प्रवक्ता न्यूज़

“वर्धा हिन्दी शब्दकोश के बहाने से हिन्दी के विकास के संबंध में विचार”

-डॉ. मधुसूदन-
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प्रो. महावीरजी जैन का आलेख पढ़ने पर, उसी आलेख के एक बिंदू पर ही लक्ष्य़ केंद्रित कर, यह अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करता हूं। मात्र तर्क के आधार पर यह प्रस्तुति रहेगी।
(एक) प्रो. जैन कहते हैं।
प्रो. जैन: “स्वाधीनता के बाद हमारे राजनेताओं ने हिन्दी की घोर उपेक्षा की।
पहले यह तर्क दिया गया कि हिन्दी में वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली का अभाव है। इसके लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग बना दिया गया।
काम सौंप दिया गया कि शब्द बनाओ।
आयोग ने तकनीकी एवं वैज्ञानिक शब्दों के निर्माण के लिए जिन विशेषज्ञों को काम सौंपा उन्होंने जन प्रचलित शब्दों को अपनाने के स्थान पर संस्कृत का सहारा लेकर शब्द गढ़े। शब्द बनाए नहीं जाते। गढ़े नहीं जाते। लोक के प्रचलन एवं व्यवहार से विकसित होते हैं।”
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मुझे (मधुसूदन को) जिन शब्दों पर आपत्ति है, वे हैं-
“उन्होंने जन-प्रचलित शब्दों को अपनाने के स्थान पर संस्कृत का सहारा लेकर शब्द गढ़े।शब्द बनाए नहीं जाते। गढ़े नहीं जाते। लोक के प्रचलन एवं व्यवहार से विकसित होते हैं।”
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==प्रो. जैन जो कहते हैं, उसे दो अंशों में बाँट कर सोचते हैं। क और ख।
(क) “उन्होंने जन प्रचलित शब्दों को अपनाने के स्थान पर संस्कृत का सहारा लेकर शब्द गढ़े।
(ख) शब्द बनाए नहीं जाते। गढ़े नहीं जाते। लोक के प्रचलन एवं व्यवहार से विकसित होते हैं।”
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(क) “जन प्रचलित” – यह जन कोई एक व्यक्ति नहीं है। और अनेक व्यक्ति यदि प्रचलित करते हैं, तो, क्या वे एक ही शब्द जो सर्वमान्य हो, ऐसा शब्द प्रचलित कर सकते हैं?
(क१) और प्रचलित कैसे करेंगे? जब प्रत्येक का अलग शब्द होगा, तो, अराजकता नहीं जन्मेगी? और यदि ऐसा होता है, तो वैचारिक संप्रेषण कैसे किया जाए?
(ख) शब्द बनाए नहीं जाते। गढे नहीं जाते?
अनियंत्रित रीति से शब्द अपनाने वाली भाषाएं दीर्घ काल टिकती नहीं है।
(केल्टिक भाषा का इतिहास यही कहता है)
अंग्रेज़ी भाषा का इतिहास भी ३ अलग अवस्थाओं से आगे बढा है।
(पुरानी अंग्रेज़ी आज कोई भी अंग्रेज़ समझता नहीं है।)–खिचडी भाषा अंग्रेज़ी।

देखिए: “खिचड़ी भाषा अंग्रेज़ी”
“हिन्दी हितैषियों के चिन्तनार्थ”
“हिंदी अंग्रेज़ी की टक्कर” १, २, और ३
शब्द वृक्ष १,२,३,४,५,
शब्द रचना पर ३-४ आलेख
प्रायः ४१ आलेख जुड़े हुए विषयों पर डाले हैं।

(दो) गढ़े गएं शब्दों के उदाहरण
डॉ. मधुसूदन===>(एक) निम्न गढे गये संस्कृत शब्द देखिए। ये सारे गढे गये हैं। स्व. डॉ. रघुवीर जी के नेतृत्व में कार्य करनेवाले संस्कृतज्ञों ने गढ़े हैं; ऐसा मानता हूँ।
शब्दों को आज समझने में विशेष कठिनाई मुझे नहीं लगती। पर कुछ कठिनाई पाठकों को हो सकती है।
ऐसी कठिनाई हमारी हिंदी-संस्कृत की अवहेलना का ही परिणाम है। जितने वर्ष हम अंग्रेज़ी में लगाते हैं, उससे आधे वर्ष भी यदि हम हिंदी/संस्कृत को देंगे, तो ऐसी कठिनाई नहीं होगी। यह प्रबंधित ढंग से होना चाहिए।

हिंदी और संस्कृत गत ६६ वर्षों में उपेक्षित हुयी है, उसी के कारण आज साधारण पाठक भी ऐसी संज्ञाएं समझ ने में कठिनाई अनुभव कर सकता है।
अंग्रेज़ी शब्दों के साथ तुलना करके ही, जाँच कर निर्णय करना होगा। मेरी दृष्टि में, एक ओर, हमारा हिन्दी का शब्द प्रायः अपना अर्थ प्रकट कर देता है, (जो स्थूल रूप से सारी प्रादेशिक भाषाओं में भी चल सकता है) दूसरी ओर अंग्रेज़ी शब्द दिया है। उसकी लम्बाई देख लीजिए।

शुद्ध भाषा ही प्रोत्साहित की जाए। जनता उसे अपनी अपनी शैली में बोलेगी। पर मानक-भाषा अंतर-प्रदेशीय वैचारिक आदान-प्रदान के लिए काम आएगी।
(तीन) मॉनियर विलियम्स
मॉनियर विलियम्स कहता है कि “भारत की सभी भाषाएं संस्कृत के जितनी निकट है, उतनी तो यूरोप की भाषाएं भी लातिनी के निकट नहीं है।”

मैं निम्न प्रत्यक्ष प्रमाण के उदाहरण जिन्हें कुछ संस्कृत समझ में आती है, उनके लिए दे रहा हूँ।

(चार) डॉ. रघुवीर

ये शब्द चयन, डॉ. रघुवीर जी के शब्द कोश से संकलित है। डॉ. रघुवीर ने कांग्रेस में रहकर नेहरू जी को “राष्ट्र भाषा हिन्दी” के पक्ष में समझाने में दिन रात परिश्रम करके सारे प्रमाण प्रस्तुत किए थे। अंत में विफलता और निराश होकर कांग्रेस से त्याग पत्र देकर अलग हो गये थे। दो लाख शब्द उन्हों ने बनाए थे; या उनके नेतृत्व में गढ़े गए थे।
आप द्वारा, कुछ शब्द क्लिष्ट माने जा सकते हैं, पर शब्द रूढ होनेपर अपनी क्लिष्टता खो देंगे।

(पाँच) पू. गुरूजी
पू. गुरूजी ने कहा हुआ पढ़ा है कि “जिस दिन स्वतंत्र हुए उसी दिन राष्ट्र गीत, राष्ट्र ध्वज इत्यादि के साथ साथ राष्ट्र भाषा भी घोषित की जाती तो आज यह राष्ट्र भाषा की समस्या ही खडी ना होती।”

(छः) शब्दों के उदाहरण
क्या निम्न शब्द प्रचलित नहीं हो सकते? कुछ तो आज भी पढ़ने में आते ही हैं। आरंभ में कठिन अवश्य लगेंगे। पर कुछ समय जनता को बार-बार उपयोग करने दीजिए, रूढ़ हो जाएंगे। डॉ. रघुवीर के शब्द कोश से आए हुए है। अनेक शब्द नये होंगे।

(सात) प्रत्यक्ष प्रमाण

(१)President=राष्ट्रपति,
(२)Vice-President=उप-राष्ट्रपति,
(३)Governor=राज्यपाल,
(४)Lieutenant Governor=उप-राज्यपाल
(५)Chief Commissioner= मुख्य आयुक्त
(६)His Excellency=महामहिम
(७)Honourable= माननीय
(८) Prime Minister= प्रधान मन्त्री,
(९) Deputy Prime Minister= उप-प्रधान मन्त्री
(१०) Chief Minister= मुख्य मन्त्री
(११) Deputy Chief Minister= उप मुख्य मन्त्री,
(१२) Minister in charge= प्रभारी मन्त्री
(१३) Minister of State= राज्य-मन्त्री
(१४) Deputy Minister= उप-मन्त्री
(१५)Minister of Parliamentary Affairs= संसद्-कार्य मन्त्री
(१६) Cabinet=मन्त्रिमण्डल
(१७)Ministry=मन्त्रालय
(१८)Parliament=संसद,
(१९)Legislative Council=विधान-परिषद
(२०) Legislative Assembly= विधान सभा
(२१) Foreign Minister=विदेश मन्त्री,
(२२)Home Minister= गृह-मन्त्री
(२३) States Minister= राज्य मन्त्री
(२४) Defense Minister= रक्षा मन्त्री
(२५)Communications Minister= संचार मन्त्री
(२६)Rehabilitation Minister= पुनर्वास मन्त्री
(२७) Agriculture Minister= कृषि मन्त्री
(२८)Finance Minister= वित्त मन्त्री
(२९)Revenue Minister= राजस्व मन्त्री
(३०)Education Minister= शिक्षा मन्त्री
(३१) Law Minister= विधि मन्त्री
(३२) Food Minister=अन्न मन्त्री
(३३)Secretary= सचिव
(३४) Secretary to Government=शासन सचिव
(३५)Chief Secretary=मुख्य सचिव
(३६)Joint Secretary=संयुक्त सचिव
(३७)Assistant Secretary=सहायक सचिव
(३८)Extra Secretary=अतिरिक्त सचिव
(३९)Under Secretary=उप-सचिव
(४०)Secretariat=सचिवालय
(४१)Department=विभाग
(४२)General Administration Department=सामान्य प्रशासन विभाग
(४३)Finance Department=वित्त विभाग
(४४)Political and Military Department=राजनैतिक तथा सैनिक विभाग
(४५)Home Department=गृह विभाग

यह प्रत्यक्ष प्रमाण देखिए। और अपना निर्णय कीजिए।
कुछ शब्द क्लिष्ट हो सकते हैं, उनपर संवाद कर के ठीक किया जाए।
उसी पर सारा तर्क प्रतिष्ठित करना भी कैसे सही होगा?
प्रो. जैन के आलेख के कारण जिस चर्चा ने जन्म लिया है, वह स्वागत योग्य है। इसलिए भी उनका धन्यवाद करता हूँ।

इस श्रेणी में बहुत कुछ कहने योग्य है। निरूक्त, निघण्टु, संस्कृत की अद्वितीय शब्द रचना विधि, पाणिनि का अद्वितीय व्याकरण, हमारी लघु, मध्य, और पूर्ण वैयाकरण-सिद्धान्त कौमुदियाँ, इत्यादि का अनमोल भण्डार हमारे पास है।
मैंने भी कुछ झाँक कर ही देखा है; उसी से आँखें चकाचौंध हैं। और फिर जाना कि संगणक (कम्प्यूटर) का परिचालन भी पाणिनि व्याकरण के बिना आगे नहीं बढ पाया। नहीं लिखता तो यह गूंगेका गुड कोई हिन्दी में बाँट नहीं रहा था। सोचा,
यह गूंगेका गुड बाँटा जाए।
बाँटने ले लिए, हिन्दी में लिखना ही उचित लगा। गुजराती में मर्यादित हो जाता। ४% भारत ही गुजराती समझता है।
क्या हम अपनी विरासत को देखे बिना ही त्याग दें? पहले ही, बहुत बहुत देरी हो चुकी है; ये प्रामाणिकता से मानता हूँ। न मेरा व्यवसाय, हिन्दी-संस्कृत से जुड़ा है। न मुझे कोई अनुदान देकर लिखवाता है। (कुछ प्रश्न जो पूछे गये हैं)
चर्चा बिन्दुवार होनी चाहिए। बिना बिन्दु संवाद सच्चाई प्राप्त करने में सफल न होकर चर्चा को दिशा-भ्रमित कर देता है। फैला देता है।
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(आँठ) प्राच्यविद (भाषा विज्ञानी) फ्रिट्ज़ स्टाल कहते हैं कि
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“अब यदि हम पीछे मुड के देखें, तो निःसंदेह, दृढ़तापूर्वक कह सकते हैं कि ईसा पूर्व ५वीं के, भारतीय भाषा विज्ञानी १९वीं शती के पश्चिमी भाषा विज्ञानियों की अपेक्षा अधिक जानते और समझते थे।”
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इस युग के युगान्तरकारी भाषा विज्ञानी नओम चॉम्स्की कुछ अलग शब्दों में यही बात कहते हैं।
ध्यान रखें नओम चॉम्स्की इस युग के सर्वोच्च भाषा विज्ञानी माने जाते हैं।

(नौ) मॉनियर विलियम्स
अंग्रेज़ी-संस्कृत की डिक्षनरी संपादित करनेवाले विद्वान हमारी शब्द रचना के विषय में निम्न विधान करते हैं।
==> कहते हैं कि संस्कृत के पास १९०० धातु हैं। और ५ स्तरपर विस्तरित होनेवाली गुणाकार की प्रक्रियाएँ हैं। उसे किसी भी क्रिया के लिए शब्द के लिए विशेष कठिनाई नहीं होगी। उद्धरण जो अंग्रेज़ी में है, नीचे ओअढें।

(Monier=Williams) (A Dictionary-English and Sanskrit)

===>”It might reasonably be imagined that, amongst a collection of 1900 roots, each capable of five fold multiplication, besides innumerable nominals, there would be little difficulty in finding equivalents for any form of English verb that might present itself”.