
अड़चन को विघ्न हम कहते हैं ,
सदा उनसे डरते हैं , सदा उनसे बचते हैं ।
विघ्नहरण गणपति की वन्दना हम करते हैं,
विघ्नों को हरने की कामना हम करते हैं ,
निर्विघ्न करने की प्रार्थना हम करते हैं ।
सोचती हूँ, संघर्ष ही तो जीवन है,
फिर विघ्नों से क्या अनबन है ?
जब विघ्नों से टकराते हैं,
तभी सामर्थ्य जाने जाते हैं।
विघ्नों का अभाव यदि हो जाता,
तो बहुत कुछ खो जाता ।
विघ्न अगर नहीं होते,
तो जग में फिर हम क्या करते ?
पराजय-अपराजय का प्रश्न नहीं उठता,
सफलता-असफलता से कौन गुज़रता ?
विजयश्री तब किसे मिली होती ?
सुख और दु:ख की अनुभूति कहाँ होती?
कुछ करने का उत्साह नहीं जगता ,
आगे बढ़ने का साहस कौन करता ?
जीवन की एकरसता ये किसे भाती?
ये उदासी तब सही नहीं जाती ।
इसलिये — विघ्नों को आने दो ,पथ में बिछ जाने दो ।
पार हम कर जाएँगे और आगे बढ़ जाएँगे ।
चलना ही जीवन है,रुकना तो मरण है ।
मेरे प्रभु ! निर्विघ्न हमें मत करो ,
विघ्नों से लड़ने की शक्ति दो।
विजयी हम सदा रहें ,
निष्काम तुम्हें भजा करें
- शकुन्तला बहादुर