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वंदे मातरम्: अनिवार्यता के पार वाले क्षितिज

मनोज कुमार श्रीवास्तव

वंदे मातरम् विवाद से संबंधित एक महत्वपूर्ण प्रश्न इस गीत को अनिवार्य बनाए जाने का है। औदार्य के पक्षधर वंदे मातरम् तो क्या जन-गण-मन को भी अनिवार्य बनाने के पक्ष में नहीं है। दूसरी ओर अनिवार्य बनाने के पक्षधरों का कहना है कि देशभक्ति वैकल्पिक नहीं होती और एक लिबरल अनिवार्यता के कई जटिल कानूनी पहलू हैं? उनके सामने क्या सवाल यह खड़ा किया गया कि अनिवार्यता के तर्क अनपढ़ों या आदिवासियों पर लागू किए जा सकते हैं? इसके समानान्तर तर्क वे यह देते हैं कि अज्ञानता क्षम्य है लेकिन दुराग्रह और हठ क्षम्य कैसे हो सकता है? अनिवार्य बनाने के कई उदाहरण हैं अगस्त, 1999 में जापान में राष्ट्रगीत किमिगायो का गायन कानून के जरिए अनिवार्य बना दिया गया। तोकियो मेट्रोपोलिटन शिक्षा बोर्ड ने अक्टूबर, 2003 में पब्लिक स्कूल समारोहों में उसे गाने के विस्तृत प्रोटोकाल बनाए। वहां तो जापानी ईसाई भी- तकलीफ के साथ ही सही-सम्राट को ईश्‍वर के ऊपर मानने के लिए बाध्य हैं। यह भी सच है कि वहां शिक्षा मंत्रालय के कड़े रुख के कारण कई शिक्षकों को इस आधार पर अपनी नौकरी खोनी पड़ी है कि उन्होंने राष्ट्रीय गीत नहीं गवाया। 2003 से 2005 तक 340 शिक्षकों को गीत गाने से मना करने पर दंडित किया गया है जबकि फुजिता नामक एक शिक्षक को ‘कन्विक्ट’ भी किया गया है।

पेंसिलवेनिया में 16 अक्टूबर, 2001 को राज्य विधानसभा ने एक कानून पारित कर पब्लिक और प्राइवेट स्कूलों के विद्यार्थियों को प्रतिदिन राष्ट्रगीत गाना अनिवार्य बनाया है। वहां अमेरिकी झंडे को कक्षा में प्रदर्शित करने का भी नियम बनाया गया है। वहां भी राष्ट्रीय गीत को धर्म से बताया गया और इसे अपनी डेमोक्रेसी के प्रति कमिटमेंट की तरह देखा गया। 17 अक्टूबर को न्यूयार्क सिटी में स्कूल बोर्ड ने एकमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित किया। वहां भी न्यूयार्क सिविल लिबर्टीज यूनियन के डोना लिबरमैन ने इसका विरोध इस आधार पर किया कि भाग न लेने वाले लोग बलि का बकरा बनेंगे। अमेरिका में हर बेसबाल गेम के पहले राष्ट्रगीत होता है। फ्रांस में अभी 28 अक्टूबर 2009 को स्कूलों में राष्ट्रगीत गाना सिर्फ इसलिए प्रवर्तित किया जाने की खबर थी ताकि इस्लामिक फंडामेंटलिज्म से लड़ा जा सके।

ऑस्ट्रेलिया में जब राष्ट्रगीत का गाना अभी 26 जनवरी, 2006 को न्यू साउथवेल्स और तस्मानिया के स्कूलों में अनिवार्य बनाया गया तो वहां भी आदिवासियों की ओर से इसका विरोध किया गया, लेकिन वहां के प्रीमियर श्री मौरिस आइऐमा ने इसे जरूरी माना और इसे रेसिज्म, गुंडागर्दी और ठगी को जड़ से उखाड़ फेंकने का हथियार बताया। कोनुला, ब्राइटन और मैराउब्रा शहरों में इस बात पर दंगे भी हो गए। इसके बावजूद सरकार दृढ़ रही। वहां मुस्लिम समुदाय ने इसका स्वागत किया। मल्टीकल्चरल कौंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने भी इसे स्वागतेय कहा। मैक्सिको में राष्ट्रगीत गाने में कुछ पदखंडों के बाबत गड़बड़ कर जाने के मामलों में एक महिला पर अभी 40 डालर का जुर्माना किया गया है। मलेशिया में फिल्म की शुरुआत में ही सिनेमा दर्शकों को खड़े होकर राष्ट्रगीत गाना जरूरी बनाया गया है। इसे किंटरगार्डन, स्कूल, निजी उच्चतर, विद्या संस्थाओं और सरकारी कार्यक्रमों में भी जरूरी माना गया है। इसे सरकारी कार्यक्रमों में या उन प्राइवेट सेक्टर कार्यक्रमों में भी जरूरी माना गया है। यह सरकारी कार्यक्रमों में या उन प्राइवेट सैक्टर कार्यक्रमों में जिनमें सरकारी अधिकारी भाग लेते होते हैं, में भी अनिवार्य बनाया गया है।

अभी उड़ीसा में 60 जेलों में बंदी लोग जन-गण-मन के साथ अपने दिन की शुरुआत करें, इस आशय का प्रयोग किया गया। जेल अधिकारी बताते हैं कि राज्य की जेलों में होने वाली हिंसा में इससे भारी कमी आयी। राज्य के आई.जी. जेल श्री एल.सी. अमरनाथ ने कहा कि इसने उन कैदियों की दृष्टि में एक सकारात्मक परिवर्तन लाया और उन्हें अपने संकीर्ण जीवन से बाहर देखने के लिये प्रेरित किया। यह प्रयोग जेल रिफार्म का अंग था- ‘अनुशासन और राष्ट्र निष्ठा’ बढ़ाने के उद्देश्य से और यह काफी सफल रहा।

लेकिन कुछ चीजें हमें चिन्ता में डालती हैं। संविधान में नागरिकों के जो मूलभूत कर्तव्य बताए गए हैं, उनमें राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रीय एंथेम के प्रति तो सम्मान की बात कही गई है, लेकिन पता नहीं क्यों नेशनल सांग का उल्लेख नहीं किया गया है। जहां तक तक नेशनल एंथेम की बात है, वहां भी बिजोय इमेनुएल वि. स्टेट ऑफ केरल में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बहुत छूट दे दी है। इस प्रकरण में सवाल यह था कि क्या जिहोवा’स विटनेसेस के नाम से जाने जाने वाले धार्मिक समूह से सम्बद्ध स्कूल के छात्रों को नेशनल एंथेम गाने के लिए बाध्य करना संविधान के अनुच्छेद 25 एवं 26 के अंतर्गत प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है? सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ‘है’। माननीय सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ‘कानून का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि नेशनल एंथेम गाना अनिवार्य ही हो।’ मुझे यह भी याद है कि ‘ट्रेड फेअर अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष मोहम्मद युनूस ने सर्वोच्‍च न्यायालय के जस्टिस चिनप्पा रेड्डी और जस्टिस एम.एम. दत्त को इस निर्णय के कारण पद से हटाने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि ऐसे इंडियन जज न इंडियन हैं, न जज हैं। उनके इस कथन के आधार पर उन पर सर्वाच्च न्यायालय की अवमानना का मुकदमा भी चलाया गया था लेकिन 8 मई 1987 को यह अवमानना याचिका खारिज हो गई।

मेरा भी किसी तरह की अवमानना का कोई इरादा नहीं है। यह सही है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो नेशनल एंथेम या नेशनल सांग का गाया जाना अपरिहार्य बनाता हो। लेकिन स्वयं संविधान तब क्या है? संविधान कानून के अधीन है या कानून संविधान के? या संविधान अपने आप में कोई निष्प्राण शरीर है कि जिसमें कानून या एक्ट के द्वारा ही प्राण-प्रतिष्ठा होती है। संविधान किसी स्वतंत्र देश का सुप्रीम लॉ है। क्या यही संविधान अपनी प्रस्तावना में ही ‘सेकुलर’ शब्द का प्रयोग नहीं करता? क्या राष्ट्र गीत का गाना अपने आप में एक ‘सेकुलर एक्ट’ नहीं है? क्या राष्ट्रीयता धार्मिक अतिक्रमणों से अटे-सटे गली-कूचों से किसी तरह अपनी राह बनाती हुई निकलेगी? क्या यही संविधान, जो ‘सुप्रीम लॉ ऑफ द लैंड’ है, अपनी प्रवर्तनात्मक और शैक्षणिक संक्रियाओं के प्रति उदासीन रहेगा? प्लेटो-अरस्तू ने बहुत पहले अपने संवाद में यह निर्णीत किया था legislators make citizens good by forming their habits.) विधायिका अपने नागरिकों की आदतों का निर्माण कर उन्हें अच्छा बनाती है। इसी उद्देय से संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया। इन मौलिक कर्तव्यों में से एक नेशनल एंथेम के प्रति सम्मान दिखाना है और दूसरा उन आदर्शों के प्रति जिन्होंने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया। वंदेमातरम् से ज्यादा किस दूसरे आदर्श ने स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया? इसे तो गाते हुए लोग फांसी के फंदे चूमते रहे। क्या हम यह कहना चाहते हैं कि भारत में प्राप्त धार्मिक अधिकार ‘संप्रभु’ हैं और उन पर किसी तरह की तार्किक सीमाएं(reasonable restrictiose limitations) लागू नहीं की जा सकती? क्या हम यह कहना चाहते हैं कि मौलिक अधिकार मौलिक कर्तव्यों से सर्वथा मुक्त होकर अस्तित्व और सार्थकता में बने रह सकते हैं? तो वह कौन न्यायिक प्रतिष्ठान था जो इन दोनों को (complementary) और (supplementary to each other) कह रहा था? चंद्रभान वाले प्रकरण में किस न्यायिक अधिष्ठान ने यह कहा था: (it is a fallacy to think that under our constitution there are only rights and no duties.)

क्या प्रत्येक राष्ट्रगीत अपने आप में एक textual icon नहीं है? एक तरह की शब्द-मूर्ति? तो जो मूर्तिभंजन(iconoclasm) को ही अपनी अस्मिताई पहचान मानते हैं, वे यह काम प्रत्येक उस देश में क्यों नहीं करते जहां राष्ट्रगीत नाम की कोई चीज है। उदाहरण के लिए नाइजीरिया। वहां तो नाइजीरिया राज्य के प्रति नागरिक के ‘आब्लिगेशंस’ में से ये भी है कि वे राष्ट्रगीत को गाने में गर्व करें और उसकी अंतर्वस्तु (content) का आदर करें। यही बात वहां राष्ट्रध्वज और अन्य ‘राष्ट्रीय प्रतीकों’ के बारे में हैं। नाईजीरिया कोई हिंदू या ईसाई राज्य नहीं है।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं विचारक हैं)