‘कितना खतरनाक होता है
दो स्तनों के साथ इस दुनिया में कदम रखना.’
पहली बार समझा,
महज़ अंग नहीं सजीव चेतन हैं हमारे…
और पहली बार ही,
दर्द की कँटीली रेखाएँ खड़ी हो गई हैं
शरीर के एकाधिक पोरों में.
‘मैं ठीक हूँ’ का अपाहिज झूठ आश्वस्त नहीं
करता, न मुझे, न माँ-बाबूजी को.
ठंडे, दगहे शरीर (आत्मा) में सौंदर्य
नहीं, आकंठ भयाकुलता है
किसी के कामुक-स्नेहिल छुअन में
अकेले हो जाने की सिहरन.
भीतर-भीतर ठस्स होते जाते, कठोर
आगत को नकार कर एकबारगी
मैंने कहा, ‘ ठीक हूँ’.
पीले पड़े, बेजान जिस्म, झड़ते केश,
आस्वादहीनता, दवाओं की अंतहीन फेहरिश्त,
बार-बार की लंबी नीम बेहोशी,
निहायत निर्मम हो गयी है.
उकताने लगी हूँ.
अकेले माँ-बाबू , अकेली मैं
बढ़ते जाते अकेलेपन में साथ-साथ हैं
यों कि साथ-साथ अकेले हो गए हैं.
मन की ऊरठ, रूखी हथेलियों ने
छीजती देह को थाम लिया है.
मेरी उन्मुक्त हँसी झूठी नहीं
मेरे-तुम्हारे स्पर्श के बीच अंकुरित
उष्मा भी सच है, अखंड है.
तुम और मैं हमेशा से
अखंड सत्य, अखंड सुंदर.
निरन्तर क्षीण होती मैं
तुममें अक्षुण्ण हूँ.
जोड़ने लगी हूँ अपनाआप
अधूरेपन की सहजता अस्वीकार कर पूर्ण होना चाहती हूँ
सतरंगे इंद्रधनुष को ऑंचल में बाँध
लाँघ जाना चाहती हूँ सारा आकाश
जबकि टूट रहा है देह का तिलिस्म, बेआवाज़,
वाकई मैं जीना चाहती हूँ…
लूसिले क्लिफ्टन-अमेरिकी अफ्रीकी कवयित्री (1936-2010). स्त्री जीवन,
शरीर, मन, चेतना से संबंधित अनेक कविताएँ इन्होंने लिखी हैं.
लूसिले क्लिफ्टन की कविता ‘1994’ की पंक्तियाँ. इसी वर्ष उन्हें स्तन कैंसर
होने की सूचना मिली थी।
-विजया सिंह, रिसर्च स्कॉलर, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता।
आदरनीय श्रीरामजी विषय सुझाने के लिए आभार . मेरी कविता में रति भाव नही बल्कि स्त्री का सहज सौंदर्य और अपने अंगो की, उनसे जुडी सामान्य अनभूतियों की अभिव्यक्ति है .यहाँ स्त्री की स्तन कैंसर से जुडी पीड़ा और जीने की ललक प्रधान है ,जो हर पीड़ित औरत की त्रासदी है,फिर चाहे वह कचरा बीनती कुपोषित किशोरी क्यों न हो .जो भावनाएं व्यक्त हुई हैं वह किसी स्त्री का नितांत निजी कोना है. बड़े सरोकारों के पीछे सामान्य औरत छिप सी गयी है. किसी भी प्रकार की पुन्स्वादी या एलिट दृष्टि से विलग, यह अतिसाधारण स्त्री के बारे में उतनी ही साधारण स्त्री के द्वारा व्यक्त सुख -दुखात्मक कथन है .टिपण्णी के लिए धन्यवाद् . विजया सिंह
हिंदी साहित्य के श्रृंगार जगत में भी रतिभाव वर्जित है ..क्योकि यह नारी सौन्दर्य बोध एलीट क्लाश की थाती बन गया है ..सड़क के किनारे मैले कुचेले फटे कपड़ों में कचरा पेटी से कचरा बीनती कुपोषित किशोरी {जिसे आप जैसे लोग नव -यौवना भी कह सकते हैं }को देखकर जो कविता लिखो तो कोई बात बने …