सैन्य योद्धा कहीं साजिश का तो शिकार नहीं हुआ?

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एक असाधारण सैन्य रक्षक का यूं चले जाना………

हेलिकॉप्टर दुर्घटना की खबर के बाद से ही देशवासियों का मन भारी था। टीवी पर घटना से जुड़ी पलपल की खबरें सुन रहे थे। उम्मीद थी, बिपिन रावत सकुशल बच जाएंगे, कोई चमत्कार होगा, बुरी खबर सुनने को नहीं मिलेगी? पर, ढलती शाम के वक्त जैसे ही वायुसेना की ओर से सीडीएस बिपिन रावत के न रहने की खबर सार्वजनिक हुई, देश गमगीन हो गया, सभी स्तब्ध रह गए। थोड़ी देर तो किसी ने भी खबर पर विश्वास नहीं किया, लेकिन इस दुखद घटना का हमें सामना करना ही पड़ा। सबको एकीन हो गया कि देश ने एक सच्चा सिपाही खो दिया। बिपिन रावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अतिप्रिय सैन्य अधिकारियों में एक हुआ करते थे। उनकी काबिलियत पर उनको पहाड़ जैसा भरोसा था। रावत द्वारा सेना से संबंधित लिए निर्णयों पर वो आंख मूंद कर अपनी स्वीकृति दे दिया करते थे। यही कारण था कि उनके सेवानिवृत होने के बाद उनकी सेवाएं प्रधानमंत्री लेना चाहते थे, तभी सीडीएस का नया औहदा ईजाद किया गया जिस पर उन्हें बैठाया गया।

रावत के निधन से देश को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई शायद ही हो पाए, उनकी कई योजनाएं धरी रह गई। चीन, पाकिस्तान जैसे खुरापाती पड़ोसी देशों से लड़ने की सैन्य रणनीतियां बना रहे थे, चीन की सेना को सबसे ज्यादा अगर डर था तो बिपिन रावत की चतुर रणनीतियों से था। लड़ने की प्लानिंग का उनका ब्लूप्रिंट अलहदा हुआ करता था। कश्मीर में पनपते नए किस्त के आतंकवाद की कमर अगर किसी ने तोडी़ थी, तो वह रावत ही थे। विभिन्न सैन्य सेवाओं का उनके पास 43 वर्षों का बेजोड़ अनुभव था। जनरल रावत हिंदुस्तान के पहले और वर्तमान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ थे। रावत ने जनवरी 2020 को रक्षा प्रमुख का पदभार संभाला था। उनकी वीरता के संबंध में हम आज जितनी भी बातें कहें या सुनाए, कम हैं। उनकी अदम्य सैन्य वीरता के समक्ष शब्द कम पड़ रहे है। जुबान अपने आप रुक रही है।

रावत सीडीएस से पूर्व भारतीय थलसेना के प्रमुख भी रहे। दिसंबर 2016 से दिसंबर 2019 तक इस पद की उन्होंने सोभा बढ़ाई। फिलहाल, हादसे की तत्कालिक जांच के आदेश दिए गए हैं, और देने भी चाहिए, फिर भी हादसा है या कोई सुनियोजित साजिश? हर पहलुओं पर रक्षा मंत्रालय की जांच समिति और तमिलनाडु सरकार की लोकल बॉडी जांच कर रही है। तमिलनाडु का कुन्नूर क्षेत्र जहां बुधवार दोपहर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत का हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ, उस जगह को छावनी में तब्दील किया गया है। तमाम एजेंसियां अपने-अपने स्तर पर जांच सैंपल एकत्र कर रही हैं, ताकि घटना के मूल नतीजे तक पहुंचा जा सकें। हादसे में बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका समेत अन्य 13 सेना के उच्चाधिकारियों के ना रहने की पुष्टि हुई है।
जबकि, हादसे में जिंदा बचे इकलौते सर्वाइवर रहे ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह को वेलिंगटन के मिलिट्री हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। वह अभी बोलने की स्थिति में नहीं, ईश्वर उन्हें जल्द सेहतमंद करे और घटना की असल वजह बता सकें। इस दर्दनाक घटना से समूचा देश दुखी है, हर कोई नम आंखों से उन्हें याद कर रहा है। जिन-जिन से वह कभी मिले थे, वह जानते होंगे उनके भीतर एक हसौड़ इंसान भी जीता था। बड़े मजाकिया लहजे में सामने वाले को जबाव देते थे। उनके चेहरे पर कभी कोई शिकन नहीं होती थी। इसके पीछे की ताकत वह अपनी पत्नी को बताया करते थे। जो तकरीबन उनके साथ में ही रहती थीं। शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था, घटना के वक्त भी वह साथ थीं और एक साथ ही दोनों ने इस नश्वर दुनिया को अलविदा कहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह ने इस हादसे को लेकर गहरा दुख व्यक्त किया है।

बहरहाल, ये दुर्घटना साजिश भी हो सकती है, क्योंकि कुछ ऐसे किस्से हैं जिन पर एकाएक शक होता है। कहीं वो कोई साजिश के शिकार तो नहीं हो गए? दरअसल, वह पाकिस्तान और चीन को सबक सिखाने के लिए एक अलग युद्धक नीति में लगे थे। पाकिस्तान की प्रत्येक चाल का मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे। कश्मीर में उन्होंने आतंकवादियों को कठोरता के साथ कुचलने की नीति अपनाई हुई थी। इसके लिए उन्होंने सेना को खुली छूट दी हुई थी। वे बाहरी दुश्मनों के साथ-साथ आंतरिक दुश्मनों को भी खुलकर ललकार रहे थे। देशद्रोही ताकतों को भी कठोरता के साथ कुचलने की पैरवी करते थे। इसलिए अंदुरूनी स्तर पर भी उनके दुश्मनों की कमी नहीं थी। अवैध हथियार माफियाओं की उन्होंने कमर तोड़ी हुई थी। मौजूदा सरकार में हथियार दलालों की कतई नहीं चल रही थी। सेना के लिए जरूरी सामानों की आपूर्ति में चल रही रिश्वतखेरी भी उन्होंने रोकी हुई थी। इस कारण आपूर्ति दलाल उनसे खासे नाराज थे। जनरल बिपिन रावत जो उत्कृष्ट कार्य करके गए हैं, उन्हें आने वाली पीढ़ियां भी कभी भुला नहीं पाएंगी। हमारे सशस्त्र बलों और सुरक्षा तंत्र के आधुनिकीकरण में उनका बहुत योगदान स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। सामरिक मामलों पर उनकी अंतर्दृष्टि और दृष्टिकोण असाधारण हुआ करती थी। ऐसे योद्धा को बारंबार प्रणाम।

डॉ0 रमेश ठाकुर

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