हम पिंजड़ों में

अभिषेक कांत पांडेय

हम पिंजड़ों में 

हम सब ने एक नेता चुन लिया

उसने कहा उड़ चलो।

ये बहेलिया की चाल है,

ये जाल लेकर एकता शक्ति है।

हम सब चल दिये नेता के साथ

नई आजादी की तरफ

हम उड़ रहें जाल के साथ

आजादी और नेता दोनों पर विश्वास

हम पहुच चुके थे एक पेड़ के पास

अब तक बहेलिया दिखा नहीं

अचानक नेता ने चिल्लाना शुरू किया

एक अजीब आवाज-

कई बहेलिये सामने खड़े थे

नेता उड़ने के लिए तैयार

बहेलिये की मुस्कुराहट और नेता की हड़बड़हाट

एक सहमति थी ।

हम एक कुटिल चाल के शिकार

नेता अपने हिस्से को ले उड़ चुका था

बहेलिया एक कुशल शि्कारी निकला

सारे के सारे कबूतर पिंजड़े में,

हम सब अकेले।

इन्हीं नेता के हाथ आजाद होने की किस्मत लिए

किसी राष्ट्रीय पर्व में बन जाएंगे शांति प्रतीक

फिर कोई नेता और बहेलिया हमें

पहुंचा देगा पिंजड़ों में।

 

 2. यथार्थ

वह दीवारों से निकल गई

विचारों से लड़ रही

सही मायने में

मकानों को घरों में तब्दील कर रही

यर्थाथ है उसका जीवन

चूल्हों पर लिपी आंसू नहीं

उर्जा है अणु परमाणु की

आसमान में बादलों की नीर नहीं

 

3. केंद्र बिंदु है

समाज की नजरें

लटकती लाशें

उस हुक्मरान के खिलाफ

उसके दो टूक खामोशी

उन हिंसक मादक चेहरों के खिलाफ

चेतावनी।

प्रकृति के आंचल में

बैठी उस नारी में

लज्जा की शीतलता है

वात्सल्यता की रोशनी समेटे

हर एक सवाल पुरूष के खिलाफ

पूछ उठती है

सभ्यता के इस मोड़ पर

उसकी आंखे पूछती एक सवाल

हम है इस दुनिया के आधे के हकदार

 

4. संगम पर हम

संगम की रेती

रेत के ऊपर गंगा

दौड़ती, यहाँ थकती गंगा

अभी-अभी बीता महाकुम्भ

सब कुछ पहले जैसा

सुनसान बेसुध।

टिमटिमाते तारें तले बहती, काली होती गंगा

बूढी होती  यमुना।

 

5. महाकुम्भ गया

नहीं हो हल्ला

भुला दिया गया संगम।

एक संन्यासी

एक छप्पर बचा

फैला मीलों तक सन्नाटा

सिकुड़ गई संगम की चहल

नहीं कोई  सरकारी पहल है-

चहल-पहल है-

कानों में नहीं संगम

आस्था है

वादे भुला दिए गए

भूला कोई यहाँ, ढूँढ नहीं पाया

यहाँ था कोई  महाकुम्भ।

सरपट सरपट बालू केवल

उपेछित अगले कुम्भ  तक।

फिर जुटेगी भीड़

फिर होंगे वादे

विश्व में बखाना जाएगा महामेला

अभी भी संगम की रेती में पैरों के निशान

रेलवे स्टेशन की चीखातीं सीढियाँ

टूटे चप्पल के निशान

हुक्मरान ढूंढ़ रहें  आयोजन का  श्रेय।

 

अब पर्यटक, पर्यटन और आस्था गुम

महाकुम्भ के बाद

यादें, यादें गायब वादे, वादे

धसती रेतीली धरा

सिमटती प्रदूषण वाली गंगा।

 

आने दो फिर

हम करेंगे अनशन

त्यौहार की तरह हर साल

बुलंद होगी आवाज

फिर खामोशी संगम तट पर

बस, बास डंडों, झंडों में सिमट चुका संगम।

 

बदलना जारी

बदलना जारी

मोबाइल रिंगटोन आदमी

धरती मौसम

आकाश, सरकारी स्कूल

कुआँ उसका कम होता पानी

चैपाल

फैसला

रिश्ते

इंजेक्शन वाली लौकी और दूध

गरीबी गरीब

आस्था प्रसाद

प्रवचन भाषण

नेता अनेता

पत्थर गाँव का ढेला

ओरतें  कामयाबी

साथी एकतरफा प्यार

भीड़ हिंसक चेहरा

सूरज थकता नहीं

चूसता खून

बंजर मन

अवसाद मन

मधुमेह रक्तचाप

प्रकृति प्रेम कापी,पन्नों, किताबों में

नीली धरती नील आर्मस्ट्राम की

रिंगटोन मोबाइल आदमी

बदलता समाज  पार्यावरण।

 

प्रेम-याद, भूल याद

बार-बार की आदत

प्रेम में बदल गया

आदत ही आदत

कुछ पल सबकी  की नजरों में चर्चित  मन

 

सभी की ओठों में वर्णित प्रेम की संज्ञा

अपने दायित्त्व की इतिश्री, लो बना दिया प्रेमी जोड़ा

बाजार में घूमो, पार्क में टहलों

हमने तुम दोनों की आँखों में पाया अधखिला प्रेम।

हम समाज तुम्हारे मिलने की व्याख्या प्रेम में करते हैं

अवतरित कर दिया एक नया प्रेमी युगल।

 

अब चेतावनी मेरी तरफ से

तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा नहीं

ये प्रेम बंधन है किसी का

अब मन की बात जान

याद  करो नदियों का लौटना

बारिश का ऊपर जाना

कोल्हू का बैल बन भूल जा, भूल था ।

जूठा प्रेम तेरा

सोच समझ

जमाना तैराता  परम्परा में

बना देती है प्रेमी जोड़ा

बंधन वाला प्रेम तोड़

बस बन जा पुरातत्व

अब बन जा वर्तमान आदमी

छोड़ चाँद देख रोटी  का टुकड़ा

फूल ले बना इत्र, बाजार में बेच

कमा खा, बचा काले होते चेहरे

प्रेम याद , याद भूल

देख सूरज, चाँद देख काम

रोटी, टुकड़ा और जमाना

भूला दे यादें प्रेम की।

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