पोंपिओ और मेटिस क्या करेंगे ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपिओ और रक्षा मंत्री जिम मेटिस इस सप्ताह भारत और पाकिस्तान आएंगे। यह यात्रा कूटनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होगी। भारत को अपना सामरिक भागीदार मानते हुए अमेरिका उसे लगभग सवा लाख करोड़ रु. के हेलिकाॅप्टर भी बेचना चाहता है और भारत पर यह दबाव भी डालना चाहता है कि वह ईरान और रुस के विरुद्ध अमेरिका की हां में हां मिलाए याने डोनाल्ड ट्रंप ने इन राष्ट्रों के विरुद्ध जो प्रतिबंध लगाए हैं, उन पर अमल करे। ईरान से तेल लेना और रुस से एस-400 मिसाइल खरीदना बंद करे। भारत क्यों मानेगा, ऐसी बात ? इसीलिए दोनों राष्ट्रों के बीच जो सामरिक संचार समझौते की बात दो साल से चल रही है, वह शायद अंजाम तक नहीं पहुंचेगी। हो सकता है कि दोनों अमेरिकी मंत्री भारत को यह लालच भी दें कि वे पाकिस्तान को 30 करोड़ डाॅलर की सामरिक मदद भी बंद कर रहे हैं। उसे आतंकवाद से लड़ने का मजबूर कर रहे हैं। इसीलिए भी भारत, अमेरिका की बात माने लेकिन भारत को पता है कि अमेरिका जो भी कदम उठा रहा है, वह अपने फायदे के लिए उठा रहा है, भारत के लिए नहीं। भारत का फायदा चलते रास्ते हो जाए, यह और बात है। पाकिस्तानी आतंकवाद को पालने-पोसने की सारी जिम्मेदारी अमेरिका की ही है। सोवियत संघ और अफगानिस्तान से लड़ने के लिए अमेरिका ने जो आतंकी संगठन 30-35 साल पहले खड़े किए थे, वे ही अब भारत और अफगानिस्तान के सिरदर्द बने हुए हैं। वे पाकिस्तान को भी नहीं बख्श रहे हैं। पाकिस्तान की आर्थिक हालत काफी खस्ता है। इमरान खान उसे सुधारने के लिए कई नई पहल कर रहे हैं। क्या ही अच्छा हो कि डोनाल्ड ट्रंप थोड़ी दूरंदेशी का परिचय दें, अपनी जुबान पर संयम रखें और पाकिस्तानी फौज को समझाएं कि वह आतंकवाद के विरुद्ध कमर कसे। यदि आतंकवाद हजार साल भी चलेगा तो न तो अफगानिस्तान में शांति हो सकती है और न ही कश्मीर का मसला हल हो सकता है।

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