विद्युत व्यापार समझौता: हंगामा है क्यों बरपा

डा. श्वेता दीप्ति :नेपाल और भारत के बीच होने वाली सम्भावित उर्जा नीति अभी जोर शोर से चर्चा में है ।  विरोध की राजनीति पूरी पराकाष्ठा पर है, होना भी चाहिए तभी तो देश के नागरिकों और नेताओं की देशभक्ति और देश के प्रति चिन्ता साबित होगी । क्या र्फक पडता है हमारे पास बिजली नहीं है तो, लालटेन तो है, जिसमें सौ रु. लीटर का तेल डालकर आम जनता रोशनी पा लेगी । यह शांतिदूत का देश है और इसलिए हम शांति के साथ जी रहे हैं । मंहगाई है, कोई शिकायत नहीं, बिजली नहीं है कोई शिकायत नहीं, नौकरी में तलब इतनी है कि किराए की समस्या हल हो जाय तो काफी है किन्तु इसकी भी कोई शिकायत नहीं क्योंकि हम ऐसे ही जीने के आदी हो चुके हैं । लेकिन हाँ हम अपनी कमियों को नजरअंदाज कर दूसरों को गाली तो दे ही सकते हैं ।
हम कहाँ पिछड रहे हैं, हममें क्या कमी है, हम क्या चाहते हैं और किसी से काम लेना है तो किस नीति के तहत लेना है, ऐसे हर प्रश्न का जवाब शून्य है । दूसरों की ओर देखना हमारी नियति है या फिर हमारी आदत नहीं कह सकते । प्रकृति ने हमारे देश को बहुत दिया है किन्तु, उसके उपयोग के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन नहीं है । विश्लेषक मानते हैं कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा, तो क्यों नहीं हम उसका इंतजार करें । निश्चय जीत हमारी होगी क्योंकि, हमारा देश जलस्रोत का धनी देश है । हो सकता है जिस तरह तेल के भंडार की वजह से खाडी देशों की गिनती धनी देशों में होती है, हमारा भी कल वैसा ही हो कोई बात नहीं, तब तक हम खुशफहमी में जी लेंगे । नेपाल पर सती का अभिशाप है, ऐसी किंवदन्ती है । कभी-कभी लगता है कि कहीं यह सच तो नहीं । क्या यहाँ विकास की सम्भावनाओं को ऐसे ही अनदेखा किया जाता रहेगा ।
नेपाल को पानी उत्पादन की क्षमता सृष्टि की सुन्दर रचना हिमालय से प्राप्त है । किन्तु यह भी सत्य है कि हिमालय सिर्फनेपाल को ही नहीं बल्कि भुटान, सिक्किम, म्यानमार, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक को अपने घेरे में लिए हुए है । और यह सृष्टि की संरचना ही है कि नेपाल का लगभग पाँच खरब लीटर पानी भारत की ओर बहता है । नेपाल लाख कोशिश कर ले उसपर बन्दिश नहीं लगा सकता ।  नेपाल की नदियाँ तमोर, मर्स्यांगदी, बुढी गण्डकी, लिखुखोला, काली गण्डकी, त्रिशुली, मादी, सेती, दूधकोशी मेची से महाकाली तक नेपाल की मिट्टी को बहाती हुइ भारत की ओर ले जाती है और यहाँ दोनों मिट्टी एक हो जाती है । नेपाल की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि चाहते हुए भी विद्युत व्यापार के लिए इसके पास अधिक चुनाव नहीं है । नेपाली विद्युत या तो भारत खरीदे या फिर वह अपनी भूमि का प्रयोग इसे किसी और राष्ट्र के लिए करने की इजाजत दे, जिसकी सम्भावना अति न्यून है । नेपाल की धारणा है कि भारत अपने परियोजनाओं के अर्न्तर्गत शत प्रतिशत लाभ स्वयं लेता आया है और आगे भी लेता रहेगा । कदाचित इतिहास इसकी पुष्टि भी करता है । पर आज समय बदल गया है, नेपाली जनता जागरुक हो गई है इसलिए भी इतिहास बदलने के संकेत  दिख रहे हैं । किन्तु परेशानी यह है कि शक की जडें इतनी गहरी हैं कि उसमें विश्वास के फूल खिल नहीं पा रहे हैं । विगत में जो दूरियाँ इन दोनों देशों के बीच बढी हैं उससे नेपाली जनता सशंकित है । भारत की नई सरकार कोशिश कर रही है यकीन दिलाने की किन्तु, आने वाला कल बताएगा कि वह कितनी सफल हो पाई है ।
नेपाल भारत के अतिरिक्त अन्य देशों से विद्युत व्यापार का इच्छुक है, जो बिना भारत के र्समर्थन के सम्भव नहीं है । विद्युत अभाव से जितना नेपाल जूझ रहा है, उससे कहीं ज्यादा भारत जूझ रहा है । भारत की नई सरकार भारतीय जनता की विद्युत समस्याओं का हल करना चाहती है और मोदी सरकार की नीति विकास की नीति है और वह जानती है कि विद्युत के बिना विकास सम्भव नहीं है । इस सच को नेपाल को भी समझना होगा । इसलिए भारतीय सरकार इतने वर्षों बाद सभी मुद्दों पर पहल करना चाह रही है तो आगे बढ कर नेपाल इसका स्वागत करे और आपसी सहमति और समझदारी के साथ हल निकाले जिसमें देश का विकास और हित शामिल हो । अगर देखा जाय तो भारत के अतिरिक्त विश्व एशिया का कोई भी देश किसी और देश से विद्युत व्यापार नहीं कर पाया है । कारण स्पष्ट है और वह है भौगोलिक संरचना । जिसकी वजह से भारत का इस क्षेत्र में एकछत्र राज है ।
जब भी भारत द्वारा नेपाल में लाए गए परियोजनाओं की बात होती है तो एक और बात प्रमुखता के साथ उभर कर आती है कि, भारत जितना निवेश या जितनी बडी परियोजनाओं को भुटान में स्थापित कर रहा है उतना नेपाल में नहीं हो रहा है । भुटान माँडल का कोई भी परियोजना नेपाल में नहीं है । भुटान के परियोजनाओं में यह शर्त होती है कि पचीस वर्षों के बाद भारत द्वारा स्थापित परियोजनाओं का स्वामित्व भुटान को मिल जाएगा । उसके बाद उसका पूरा लाभ भुटान को मिलता है । इस बात को नेपाल के सर्न्दर्भ में देखा जाय तो यहाँ यह सवाल उठाया जाता है कि इतने वर्षों के बाद किसी भी परियाजना में दम ही कितना रह जाएगा जो उससे फायदा लिया जा सके । भारतीय बजट में नेपाल से अधिक अनुदान राशि भुटान को पहले भी मिलती रही है और अभी भी मिल रही है । कारण चाहे जो भी हो किन्तु ऐसा तो अवश्य लग रहा है कि भारत को जो अनुकूल वातावरण भुटान में मिल रहा है वह शायद नेपाल में नहीं मिल रहा । तो कहीं ना कहीं सरकार की कमजोर नीति सामने आ जाती है । जिसका एक उदाहरण यह भी है कि, कर्ण्ली परियोजना हेतु वर्ल्ड बैंक द्वारा १९७० में दो सौ सिविल इंजीनियर को बनाने की बात हुइ । रुडकी से सिविल इंजीनियर तैयार होकर आए भी किन्तु, उन्हें जलस्रोत के परियोजनाओं में न लगाकर सडक निर्माण आदि परियोजनाओं मे लगाया गया । अगर उनकी योग्यता को कर्ण्ली जैसे परियाजनाओं में उपयोग किया जाता तो शायद आज नेपाल की तस्वीर कुछ और होती ।
नेपाल के अधिकांश जल विद्युत आयोजना का लाइसेंस भारतीय कम्पनियों के पास है । विद्युत विकास विभाग के तथ्यांक अनुसार भारतीय कम्पनियों ने छः हजार दौ सो दो मेगावाट क्षमता के १८ जलविद्युत आयोजना का लाइसेन्स लिया हुआ है । जिसमें से एक सौ बीस मेगावाट का लिखु-४ आयोजना ही सिर्फनिर्माण की तैयारी में है । सरकारी तथा निजी कम्पनियों ने लगभग ५० मेगावाट से ८ सौ मेगावाट तक की क्षमता का परिेयोजना का लाइसेन्स लिया हुआ है । विद्युत विकास विभाग के सूचना अधिकारी गोकर्ण्र्ाान्थ के अनुसार भारतीय कम्पनी अपेक्षानुसार काम नहीं कर पाई है । भारतीय कम्पनी जीआरएम द्वारा ऊपरी कर्ण्ााली आयोजना का लाइसेन्स लिए पाँच वर्षबीत चुके हैं । शुरु में ३ सौ मेगावाट की आयोजना फिलहाल बढÞ कर नौ सौ मेगावाट कर दिया गया है । इसी तरह ऊपरी मर्स्यांगदी २- आयोजना का भी लाइसेन्स जीएमआर को ही प्राप्त है पर इसके कार्यान्वयन में देर होती जा रही है । किन्तु इसके लिए सारा दोष कम्पनियों को देना सही नहीं होगा । स्थानीय प्रतिरोध, ठेकेदारों का मनामाना व्यवहार सरकार द्वारा अनुकूल वातावरण तैयार नहीं कर पाना जैसे कई कारण उभर कर सामने आते हैं । जीएमआर का राजनीतिक स्तर पर विरोध किया जाना भी एक मूल कारण है । ऊपरी कर्ण्ली परियोजना को स्थानीय वासी द्वारा तत्काल शुरु किए जाने की मांग की गई है, उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी है कि विकास के रास्ते में वो किसी को नहीं आने देंगे । स्वार्थ के तहत किया गया विरोध हमेशा विकास के मार्ग को बाधित करता है । इससे इतना तो जाहिर होता है कि आम जनता क्या चाहती है ।
नेपाल के पास जलस्रोत है और उसका उपयोग किए बिना नेपाल किसी लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकता है । नेपाल का मुख्य बाजार भारत ही है । इसलिए भी विद्युत उत्पादन में भारतीय निवेश नेपाल की आवश्यकता भी है और विवशता भी । किन्तु नेपाल को यह तय करना होगा कि भारतीय निवेश में उसकी क्या सहभागिता होगी । नेपाल भारत के साथ समझौता करे या किसी अन्य राष्ट्र से करे, उसे अपने पक्ष को मजबूत स्थिति में रखना होगा । किन्तु, यह भी ध्रुव सत्य है कि नेपाल किसी भी राष्ट्र से चाहे वह भारत हो या कोई और, अपनी पूरी बात नहीं मनवा सकता है क्योंकि न तो इसकी भौगोलिक संरचना ऐसी है और न ही आर्थिक स्थिति । ऐसे में कहीं ना कहीं लचीला व्यवहार इसे किसी के भी साथ अपनाना ही पडÞेगा । क्योंकि वाद्य यंत्र के तार को इतना ही खींचें कि सुर निकले, वरना सुर की तो बात दूर है, तार इस लायक भी नहीं रह जाता कि बेसुरा सुर भी दे सके । इसे साथ किसका चाहिए यह पूरी तरह नेपाल सरकार और नेपाली जनता को तय करना है । लेकिन नेपाल के पास दो ही सूरत है, या तो पूरी तरह भारत से विद्युत व्यापार करे या भारत की भूमि का प्रयोग करते हुए बांगला देश पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान जैसे देशों से व्यापार समझौता करे । भारत अगर अपनी भूमि के प्रयोग की इजाजत देता है तो क्या नेपाल उसके द्वारा माँगे गए शुल्क का भुगतान कर सकता है – क्योंकि ऐसे में भारत द्वारा भी जिद्दी रवैया अपनाए जाने की पूरी सम्भावना होगी ।
ऐसे में विरोध की राजनीति नहीं बल्कि विचारों की राजनीति की आवश्यकता है । देश हित की बात सोचना हर सजग नागरिक का कर्त्तव्य है किन्तु, इसकी आड में सस्ती लोकप्रियता, और विकास के मार्ग को अवरुद्ध करना देश प्रेम तो कदापि नहीं हो सकता । कोशश तो यह होनी चाहिए कि देश पहले विकास की राह पकडे और विश्व के समक्ष मजबूत स्थिति में उभरे । क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है तो, नेपाल की नियति आन्दोलनों और विरोधों में कैद होकर रह जाएगी । क्योंकि किसी भी पक्ष पर विरोध जता देना या चर्चा में रहने के लिए मुद्दों का विरोध करना आसान होता है ।
यह आवश्यक है कि किसी भी समझौता या योजना में पारदर्शिता होनी चाहिए, क्योंकि इससे देश के अस्तित्व और सम्मान का सवाल जुडÞा होता है । किन्तु सामने वाले की नीयत को समझने के लिए थोडी रिस्क की आवश्यकता तो होती है । डूबने के डर से पानी में न उतरा जाय तो तैरना कहाँ से आएगा, हाँ यह आवश्यक है कि सुरक्षा के उपाय अपने पास जरुर रखें । सरकार यह दावा कर रही है कि तीन वर्षों में बिजली समस्या का समाधान हो जाएगा । पर कैसे – यह यक्ष प्रश्न हमारे सामने है । उर्जा नीति पर जो चर्चा परिचर्चा हो रही है, उम्मीद है कि सरकार उन सभी बातों को ध्यान में रखकर गृहकार्य करेगी और भारतीय प्रधानमंत्री के नेपाल आगमन का लाभ उठाएगी । १७ वर्षों के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का सरकारी दौरा हो रहा है तो समस्याओं के समाधान की सम्भावना भी दिख रही है । दोनों देश पnepal-bidhutूव के सभी संधियों और समझौतों परपुनरावलोकन के लिए तैयार है, इसका कुछ तो असर अवश्य होगा । भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज के नेपाल भ्रमण ने  एक सकारात्मक माहौल तो जरूर तैयार किया है । फिलहाल निगाहें मोदी आगमन पर टिकी हुइ हैं ।

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