—विनय कुमार विनायक
हम वसुधैव कुटुम्बकम की बातें जोर-शोर से करते
मगर जाति वर्ण के घेरे से बाहर निकल नहीं सकते
वसुधा को कुटुम्ब तभी बना सकते हैं हम सब भाई
जब जाति विरादरी से बाहर विवाह करने लगे सब कोई!
बेटी की संज्ञा अगर दुहिता या दुर्हिता होती
तो शब्दार्थ सिर्फ गाय दुहने वाली मत समझो
बेटी का हित दूर रहने व दूर से आने में होती!
दूर से बेटी को लाओ दूर में बेटी को ब्याहो बसाओ
बेटी पतोहू अपने गोत्र जाति वर्ण के बाहर से लाओ
अगली पीढ़ी के लिए कुछ नवीन सद गुणसूत्र पाओ
कलह कुरीति अनुवांशिक बीमारी से मुक्त हो जाओ!
ब्राह्मण ब्राह्मण के मध्य विवाह होने से ब्राह्मणवाद बढ़ता,
बनिए बनिए में विवाह से बनियागिरी नहीं गिरती ना घटती,
क्षत्रिय क्षत्रिय बीच शादी में जोश खरोश वृद्धि से क्षति होती,
शूद्र दलित में विवाह से दैन्य भाव का अभाव होगा नहीं कभी!
जब हमारे पूर्वज वसुधैव कुटुम्बकम की बातें करते थे,
तब उनके कुटुम्ब वसुधा भर में विभिन्न वर्ग से होते थे,
भृगु ब्राह्मण ब्रह्मा अहूरमाजदा वरुण के पुत्र ईरानी थे,
सिंधु के इस पार सूर्यवंशी चंद्रवंशी क्षत्राणी को ब्याहते थे!
भार्गव ऋचिक की पत्नी विश्वामित्र की बहन सत्यवती थी,
भार्गव ऋषि च्यवन की शादी राजकुमारी सुकन्या से हुई थी,
भार्गव गुरु परशुराम की माता सूर्यवंशी क्षत्रिय कन्या रेणुका थी,
यदु के पिता क्षत्रिय राजा ययाति ने भृगुपुत्र शुक्राचार्य की पुत्री
देवयानी ब्राह्मणी की हाथ थामी थी, दानवी शर्मिष्ठा भी रानी थी!
शकिस्तान के शाकद्वीपी शक, मगध के मग याजक के संबंधी थे,
कुरुवंशी पाण्डव भीमसेन ने नागालैण्ड की डीमासा जनजाति कन्या
हिडिम्बा से विवाह किया था और अर्जुन ने मणिपुर की मैतेई कन्या
चित्रांगदा और नाग कन्या उलूपी तांखुल जनजाति की मांग भरी थी!
अरुणाचल भीष्मकपुर की मिजो मिश्मी जनजाति की राजकन्या रुक्मिणी
कृष्ण की भार्या पटरानी,रुसी ऋक्षराज कन्या जामवंती भी कृष्ण की महारानी
अरब ईरान इराक सप्तसिन्धु भारत कश्यपमेरु के नाग पिशाच आर्य यक्ष
राक्षस दैत्य दानव, गांधार के गंधर्व किन्नर, तिब्बत चीन के किरात मंगोल बर्मी
नेपाली भूटानी थाई इंडोनेशियाई सिंहली लंकाई सभी सगे संबंधी थे आपस में!
आज भी वसुधैव कुटुम्बकम की बातें जोर-शोर से उठाई जाती
मगर वसुधैव कुटुम्बकम कहाँ है जी? आज अलग-अलग जाति
अलग-अलग धर्म मत मजहब, अलग-अलग ईश्वर अल्ला खुदा रब,
स्वजाति रक्त नस्ल का पंथ बदलते ही मारकाट की बातें होने लगती! —
विनय कुमार विनायक