
विनय कुमार विनायक
पूर्व में जाति-उपाधि नहीं होती थी
जाति-उपाधि कब व कहां से आई?
स्मृति काल से चार वर्णों के लिए,
प्रथमत: चार उपाधि चलन में आई!
ब्राह्मण वर्ण के लिए शर्मा उपाधि,
क्षत्रिय वर्ण हेतु वर्मा की उपाधि थी,
वैश्य वर्ण के लिए गुप्ता उपाधि व
शूद्र वर्ण हेतु दास की उपाधि चली!
मनु-स्मृति में चार वर्णों के लिए
चार आस्पदों का वर्णन मिलता है
‘शर्मवद् ब्राह्मणस्य स्याद् राज्ञो
रक्षासमन्वित:/वैश्यस्य गुप्तसंयुक्त:
शूदस्य सेव्यसंयुक्त:।‘(मनु स्मृति)
‘शर्मान्तं ब्राह्मणस्योक्तं वर्मान्तं
क्षत्रियस्य तु,गुप्तान्तं चैव वैश्यस्य
दासान्तं शूद्रजन्मत:!’ (बोधायन)
स्मृति काल के पहले ये उपाधि
प्रचलन में नहीं थी, राम, कृष्ण
आर्य क्षत्रिय थे पर सिंह उपाधि
आज जैसी धारण नहीं करते थे!
पहले आज की तरह मानव को
किसी खास जातिगत उपाधि से
नहीं पुकारते थे,वे कुल नाम से
जाने जाते थे, राम भार्गव यानि
झा नहीं भृगुवंशी भार्गव कहाते!
राम, कृष्ण, गौतम जैसे क्षत्रिय,
आज जैसे सिंह,मंडल नहीं थे,
रघु,मधु, शक वंशीय क्षत्रिय थे,
राघव,माधव,शाक्य कहलाते थे!
मनु स्मृतिकालीन दास की उपाधि
मध्यकाल में भक्त लगाने लगे थे!
आज जातिगत उपाधि की भरमार,
एक जाति की अनेक उपाधि होती!
—विनय कुमार विनायक