क्या पाया प्रेम करके

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कोई पूछे अगर मुझसे
क्या पाया?
प्रेम करके,
सहज कह दूंगा!

वहीं ढेर सारी यादें
जो अक्सर रह जाती हैं
एक प्रेमी के पास!

कई दिवा स्वप्न
जो दिवा स्वप्न ही रहे
साकार ना हो सके!

कुछ किरचें वेदनाओ की
चुभी हैं अब तक
रिस रही है मवाद जिनसे!

टूटा हुआ दिल
जो धड़कता था वफादारी से
प्रेम ही के लिए
दम तोड रहा है उसी की दहलीज पर!

एक प्रेमपत्र
इसे वहीं स्थान प्राप्त है
प्रेमियों के बीच में
जो बुद्ध को उनके अनुयायियों में!

और, हां..
बेशुमार अधूरापन
जो पूरा होने की आशा लगाए बैठा है अब तक!

कितना कुछ तो है मेरी झोली में
प्रेम करने के बाद!

० आशीष मोहन

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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