विघ्नहरण गणपति

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अड़चन को विघ्न हम कहते हैं ,
सदा उनसे डरते हैं , सदा उनसे बचते हैं ।
विघ्नहरण गणपति की वन्दना हम करते हैं,
विघ्नों को हरने की कामना हम करते हैं ,
निर्विघ्न करने की प्रार्थना हम करते हैं ।
सोचती हूँ, संघर्ष ही तो जीवन है,
फिर विघ्नों से क्या अनबन है ?
जब विघ्नों से टकराते हैं,
तभी सामर्थ्य जाने जाते हैं।
विघ्नों का अभाव यदि हो जाता,
तो बहुत कुछ खो जाता ।
विघ्न अगर नहीं होते,
तो जग में फिर हम क्या करते ?
पराजय-अपराजय का प्रश्न नहीं उठता,
सफलता-असफलता से कौन गुज़रता ?
विजयश्री तब किसे मिली होती ?
सुख और दु:ख की अनुभूति कहाँ होती?
कुछ करने का उत्साह नहीं जगता ,
आगे बढ़ने का साहस कौन करता ?
जीवन की एकरसता ये किसे भाती?
ये उदासी तब सही नहीं जाती ।
इसलिये — विघ्नों को आने दो ,पथ में बिछ जाने दो ।
पार हम कर जाएँगे और आगे बढ़ जाएँगे ।
चलना ही जीवन है,रुकना तो मरण है ।
मेरे प्रभु ! निर्विघ्न हमें मत करो ,
विघ्नों से लड़ने की शक्ति दो।
विजयी हम सदा रहें ,
निष्काम तुम्हें भजा करें

  • शकुन्तला बहादुर
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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

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