आपके यहां क्या खास है?

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मनोज कुमार
आपके यहां खास क्या मिलता है? यह सवाल हमारे यहां आम है. शौकिन भारतीय जहां कहीं भी जाते हैं, उनका सबसे पहले सवाल यही होता है. इस सवाल के जवाब में हर स्थान की कुछ ना कुछ खासियत भी होती है. इन्हीं खासियतों को हम भारतीय समाज की संस्कृति और परम्परा कहते हैं. विविध संस्कृति, भाषा और बोली के इस महादेश के लिए कहा जाता है कि सौ कोस में पानी और बानी बदल जाती है. अर्थात सौ कोस चलने के बाद आपको नयी संस्कृति, भाषा और बोली से परिचय होता है. यह आज का नहीं है, शायद हमारे संसार की रचना के साथ हुआ है. खान-पान और रहन-सहन की इस विविधता को सरकार ने ब्रांड के रूप में स्थापित करने का पिछले दिनों फैसला किया. देश भर के राज्यों के जिलों और कस्बों को चिंहित किया जाने लगा कि कहां, कौन सी चीज खास है. इन खासियत को ब्रांड के रूप में स्थापित करने का काम किया गया. मध्यप्रदेश इस मामले में अलग पहचान रखता है. चूंकि मध्यप्रदेश की भौगोलिक स्थिति यह है कि वह लघु भारत के रूप में पहचाना जाता है और यही कारण है कि विविधवर्णी मध्यप्रदेश में सभी राज्यों की संस्कृति, खान-पान और पहनावा देखने को मिलता है. मध्यप्रदेश सरकार ने ऐसे सभी विशिष्ट परम्परा और संस्कृति में रचे-बसे खान-पान, पहनावा, बोली बात को ब्रांड के रूप में विकसित किया है. ऐसे ही कुछ खास जिलोंं को पहचान देने वाली कुछ खास प्रोडक्ट की चर्चा करते हैं.
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से बात शुरू करें तो यहां का जरी-बटुआ उद्योग सारी दुनिया में प्रसिद्ध है. नमक वाली चाय की बात ही अलहदा है. एक बार प्रतिष्ठित शेफ संजीव कपूर भोपाल आए तो भरी प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भाई, नमक वाली चाय तो खूब सुना, कोई पिलाकर टेस्ट भी तो कराये. भोपाल से सटे जिले सीहोर में कभी विपुल गन्ना उत्पादन होता था. भारत सरकार द्वारा गन्ना उत्पादन के क्षेत्र में दिया जाने वाला अवार्ड पांच बार सीहोर जिले को मिला. गन्ना और गन्ने से बनने वाला उद्योग थोड़ा मंदा है तो यहां का गेहूं पूरे देश में प्रसिद्ध है. भोपाल के पास में लगे विदिशा जिले का शरबती गेहूं और सोयाबीन देशभर में मशहूर है तो रायसेन जिले गेहूं से बने आटे के लिए प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है. मां नर्मदा के किनारे बसे होशंगाबाद को संभाग का दर्जा हासिल है. सोयाबीन के अलावा होशंगाबाद रेशम उत्पादन के लिए मशहूर है. नर्मदा के किनारे बसा होने के कारण तरबूज और खरबूज का उत्पादन भी होता है. आदिवासी बहुल जिला बैतूल मक्का, धान एवं गेहूं उत्पादन के लिए अपनी अलग पहचान रखता है. बैतूल जिले में काजू और काफी की खेती भी होती है. महाराष्ट्र राज्य से सटे मध्यप्रदेश का प्रमुख जिला छिंदवाड़ा को कार्न सिटी संबोधित किया जाता है. विपलु पैदावर वाले कार्न (मक्का) का उत्सव भी मनाया जाता है. इसके अलावा छिंदवाड़ा के संतरे भी अपनी अलग पहचान रखते हैं.
मध्यप्रदेश का प्रमुख व्यवसायिक जिला इंदौर का पोहा और गराडू बेहद फेमस है. वैसे यहां प्याज का उत्पादन भी भरपूर होता है. अश्वगंधा उत्पादन से इंदौर जिले की नयी पहचान बनी है. इंदौर संभाग के बड़वानी जिला कपास उत्पादन के लिए अलग पहचान रखता है तो अलीराजपुर के आम की पहचान बिलकुल अलग है. अफीम की खेती के लिए प्रसिद्ध नीमच, मंदसौर और रतलाम में खसखस का उत्पादन भी होता है. रतलाम का नमकीन सेव रतलामी सेव के नाम से खाने वालों के मुंह में चढ़ा हुआ है. महाकाल के लिए प्रसिद्ध धार्मिक नगरी उज्जैन गेहूं, ब्लैक ग्राम, बंगाल ग्राम, ग्रीन ग्राम, लांटिल, मटर, सोयाबीन आदि के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. गैस उत्पादन के लिए मशहूर गुना जिले में खास उच्च क्वालिटी के उत्पादन के लिए पंत-हरीतिमा, सिम्फो एस- 33, गुजराज- 1 और कुंभराज लोकल किस्म से मिलने वाली धनिया की सबसे ज्यादा खेती की जाती है। ग्वालियर जिले में मसूर, चना और सरसों का उत्पादन जिले की पहचान है. चंबल संभाग के मुरैना, भिंड व श्योपुर जिले में सरसों का विपुल उत्पादन होता है. यह क्षेत्र पीला सोना उत्पादन के लिए जाना जाता है.
जबलपुर संभाग के नर्मदा के किनारे बसा होने के कारण कटहल, नींबू, अनार, केला, चीकू, बेर और सीताफल का उत्पादन होता है. जबलपुर रेडिमेड वस्त्र निर्माण के क्षेत्र मेंं अलग पहचान रखता है.  सफेद शेरों के लिए मशहूर रीवा परम्परागत फसलों के साथ ही फूल उत्पादन में अपनी अलग पहचान बना चुका है. फलों के साथ जिले में प्याज का बंपर उत्पादन होता है. दलहन, गेहूं का उत्पादन करने वाला सतना जिले की पहचान करेला उत्पादन में हो गई है. रींवा जिला सफेद शेरों के लिए पहचान रखता है तो यहां सुपारी के खिलौने की अलग पहचान है. सीधी जिले की पहचान एक पिछड़े जिले के रूप में है लेकिन अरहर दाल के उत्पादन में इसका कोई मुकाबला नहीं है. सिंगरौली जिला एक बड़े औद्योगिक जिले के रूप में पहचान रखता है. देश की सभी बड़ी कम्पनियां यहां स्थापित हैं. यह मध्यप्रदेश की ऊर्जा राजधानी भी कहलाती है. आदिवासी बहुल जिला डिंडोरी कोदो कुटकी के लिए मशहूर है. स्वस्थ्य रहने के लिए लोग अब जनजातीय समाज में प्रचलित खाद्य पदार्थों का उपयोग करने लगे हैं. डिंडौरी में अब चरखे से कपड़ा तैयार किया जाने का नवाचार आरंभ किया गया है. मंडला जिला अपने वनों के लिए और वन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. राज्य के अशोक नगर जिले की तहसील चंदेरी अपनी साडिय़ों के लिए प्रसिद्ध है. चंदेरी की साड़ी का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है. कहा जाता है कि चंदेरी सिल्क साड़ी इतनी महीन होती है कि उसे मुठ्ठी में बंद किया जा सकता है.
मध्यप्रदेश के हर जिले की अपनी खासियत है. आत्मनिर्भर भारत को गढ़ता मध्यप्रदेश को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने पंख लगा दिया है. कई ऐसे उद्योग और शिल्प हाशिये पर जा रहे थे, उन्हें एक जिला, एक उत्पाद अभियान में नवजीवन मिला है. निश्चित रूप से कौशल का बाजार से रिश्ता जब गहरा होगा तो गांव-गांव में गांधी का सपना सच होता दिखेगा क्योंकि गांवों की आत्मनिर्भरता ही गांधीजी का सपना था.  

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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