‘ पापा अगर आज आप ,रिश्वत के रुपये लायेंगे,
तो निश्चित ही आज शाम का ,खाना हम न खायेंगे|
यदि गरीब निर्बलों से न,रिश्वत लेना बंद किया,
भ्रष्टाचार विरोधी जन,आंदोलन से जुड़ जायेंगे|
कापी कलम किताबॆं यदि, रिश्वत के धन से आयेंगीं,
तब तो यह तय है पापाजी,हम पढ़ लिख न पढ़ पायेंगे|
रिश्वत का कालाधन इतना ,शापित और प्रदूषित है,
इस घर में पापाजी अब हम ,ज्यादा न रह पायेंगे|
कड़ा परिश्रम समय लगाकर ,धन जब लोग कमाते हैं,
उस धन का तिनका भी लेकर ,अब हम जी न पायेंगे’|
बेटे की बातों को सुनकर, पापा पर यह असर हुआ,
बोले ‘बेटा कभी आज से ,हम रिश्वत न खायेंगे’|
बहुत खूब लिखा है !!
काश! कवि की कल्पना सच में बदल जाती.