ने साफ कर दिया कि वो फैसला वापस नहीं लेंगे पर जैसे ही ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, चुनाव आयोग ने यू टर्न ले लिया।

सुप्रीम कोर्ट में 10 तारीख को सुनवाई होगी। वहीं 9 तारीख को बंद का  आह्वान किया गया है। अब स्थिति सड़क से लेकर अदालत वाली हो  गयी है।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स  की ओर से बिहार में चुनाव आयोग के तरफ से चलाए जा रहे विशेष पुनरीक्षण अभियान को लेकर कोर्ट में भी मामला ले जाया गया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के बिहार के संयोजक राजीव कुमार का कहना है कि बिहार में गरीब मतदाताओं के पास आधार कार्ड और राशन कार्ड है और जो 11 दस्तावेज मांगा जा रहा है वह जमा करना मुश्किल होगा।

 बिहार के वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के मामले में अब तक 9 याचिका दाखिल की जा चुकी है। राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी की लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा और एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इनके अलावा ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) और ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ ने भी ईसीआई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। राष्ट्रीय जनता दल सांसद मनोज झा ने अपनी रिट याचिका में कहा है कि ये फैसला न सिर्फ जल्दबाजी में लिया गया है बल्कि गलत समय पर भी लिया गया है। उनका मानना है कि इससे करोड़ों वोटर मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। जिससे वोट देने का उनका संवैधानिक अधिकार छिन जाएगा। इसके अलावा मनोज झा ने ये भी कहा है कि आयोग ने फैसला करने से पहले राजनीतिक दलों के साथ कोई बातचीत नहीं की। उन्होंने ईसीआई पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, अपारदर्शी बदलावों को सही ठहराने की कोशिश की जा रही है। इसके जरिए मुस्लिम, दलित और गरीब समुदायों को टारगेट किया जा रहा है। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या रूख अपनाता है, ये  देखने वाली बात होगी। 

बिहार में  वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए में ही फूट है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता और एनडीए सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने  बिहार में चुनाव आयोग द्वारा किए जा रहे वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर चिंता जताई। कुशवाहा ने कहा कि ईसीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मतदाता सूची में कोई भी वास्तविक मतदाता छूट न जाए। उन्होंने मतदाता सूची के पुनरीक्षण में समय की कमी पर भी सवाल उठाए। कुशवाहा ने प्रवासी मतदाताओं के मतदाता सूची से बाहर होने की आशंका व्यक्त की और कहा कि कई लोगों के पास चुनाव आयोग द्वारा उल्लिखित दस्तावेज नहीं हैं, जिससे उनमें घबराहट है।

राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में चलाए जा रहे विशेष पुनरीक्षण कार्यक्रम (एसआईआर) पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची से किसी भी वास्तविक मतदाता का नाम नहीं काटा जाना चाहिए। कुशवाहा ने कहा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण कोई नई बात नहीं है और यह पहले भी होता रहा है। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को जनसंख्या को देखते हुए यह अभ्यास एक या दो साल पहले शुरू कर देना चाहिए था।

कुशवाहा ने कहा कि बिहार एक ऐसा राज्य है जहां बहुत से लोग देश के विभिन्न हिस्सों में काम कर रहे हैं लेकिन वे बिहार के मतदाता हैं। उन्होंने कहा कि प्रवासी मतदाताओं में यह डर है कि उन्हें मतदाता सूची से बाहर कर दिया जाएगा। कुशवाहा ने कहा कि राज्य में रहने वाले लोगों के एक बड़े वर्ग में भी यही डर है। उन्होंने कहा कि बिहार में कई ऐसे लोग हैं जिनके पास ईसीआई द्वारा बताए गए दस्तावेज नहीं हैं। कुशवाहा ने कहा कि अब ऐसे लोगों में दहशत है कि उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा। 

हरनौत विधानसभा क्षेत्र, जिसमें मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का गांव कल्याण बिगहा भी शामिल है और जिसे नीतीश ने पहले भी कई बार जीता है, में ओबीसी कुर्मियों के साथ-साथ कुछ ईबीसी और ब्राह्मण परिवारों का वर्चस्व है। चुनाव आयोग की कवायद के कारण हाशिए पर पड़े ईबीसी जैसे लोगों को सबसे ज्यादा वंचित होने की आशंका है। कारण 10 फीसदी लोगों के पास ही चुनाव आयोग द्वारा मान्य दस्तावेज हैं ।

 चुनाव आयोग का यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14,19,21,325 और 326 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और उसके रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टोर्स रूल 1960 के नियम 21ए का उल्लंघन है.

मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्र को बाहर करके यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों पर नकारात्मक असर डालेगी। मतदाताओं के लिए न सिर्फ अपनी नागरिकता साबित करने के लिए, बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज पेश करने होंगे। चुनाव आयोग का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है। चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण को लागू करने के लिए अव्यवहारिक समय सीमा निर्धारित की है, विशेषकर निकट में नवंबर 2025 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों को देखते हुए। ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं था। जिनके पास विशेष सघन पुनरीक्षण आदेश में मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं।

चुनाव आयोग ने अपना फैसला वापस ले लिया है। वोटिंग लिस्ट में नाम शामिल कराने के लिए अब जन्म प्रमाण पत्र देने की बाध्यता नहीं हैं। सिर्फ फार्म भरकर जमा कराया जा सकता है और फार्म भरने में परेशानी आ रही हैं तो बीएलओ को घर पर बुलाया जा सकता है। दरअसल बिहार में वोटिंग लिस्ट में सुधार के नाम पर चुनाव आयोग की तरफ से विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान शुरू किया गया। वोटिंग लिस्ट में शामिल लोगों और जो नए वोटर बनने के योग्य है, उन सभी से जन्म का प्रमाण देने को कहा गया था। विपक्ष की तरफ से इसे चोरी छुपे देश में एनआरसी थोपने की कोशिश बताई जा रही थी। आनन फानन में इस तरह की कोशिश से बिहार में दो करोड़ लोगों का वोट देने का अधिकार छिन जाएगा। राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान दस्तावेजों को बाहर करके, यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों पर असंगत रूप से प्रभाव डालती है, जिससे उनके बाहर होने की संभावना अधिक होती है।इसके अलावा, पुनरीक्षण प्रक्रिया के तहत मतदाताओं के लिए न केवल अपनी नागरिकता साबित करने के लिए बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता अनुच्छेद 326 का उल्लंघन करती है।इन आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहने पर उनके नाम मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए जा सकते हैं या यहां तक कि उन्हें पूरी तरह से हटा दिया जा सकता है।

बिहार की कुल आबादी लगभग 13 करोड़ है। इनमे से कोई 8 करोड़ वयस्क हैं जिनका नाम मतदाता सूची में होना चाहिए। इनमे से सिर्फ़ 3 करोड़ के क़रीब लोगों का नाम 2003 की मतदाता सूची में था। बाक़ी 5 करोड़ को अपनी नागरिकता के प्रमाण जुटाने पड़ेंगे। उनमे से आधे यानी ढाई करोड़ लोगों के पास वो प्रमाणपत्र नहीं होंगे जो चुनाव आयोग माँग रहा है। मतलब इस ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ से अंतिम व्यक्ति के हाथ से वो एक मात्र अधिकार चला जाएगा जो आज भी उसके पास है — वोट का अधिकार। पहले नोटबंदी हुई, फिर कोरोना में देशबंदी हुई, अब वोटबंदी की तैयारी है। मतदाता सूची पुनरीक्षण के खिलाफ विपक्ष ने लामबंदी तेज कर दी है। महागठबंधन ने 9 जुलाई को बिहार में चक्का जाम का ऐलान किया है। इसमें लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी शामिल होंगे।

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा, ‘हमनेविशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज कराई है, जो कमजोर वर्गों को उनके मताधिकार से वंचित करने की साजिश है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह डर है कि राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) आगामी विधानसभा चुनाव हार सकता है।’

तेजस्वी यादव ने कहा कि विपक्ष ने निर्वाचन आयोग के साथ अपनी चिंताओं को साझा किया है, लेकिन पटना में अधिकारी कोई भी निर्णय लेने में शामिल नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘और हर कोई जानता है कि कौन फैसले ले रहा है।’ राजद नेता ने कहा, ‘हम बिहार के लोगों से सतर्क रहने की अपील करते हैं। हम उनके साथ हैं और 9 जुलाई को महागठबंधन, भाजपा नीत राजग को लाभ पहुंचाने की इस साजिश के विरोध में चक्का जाम करेगा।’बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं, जबकि पांच राज्यों – असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं।टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने कहा कि बिहार चुनाव के बहाने लाए गए ये संशोधन नियम दरअसल 2026 के बंगाल चुनाव को टारगेट करते हैं। इससे प्रवासी मजदूरों को भारी परेशानी होगी और नागरिकों को बार-बार अपनी नागरिकता साबित करनी होगी।

 बांग्लादेश और म्यांमा से आने वाले अवैध प्रवासियों के खिलाफ विभिन्न राज्यों में की जा रही कार्रवाई के मद्देनजर यह कवायद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

एनडीए के अंदर भी चुनाव आयोग की कोशिश पर सवाल उठ रहे थे लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार अपने फैसले से पीछे हटने को तैयार नहीं थे। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद भी चुनाव की प्रक्रिया और पारदर्शिता को लेकर विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच टकराव बना हुआ है। महाराष्ट्र हरियाणा में चुनाव आयोग पर सवाल उठने   के बिहार में पुनरीक्षण ने कटघरे में खड़ा कर दिया है। पुर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव का कहना है  कि चुनाव आयोग आरएसएस का दफ्तर हो चुका है।  चुनाव आयोग भगवान नहीं है, अलाउद्दीन का चिराग नहीं है। अब आर पार की लड़ाई होगी।

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा है कि दो गुजराती मिलकर आठ करोड़ बिहारियों का वोट का अधिकार छीनने जा रहे हैं। इन दोनों को बिहार, लोकतंत्र और संविधान से सख्त नफरत है, जागो,आवाज उठाओ, लोकतंत्र ओर संविधान बताओ। कांग्रेस, राजद, वामदल समेत सारा विपक्ष ताल ठोंक कर मैदान में आ चुका है। तो अब उम्मीद बंध गई है कि बिहार में चुनाव की वो चोरी नहीं हो पाएगी, जिसके आरोप राहुल गांधी ने महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में लगाये हैं और बिहार में भी होने की आशंका जाहिर की थी।

इस बीच खबर  है कि चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के  बाद सुबह जब बिहार में लोग के घर अखबार पहुंचता है तो वो हैरान रह जाते हैं। अखबार में पूरे पेज का एड छपा हुआ था। जो चुनाव आयोग की तरफ से जारी किया गया है और इसमें साफ साफ लिखा है कि पहला : गणना प्रपत्र बीएलओ से प्राप्त होते ही तत्काल भर कर आवश्यक दस्तावजे और फोटो के साथ बीएलओ को उपलब्ध करा दें और दूसरा : अगर आवश्यक दस्तावेज और फोटो उपलब्ध नहीं हों तो सिर्फ गणना प्रपत्र भरकर बीएलओ को उपलब्ध करा दें। गणना प्रपत्र आनलाइन भी भरा जा सकता है। इसके लिए क्यू आर कोड जारी किया गया है यानी जो लोग बिहार से बाहर रहते हैं। वो भी गणना प्रपत्र भर सकते हैं। इसे आनलाइन ही जमा कराया जा सकता है जबकि पहले इसे बूथ पर जमा कराने के निर्देश थे। यानी चुनाव आयोग की तरफ से अपने पहले के फैसले से पूरी तरह से यू टर्न ले लिया गया है और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सुप्रीम कोर्ट को ही माना जा रहा है ।

एनडीए में भाजपा के साथी दल भी इस कवायद से होने वाले नुक़सान को समझ रहे थे लेकिन खुल कर कहने की हिम्मत नहीं दिखा रहे थे। ख़ास तौर पर जनता दल (यू) के कई नेताओं का मानना था कि इस तरह की दस्तावेज़ की शर्तों से उनके अति पिछड़े और महिला मतदाताओं पर काफ़ी बुरा असर पड़ेगा। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने सरकारी कर्मचारी/पेंशनर पहचान पत्र, जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, मैट्रिक का सर्टिफिकेट, डोमिसाइल, वन अधिकार और ओबीसी, एससी, एसटी प्रमाणपत्र, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, पारिवारिक रजिस्टर, और जमीन या मकान आबंटन प्रमाणपत्र इन दस्तावेज के आधार पर वोटर को वैध या अवैध निश्चित करने का फ़ैसला किया था। इसमें कहीं भी आधार कार्ड, पैन कार्ड, मनरेगा या राशनकार्ड का जिक्र नहीं था जबकि हिन्दुस्तान की कम से कम 90 प्रतिशत आबादी अपनी पहचान बताने के लिए इन्हीं में से कोई एक कागज़ दिखाती है।

कोरोना वैक्सीन लगवाने से लेकर, स्कूल-कॉलेज में दाखिला, बैंक खाता खोलने, पासपोर्ट बनवाने या हवाई जहाज से सफ़र करने तक हर जगह पहचान के नाम पर आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशनकार्ड ही दिखाया जाता है। जिन दस्तावेज़ को रहने, खाने, काम करने, सफर करने, आजीविका के लिए ज़रूरी माना गया, उनमें से किसी को भी वोट डालने के लिए जरूरी क्यों नही माना गया, यह सवाल भी उठा। अगर चुनाव आयोग किसी को वोट देने के योग्य नहीं मानेगा, तो इसका मतलब है कि वह इन्हें भारत का नागरिक भी नहीं मानेगा। इसमें एक बड़े चुनावी घोटाले की बू आई, जिसके बाद ही विपक्ष ने बड़ी तेजी से इस मसले पर मोर्चा खोला और अब इसमें उसे जीत भी मिली है।

25 जून से लागू हुए इस आदेश में रोजाना की तब्दीलियां हो रही हैं, जो बता रही हैं कि इस फैसले को हड़बड़ी में लिया गया है। ठीक वैसे ही जैसे आधी रात को संसद लगाकर जीएसटी तो लागू की गई थी, फिर रोज़ाना नियम बदले जाते थे। जब नोटबंदी लागू की गई, उसके बाद भी यही आलम रहा कि बार-बार नियम बदले गए और अब मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण अभियान में भी यही हो रहा है। ताज़ा बदलाव यही है कि अब दस्तावेज दिखाना ही जरूरी नहीं है।

मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर चुनाव आयोग के तेवर कई बार ढीले पड़े हैं लेकिन याद रखने की बात यह है कि अब भी इसने इसमें एक पेंच लगा रखा है। चुनाव आयोग के विज्ञापन में यह बात बताई गई है कि अगर आप जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराते हैं तो निर्वाचन निबंधन पदाधिकारी यानी ईआरओ को आवेदन को प्रोसेस करने में आसानी रहेगी। इसके ठीक बाद चुनाव आयोग का विज्ञापन कहता है कि अगर आप जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाते हैं तो निर्वाचक निबंधन पदाधिकारी यानी ईआरओ द्वारा स्थानीय जांच या अन्य दस्तावेज के साक्ष्य के आधार पर निर्णय लिया जा सकेगा। यानी अब दस्तावेज देना ज़रूरी तो नहीं रहा लेकिन अगर चुनाव आयोग का अधिकारी यह मान ले कि आपको दस्तावेज की ज़रूरत है तो उसे देना पड़ेगा।

कुमार कृष्णन 

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