कविता : अब हैरान हूँ मैं ….

जीवन की इस भीड़ भरी महफ़िल में,

एक ठहरा हुआ सा वीरान हूँ मै,

क्यों आते हो मेरे यादों के मायूस खंडहरों में ,

अब चले जाओ बड़ा परेशान हूँ मै …

तुमसे मिलकर ही सजोयी थी चंद खुशियाँ मैंने,

पर तुम्हें समझ ना पाया ऐसा अनजान हूँ मैं,

बड़ा मासूम बनकर उस दिन जो बदजुबानी की थी,

तो आज गैर क्यों ना कहें कि बड़ा बदजुबान हूँ मै,

तुने अच्छा किया जो मुझे जिल्लतें बेरुखियाँ दी,

मुझे तो खुशी है की तेरी जिल्लत भरी जुबां हूँ मै,

जिस शाम के बाद किसी सहर की उम्मीद ही ना हो,

वैसा ही मनहूस ढलता हुआ एक शाम हूँ मैं,

मुर्दों के जले भी जहां अब जमाने हो गए,

ऐसा ही सुनसान एक श्मशान हूँ मैं,

मै तुमको भूल गया इसमे तो मेरी ही साजिश थी,

पर तू जो भूल गया मुझको तो अब हैरान हूँ मैं…….

-शिवानन्द द्विवेदी ‘सहर’

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मूलत: सजाव, जिला - देवरिया (उत्तर प्रदेश) के रहनेवाले। गोरखपुर विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र विषय में परास्नातक की शिक्षा प्राप्‍त की। वर्तमान में देश के तमाम प्रतिष्ठित एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादकीय पृष्ठों के लिए समसामयिक एवं वैचारिक लेखन। राष्ट्रवादी रुझान की स्वतंत्र पत्रकारिता में सक्रिय एवं विभिन्न विषयों पर नया मीडिया पर नियमित लेखन। इनसे saharkavi111@gmail.com एवं 09716248802 पर संपर्क किया जा सकता है।

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