हिंदी चिट्ठाकारिता को मिला नवजीवन

 म.गां.अं.हिं.वि.वि., वर्धा में 20 एवं 21 सितम्‍बर 2013 को ‘हिंदी ब्लॉगिंग एवं सोशल मीडिया’ संगोष्ठी संपन्न

संजीव कुमार सिन्‍हा की रपट

पिछले महीने जब इंटरनेट पर विचर रहा था तो अचानक ‘हिंदी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया’ विषयक संगोष्ठी का संदर्भ आया। मैं रूक गया। दिलचस्पी जगी। पूरी पोस्ट पढ़ गया। फिर दूसरी पोस्ट भी संदर्भित थी। तो उसे भी पढ़ गया। यह ब्लॉग सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी का था। मेरा उनसे परिचय नहीं था। 

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संगोष्ठी‍ में भाग लेने की इच्छा प्रबल हो उठी।

मैंने सिद्धार्थ जी को मेल किया, ”मैं सन् 2006 से हिंदी ब्लॉ़गिंग की दुनिया में सक्रिय हूं। 2006 से 2008 तक हितचिन्तक ब्लॉग को लेकर सक्रिय था। 2008 से प्रवक्ता डॉट कॉम का संपादन कर रहा हूं।”

”रुचि लेने के लिए धन्यवाद। सेमिनार में प्रतिभाग के लिए सबको अवसर है, बशर्ते वह इसमें गंभीर रुचि प्रदर्शित करे। आपको करना यह भर हैं कि इस सेमिनार में आप जो बातें रखना चाहते हैं उनको संक्षेप में आलेखबद्ध करके तत्काल उपलब्ध करा दें ताकि वि.वि. द्वारा आपके आमंत्रण की औपचारिक स्वीकृति प्राप्त कर सकूँ।” – सिद्धार्थजी ने जवाबी मेल में कहा।

कुछ दिनों बाद फिर सिद्धार्थजी का मेल आया, ”लंबी प्रतीक्षा के बाद भी आपका आलेख नहीं आया।”

दरअसल, इसी बीच मैं एक किताब के संपादन में व्यस्त हो गया था।

समय निकालकर मैंने उन्हें ”2007 में हिंदी ब्लॉगिंग के परिदृश्‍य” पर एक संक्षिप्त आलेख मेल किया।

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और इस तरह से मुझे कार्यक्रम में सहभागिता के लिए औपचारिक निमंत्रण मिला।

कार्यक्रम में सहभागिता हेतु मैं इसलिए उत्सुक था कि एक तो ब्लॉगिंग की दुनिया से खास लगाव रहा है। और दूसरा, इस संगोष्ठी में अनूप शुक्ल, अनिल रघुराज, आलोक कुमार, विपुल जैन जैसे वरिष्ठ ब्लॉगर आने वाले थे।

इसी बीच पता चला कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रकाशन अधिकारी व ब्लॉगर मित्रवर डॉ. सौरभ मालवीय भी संगोष्ठी में पधारने वाले हैं। उनसे बातचीत हुई। और उन्होंने अपने साथ मेरा भी वर्धा आने-जाने का टिकट आरक्षित करा लिया। हालांकि, बाद में अपरिहार्य कारणवश वे नहीं जा सके।

19 सितम्बर को प्रात: 11.30 बजे नई दिल्ली से केरला एक्सप्रेस से मैं सेवाग्राम के लिए रवाना हुआ। रात्रि 9.30 पर ट्रेन भोपाल पहुंची और सौरभ जी आगे की यात्रा और वापसी का टिकट मुझे देने आए।

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प्रात: साढ़े छह बजे के करीब केरला एक्सप्रेस सेवाग्राम स्टेशन पर पहुंची। मैं जैसे ही ट्रेन से उतरा। अविनाश वाचस्पति दिख गए। उनके साथ दो सज्जन और भी थे। मैंने पहचान लिया था। अविनाशजी ने परिचय कराया, ये हैं अनूप शुक्ल और ये संतोष त्रिवेदी। बाद में प्लेटफॉर्म नम्बर-1 पर कार्तिकेय मिश्र मिले। स्टेशन के मुख्य द्वार पर आते ही आयोजक की ओर से हमें लेने के लिए बंधु मिले। हम उनके साथ कार से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्विविद्यालय, वर्धा परिसर स्थित ‘नागार्जुन सराय’ पहुंचे।

सुबह साढ़े सात बजे नागार्जुन सराय पहुंचा। आयोजक की ओर से बताया गया कि आपको कक्ष संख्यान 213 अलॉट किया गया है। मैंने गेट खटखटाया। सामने मित्रवर पंकज झा मिले। फेसबुक के चर्चित यूजर और दीपकमल, रायपुर के संपादक। हम जानते थे कि झा साहब देर रात तक जागते हैं क्योंकि वे फेसबुक पर खूब समय बिताते हैं। और इसके चलते सुबह देर तक सोते हैं। सो, दो मिनट राम-राम हुआ और वे झट से सो गए। मैं भी दूसरे बेड पर पसर गया। साढ़े आठ बजे जग गया। नित्य क्रिया से निवृत्त हुआ। इसके बाद झा जी भी फ्रेश हुए।

जलपान के लिए बुलावा आया। हम दोनों साथ गए। जलपान-कक्ष में नामी-गिरामी ब्लॉगरों को देखकर मन गद्गद हो गया।

प्रात 10 बजे. उद्घाटन कार्यक्रम। हबीब तनवीर सभागृह। कार्यक्रम की शुरूआत विवि के कुलगीत से हुआ। बताया गया कि यह नरेश सक्सेना जी द्वारा रचित है। संगोष्ठी के संयोजक सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कार्यक्रम की भूमिका रखी। संचार एवं मीडिया अध्येयन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय ने स्वागत भाषण दिया। इसके बाद ब्लॉगिंग की महत्ता पर युनूस खान की मधुर आवाज में रवि रतलामी की ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति प्रस्तुत की गई। कार्तिकेय मिश्र ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की और प्रवीण पांडेय ने अपने वक्तव्य में हिंदी ब्लॉगिंग के लिए सांस्थानिक समर्थन पर बल दिया। म.गां.अं.हिं.वि.वि. के प्रतिकुलपति अरविंदाक्षन ने भी संबोधित किया।

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कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने कहा कि विश्वविद्यालय नवाचारी पाठ्यक्रमों के पक्ष में रहा है, यह संगोष्ठी उसी का परिणाम है। उन्होंने आगे कहा कि हिंदी ब्लॉगिंग के लिए एग्रीगेटर की व्यवस्था होनी चाहिए और इसमें हम भूमिका निभाएंगे।

प्रथम सत्र। ”ब्लॉग, फेसबुक और ट्विटर की तिकड़ी : एक दूसरे के विकल्प या पूरक।” वक्ता थे – बलिराम धाप्से, अनूप शुक्ल , प्रवीण पांडे, अरविंद मिश्र, संतोष त्रिवेदी, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, अविनाश वाचस्पति।

द्वितीय सत्र। तकनीकी सत्र। आलोक कुमार, विपुल जैन और अनूप शुक्ल ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को ब्लॉग खाता बनाने की संक्षिप्त प्रक्रिया बताई।

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तृतीय सत्र। ”सोशल मीडिया और राजनीति।” संचालक- हर्षवर्धन त्रिपाठी। वक्तागण-संजीव सिन्हा, पंकज झा, संजीव तिवारी, अनूप शुक्लत, अनिल रघुराज, शंकुतला शर्मा, कार्तिकेय मिश्र।

पहले दिन रात्रिभोजन के उपरांत सांस्‍कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। इसका कुशल संचालन अरविंद मिश्र ने किया। कुलपति श्री विभूति नारायण राय की उपस्थिति उल्‍लेखनीय रही। अरविंद मिश्र, प्रवीण पांडेय, शकुंतला शर्मा, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, हर्षवर्धन त्रिपाठी ने अपनी कविता सुनाकर सबको मंत्रमुग्‍ध कर दिया। 

दूसरा एवं अंतिम दिन। चौथा सत्र। ‘हिंदी ब्लॉगिंग और साहित्य।’ संचालक- इष्टदेव सांकृत्यायन। वक्‍तागण – अविनाश वाचस्‍पति, अरविंद मिश्र, ललित शर्मा, शंकुतला शर्मा, डॉ. प्रवीण चोपड़ा, वंदना अवस्थी दूबे। इस सत्र में इस बात पर चर्चा हुई कि साहित्य के कितने आयामों को छू रहा है ब्लॉग? अविनाश वाचस्पति ने सटीक बात कही कि ब्लॉग घर का खाना है और सोशल मीडिया फास्‍ट फूड।

तकनीकी चर्चा। आलोक कुमार एवं विपुल जैन ने विकीपीडिया के बारे में विस्तार से बताया कि कैसे यहां अपना खाता बनाकर या बिना खाता बनाए आप अपना योगदान देते हुए हिंदी को समृद्ध कर सकते हैं। शैलेष भारतवासी तकनीकी जिज्ञासाओं की पूर्ति के लिए मंचासीन हुए।

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खुली चर्चा और समापन सत्र। अतिथि थे – कुलपति श्री विभूति नारायण राय, संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय, मनीषा पांडेय, संचालन किया सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने। मनीषा पांडेय ने जेंडर मुद्दे पर विचार रखे। कुलपति जी ने अपने समापन वक्‍तव्‍य में ब्लॉगरों से लेखन में विविधता लाने का मुद्दा उठाते हुए कानून, स्वास्‍थ्‍य और विज्ञान से जुड़े मसले पर लेखन की आवश्‍यकता जताई। संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय ने कहा कि 15 अक्टूरबर तक हम एग्रीगेटर का काम पूरा कर लेंगे।

विचार-बिंदु

‘हिंदी ब्लॉंगिंग एवं सोशल मीडिया’ विषयक संगोष्ठी में प्रमुख रूप से निम्न विषय उठे :

1. ब्लॉग बनाम सोशल मीडिया – वक्ताओं ने कहा कि ब्लॉग बनाम सोशल मीडिया का बहस उछालना ठीक नहीं है। यह एक-दूसरे का पूरक है। यह अवश्य है कि अपने विचारों को समग्रता में प्रस्तुत करने के लिए ब्लॉगिंग अधिक रचनात्मक और गंभीर है। लेकिन फेसबुक तकनीकी रूप से सबसे अधिक सक्षम है।

2. ब्लॉग सोशल मीडिया में आएगा या नहीं ? – इस पर भी खूब चर्चा हुई और अंत में यह उभरकर आया कि ब्लॉग रचनात्मक लेखन के लिए है जबकि सोशल मीडिया लोगों के बीच सामाजिक नेटवर्क और सामाजिक संबंध बनाने के लिए।

3. ब्लॉग विधा है या माध्‍यम ? – इस पर जमकर विवाद हुए। अंत में यह माना गया कि ब्लॉग निश्चित रूप से माध्यम है। जैसे प्रिंट एक माध्यम है और उसमें कविता, कहानी, लेख प्रस्तुत होते हैं।

4. आत्मानुशासन एवं स्वनियंत्रण का मसला – उद्घाटन सत्र में कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सोशल मीडिया में जिस तरीके से गाली-गलौज और सामाजिक वैमनस्यता फैलाने की बात हो रही है उसे देखते हुए आत्मनियंत्रण-आत्मानुशासन की जरूरत है। और यह पहल न्यूमीडिया से जुड़े लोगों को स्‍वयं करना चाहिए। अन्यथा यह काम सरकार कर देगी।

5. ‘चिट्ठासमय’ एग्रीगेटर – यह सर्वविदित तथ्‍य है कि नारद, चिट्ठाजगत और ब्‍लॉगवाणी के बंद हो जाने का हिंदी चिट्ठाकारिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। सो, लम्‍बे समय से एक एग्रीगेटर की आवश्‍यकता रेखांकित हो रही थी। वर्धा संगोष्ठी की सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि म.गां.अं.हिं.वि.वि. की ओर से कहा गया कि 15 अक्टू़बर 2013 तक ‘चिट्ठाजगत’ एग्रीगेटर का काम संपन्न हो जाएगा। 

सेवाग्राम आश्रम भ्रमण

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संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रात: सवा सात बजे हम लोग बस में सवार होकर सेवाग्राम, वर्धा के लिए रवाना हुए। महात्मा गांधी मेरे आदर्श हैं। पंकज झा साथ में थे, सो इतिहास बताते जा रहे थे कि यहीं 1942 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। गांधीजी का आश्रम वास्तव में प्रेरणास्पद लगा। रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा जगी। मित्रवर राकेश कुमार सिंह उम्दा फोटोग्राफर हैं, सो उन्होंने हम सबकी ढ़ेरों तस्वींरें खींच डालीं।

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संघ कार्यालय, नागपुर दर्शन

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वापसी का टिकट वर्धा/सेवाग्राम से न कराकर नागपुर से करा लिया था। अपन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। नागपुर हर स्वयंसेवक के लिए प्रेरक नगर है। यहां संघ का मुख्यालय है और परमपूज्य सरसंघचालक का केंद्र। 

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यहीं संघ के संस्थापक परमपूज्य डॉ. केशवराव हेडगेवार और द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी की स्‍मृति मंदिर भी है। राष्ट्रवाद के प्रखर केंद्र का दर्शन कर मन में त्यापग, तपस्या और बलिदान की भावना प्रबल हुई।

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महिला सशक्तिकरण

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नागपुर में भोजन के लिए श्री गोगा कृपा भोजनालय जाना हुआ। यह देखकर मैं दंग रह गया कि भोजनालय में सारी व्‍यवस्‍थाएं महिलाओं ने संभाली हुई है। मैं सोचने लगा कि हमारे बिहार में कब ऐसी स्थिति निर्मित होगी जब महिलाएं आत्‍मनिर्भर बन सकेंगी। 

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नागुपर से 22 सितम्बर को दोपहर एक बजे गोंडवाना एक्सप्रेस से नई दिल्ली के लिए रवाना हुआ। जब ट्रेन भोपाल पहुंची तो सौरभजी का स्नेह मुझे फिर मिला, रात्रि-भोजन का पैकेट लिए वे स्टेशन पर खड़े थे। 

झलकियां

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• म.गां.अं.हिं.वि.वि., वर्धा परिसर की रचना अद्भुत है। आधुनिक वास्तुशिल्प अनूठा है। यह पहाड़ पर स्थित है। इतने पेड़-पौधे हैं कि शीतल एवं स्‍वच्‍छ हवा चलती रहती है। यह आपको ताजगी से भर देता है। सुंदर घास, विविध फूलों की क्यारियां मनोहारी दृश्य निर्मित करते हैं।

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• दोनों दिनों का मौसम बारिश की रिमझिम फुहारों के बीच सम्पन्न हुआ यानी प्राकृतिक छटाएं देखते ही बनती थी।

• जहां हम ठहरे थे ‘नागार्जुन सराय’, उसके कमरे अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस थे। एसी, गिजर, आलमारी, टीवी…से युक्‍त।

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• पूरे देश में जहां राजनेताओं की स्मृति में नामकरण की प्रथा रूढ़ हो चुकी है ऐसे में साहित्यकारों के नाम पर हॉस्टल, मार्ग, प्रतिमा, भवन…यह सब देखकर किसका न मन प्रफुल्लित होगा!

• ‘सोशल मीडिया एवं राजनीति’ वाले सत्र के विषय में ही राजनीति शब्द है तो राजनीति की बात होनी ही थी। तृतीय सत्र में जब संजीव तिवारी बोलने के लिए आए तो वे फेसबुक पर पंकज झा की सक्रियता की तारीफ के क्रम में यह बोल गए, ‘भाजपा मेरे दिल में है।” इस बात पर श्रोताओं ने आपत्तियां दर्ज कीं। इसके पूर्व पंकज झा ने भी अपने वक्तव्य में कह दिया था कि छुपी हुई प्रतिबद्धताएं खतरनाक होती हैं और हम भाजपा से हैं, यह कहने में गर्व है। जब मेरी बारी आई तो संचालक महोदय ने मेरे परिचय में जोड़ दिया कि आप कमल संदेश के सहायक संपादक हैं। तो ऐसा संदेश चला गया कि भाजपा की बातें हो रही हैं। जबकि ऐसा था नहीं। यह सब अनायास ही हुआ।

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• आलोक कुमार से मिलना मेरे लिए रोमांचकारी रहा। हिंदी के आदि चिट्ठाकार। उनके साथ फोटों भी खिंचवाई।

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• विश्वविद्यालय में एम.फिल. की पढ़ाई कर रहे एक मित्र ने जानकारी दी कि कार्यक्रम के दोनों दिन अखबार में आप सबका नाम छपा है, यह देखकर मन फूला न समाया।

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• सब जगह नमो-नमो। जब आलोक जी विकीपीडिया के बारे में बता रहे थे तो उस समय उदाहरणार्थ उन्होंने श्री नरेंद्र मोदी का ही पृष्ठ खोला।

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• मित्रवर पंकज झा सत्र समाप्ति पर विवि के मुख्यद्वार के निकट एक दुकान पर साथ ले जाते थे। वहां के दुकानदार दुनिया की सबसे मधुर भाषा में बात कर रहे थे। समझ गए होंगे आप, मैथिली भाषा में। बिहार की अखिल भारतीय उपस्थिति वर्धा में भी सिद्ध हुई।

• और अंत में धर्म भ्रष्ट होने का वाकया… ”मुझ पारम्परिक ब्राह्मण के साथ वर्धा में बहुत अन्याय हुआ। पैंतालीस साल के जीवन में हमेशा शाकाहारी बना रहा, अंडा व केक से भी दूर रहा पर वहाँ गलती से चिकन चख लिया। हम जिस कान्यकुब्ज परिवार से हैं, यह कृत्य घोर राक्षसी माना जाता है। हमारे मन में यह धारणा बचपन से ही पुष्ट है कि ऐसा करना घोर अधर्मी काम है। हालाँकि मैं अब समझता हूँ कि खाने-पीने से नहीं कर्मों से व्यक्ति धर्मी-अधर्मी होता है। पर क्या करें, दिल मानता नहीं। श्रीमतीजी भी बहुत दुखी हैं। यह सब बापू और विनोबा की धरती पर हुआ। यह सोचकर संतोष कर लेता हूँ कि निराला भी माँसाहारी थे, इस नाते गाँधी और निराला की जमात में शामिल हो गया हूँ:-( – संतोष त्रिवेदी के फेसबुक वाल से। 

अंत में, यह लिखना आवश्यक है। इतने सुंदर और विचारशील संगोष्‍ठी के लिए इसके आयोजक कुलपति श्री विभूति नारायण राय एवं संयोजक श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी को हार्दिक धन्यवाद।

हिंदी चिट्ठाकारिता संक्रमण काल से गुजर रहा है। इससे मुक्ति के लिए बस एक मुकम्मल एग्रीगेटर की जरूरत है। ‘चिट्ठासमय’ के आगमन से रौनक पुन: वापस लौटेगी और हिंदी में विचारों की दुनिया समृद्ध होगी। तब वर्धा संगोष्ठी-2013 निश्चित रूप से हिंदी चिट्ठाकारिता के लिए ‘मील का पत्थर’ माना जाएगा।

12 COMMENTS

  1. (१) हिंदी की शुद्धता एवं गुणवत्ता के विषय में ऐसी संगोष्ठी में कुछ विचार हुए थे क्या?
    या ऐसा विषय संगोष्ठी से संबंध नहीं रखता? वृत्तान्त से पता नहीं लगा पाया।
    (२) पर वर्धा आश्रम, जानेका मन करता है, साथ साथ नागपुर भी।
    अच्छे मनोहारी वृत्तान्त के लिए धन्यवाद।

    • गाली-गलौज और अभद्र भाषा की बात उठी थी। कुलपति विभूति नारायण राय जी ने इस ओर ध्‍यान इंगित किया था। इसका जिक्र मैंने अपनी रिपोर्ट में किया है। साथ ही कुलपति जी ने हिंदी के समावेशी चरित्र का उल्‍लेख करते हुए कहा था कि वर्धा विश्‍वविद्यालय एक हिंदी शब्‍दकोष तैयार कर रहा है जिसमें लगभग 10 प्रतिशत शब्‍द अंग्रेजी भाषा के होंगे।

  2. बंधुवर – पूरी रिपोर्ट बहुत अच्छी है | लेकिन इस में कहीं किसी पाठक वर्ग का कोई उल्लेख नहीं | आप के किसी भी सत्र में पाठक वर्ग की बात नहीं है | हिंदी जगत की यही त्रासदी है की हर कवि / लेखक छपास की भड़ास तो निकालता है लेकिन कहीं भी अपने किसी पाठक की चर्चा नहीं करता और उसे किसी पाठक से कोई सरोकार भी नहीं होता | किसी लेखक को चिंता नहीं उसे कौन पढ़ रहा है या उस के लेखन पर किसी और का चिंतन भी है या नहीं | खैर – आपने चिकन खाया और उसे उचित भी ठहरा दिया – निराला जी के नाम से | आप की इच्छा – आप चाहते तो इस से बच भी सकते थे और मैथिल क्षेत्र में काफी लोग इसे उचित ही मानते हैं | क्षमा चाहता हूँ – एक बुज़ुर्ग होने के नाते यह सब लिख गया |

    • ऐसा नहीं है. मैंने अपनी ऑडियो विजुअल प्रस्तुति में पाठकों के बारे में जोर देकर कहा है कि ब्लॉगों के पाठक बढ़ रहे हैं – आंकड़ों सहित उदाहरण देकर बताया था कि प्रारंभ में जिस ब्लॉग को महज १० लोग पढ़ते थे, अब संख्या हजारों में है.

      बेस्ट सेलर हिंदी किताबों से भी ज्यादा हिंदी ब्लॉगों को आजकल पढ़ा जा रहा है.

  3. बहुत सुन्‍दर रिपोर्ट लिखा है संजीव भाई. कार्यक्रम में आपसे मिलकर खुशी हुई, आपके व्‍यक्तित्‍व के सहज देशज रूप से मैं प्रभावित हुआ.

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