कविता साहित्‍य

सत्याग्रह का अस्त्र

uttrakandमौसम प्रतिकूल

टूट गयी सड़कें

बह गया पुल

आम जनता है पस्त

अधिकांश नेता – अधिकारी

अपने में मस्त

दिखने में सब भद्र

पर सवाल वही

कहाँ है पीड़ितों – गरीबों का

सही हमदर्द

बड़ा हादसा हो जाता है जब

आते है अपनी सुविधा से

सफेदपोश सारे

जहाज और गाड़ियों में

लदकर , लकदक

सहानुभूति जताने

घड़ियाली आंसू बहाने

अखबार और टीवी के लिए

फोटो खिचवाने

समाचार छपवाने

गहराता जा रहा है

राजनीति व प्रशासन में यह चलन

जनता का निरंतर

हो रहा दोहन व दमन

जागृत समाज सत्याग्रह का अस्त्र

फिर उठाएगा जब

आम जन की हालत

अच्छी होगी तब !