उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथजी की सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में कई बदलाव स्पष्ट देखे जा रहे हैं |तस्करों माफियों के आतंक से लोगों को छुटकारा मिलता दिखाई पड़ने लगा है |जीने की राह आसान होने लगी है लेकिन अभी भी यह नहीं कहा जा सकता की उत्तर प्रदेश पूर्ण तरह से सुरक्षित है |अभी भी छुपे हुए माफ़िये अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहे हैं |आजकल पुस्तक माफ़िये मनमाने तरीके से लेखकों की कहानियों नाटकों कविताओं को लेखक की जानकारी के बिना ही पाठ्य पुस्तकों में शामिल कर लेते हैं और लेखकों को इसकी भनक भी नहीं लगती |कॉपी राइट एक्ट का खुला उल्लंघन इन प्रकाशकों के द्वारा किया जा रहा है |लेखक से उनकी रचनाओं को पाठ्यक्रम में लेने की इजाजत लेना तो दूर वह किताब जिसमें लेखक की रचना छपी है लेखक को देना भी उचित नहीं समझते |अपनी मर्जी से कहानी ,कविताओं से छेड़ छड़ कर शीर्षक बदलकर पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जा रहा है |प्रकाशक सोचते हैं कि शीर्षक बदल देने से लेखक रचना की चोरी नहीं पकड़ पाएंगे और उनकी यह अवैध गतिविधियां ऐसे ही चलती रहेंगीं |
कोरोना काल में स्कूल /शिक्षण संस्थाएं लगभग बंद रहीं और यू टियूब पर आन लाइन पढ़ाई होने से जब शिक्षक ब्लेक बोर्ड पर कवितायें, कहानियां पढ़ाते दिखे तब लेखकों को मालूम पड़ा कि यह तो उनकी कहानी है और उनसे बिना किसी इजाजत प्रकाशक ने पाठ्यक्रम में लगा ली है | वैसे भी यह देश बहुत बड़ा है और मध्य प्रदेश के किसी लेखक की रचना बिहार ,उत्तर प्रदेश अथवा बंगाल के स्कूलों में पढ़ाई जा रही हो तो लेखक को क्या मालूम |पंजाब के किसी लेखक की रचना केरल के स्कूलों में पढ़ाई जा रही हो तो लेखक को क्या पता |वह तो भला हो आन लाइन पढ़ाई का जिसने उन पुस्तक प्रकाशकों की पोल खोल दी है जिन्होंने बिना लेखक की मंजूरी लिए उनकी रचनाएं पाठ्यक्रमों शामिल कर ली हैं | कॉपी राइट एक्ट के उल्लंघन में उत्तर प्रदेश के आगरा और मेरठ शहर के पुस्तक प्रकाशक सबसे आगे हैं |ऐसा लगता कि उन्हें या तो कानून की जानकारी नहीं अथवा वे जानबूझकर कॉपी राइट एक्ट का उल्लंघन कर रहे हैं |
आगरा के एक बड़े प्रकाशक हैं फ्रेंड्स पब्लिकेशन |उन्होंने मेरी एक कहानी हम “जासूसी नहीं करेंगे” जो उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ से प्रकाशित होने वाली सरकारी पत्रिका वालवाणी में नवम्बर -दिसंबर २०१३ में प्रकाशित हुई थी को उनके प्रकाशन फ्रेंड्स पब्लिकेशन में सुमेधा हिंदी पाठमाला कक्षा ६ के पाठ २ में नन्हें जासूस शीर्ष से शामिल कर ली |मुझ लेखक से अनुमति लेना तो दूर की बात है कहानी का शीर्षक भी बदल दियाऔर लेखक का नाम भी नहीं दिया |कानून से बेफिक्र ऐसे पुस्तक प्रकाशकों को क्या कहा जाए | यह कहानी प्रवक्ता डॉट कॉम ने भी १८ फरवरी २०१३ को अपनी पत्रिका में प्रकाशित की थी |गूगल में “हम जासूसी नहीं करेंगे”एक क्लिक में लेखक के परिचय सहित उपलब्ध है तब फ्रेंड्स पब्लिकेशन का इस कहानी को शीर्षक बदलकर” नन्हें जासूस”करके सुमेधा हिंदी पाठमाला की कक्षा ६ में शामिल कर दुस्साहस के अलावा क्या कहा जा सकता है |और भी कई प्रिंट /इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में भी यह कहानी प्रकाशित हो चुकी है |जबलपुर के बुक्स इन वॉइस में भी यह कहानी राजेंद्र कौर नेरेटर ने अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड की है |
इसी तरह एक कहानी “अम्मू भाई का छक्का ” मेरी एक प्रसिद्ध कहानी है जो कि नेशनल दुनियां सरीखे प्रसिद्ध अखवार के बच्चों के पन्ना स्तम्भ में ,वेब दुनिया के नन्हीं दुनियां में और कनाडा से प्रकाशित साहित्यकुंज में प्रकाशित हो चुकी को फ्रेंड्स पब्लिकेशन ने इसी कहानी को पुस्तक सुमेधा हिंदी पाठमाला में कक्षा ६ के पाठ ७ में “अम्बुज का छक्का”नाम से शामिल कर ली |मुझ लेखक को तो पता भी नहीं था |आश्चर्य तो यह भी है कि कहानी का शीर्षक बदलकर ,मुख्य पात्र का नाम भी बदल दिया और लेखक का नाम भी उचित नहीं समझा | इसके अतिरिक्त मेरी एक बाल कहानी” छोटे भीम का हाथ” जो प्रवक्ता डॉट कॉम के अलावा वेब दुनियां और नेशनल दुनियां अखवार ने भी प्रकाशित की है को भी फ्रेंड्स पब्लिकेशन “छोटे भीम ने सिखाया सबक” नाम से सुमेधा हिंदी पाठमाला की कक्षा ५ के पाठ ३ में शामिल कर ली |कहानी के मुख्य पात्र सल्लूभाई का नाम संजू बाबा कर दिया | ऐसा लग रहा है कि इन्होनें लेखक की रचनाओं को लेखक की बिना इजाजत छाप लेने और मनमाने तरीके से शीर्षक बदल लेने का लाइसेंस कहीं से प्राप्त कर लिया हो | इन पुस्तक प्रकाशकों को कॉपी राइट एक्ट का कोई डर ही नहीं है | यह तो सर्व विदित है कि किसी लेखक की रचना पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने से पूर्व लेखक की अनुमति आवश्यक है |लेखक की अनुमति के बिना रचना का एक भी शब्द नहीं बदला जा सकता |लेकिन फ्रेंड्स पब्लिकेशन आगरा ने मेरी तीन कहानियां मुझसे बिना अनुमति कक्षा ५ और कक्षा ६ की सुमेधा हिंदी पाठमाला में शामिल कीं कहानियों के शीर्षक बदले ,मुख्य पात्रों के नाम बदले और लेखक का नाम भी नहीं दिया |फ्रेंड्स पब्लिकेशन की सुमेधा हिंदी पाठमाला के अतिरिक्त फ्रेंड्स पब्लिकेशन ने अमोदिनी और स्निग्धा हिंदी पाठमाला में भी मेरी कहानियों उपयोग शीर्ष क बदलकर किया और लेखक का नाम नहीं दिया |मेरी कहानियों का उपयोग पूर्णतः व्यावसायिक कार्यों के लिए किया गया |किताबों की कीमत रूपये तीन सौ के लगभग है |स्वाभाविक है लेखक की रचनाओं की खुले आम चोरी से /छेड़छाड़ से लेखक को असहनीय पीड़ा होती है और मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है | कॉपी राइट एक्ट की धारा ६३ लेखक के हितों की रक्षा करती है और इसके उल्लंघन पर रूपये पचास हज़ार से दो लाख तक तक का जुर्माना और छह माह से तीन साल तक की सजा का प्रावधान है | ऐसे बहुत से लेखक हैं जिनकी रचनाएं प्रकाशकों ने उनकी बिना इजाजत पाठ्य क्रम में लगाईं |रचना के साथ लेखक का नाम होने से शायद वह संतोष कर लेता है कि चलो रचना बच्चों तक पहुंची तो और लेखक प्रकाशकों के विरुद्ध कोई कारवाही से बचता हैं |लेकिन रचनाओं का पूरी तरह से छेड़छाड़ कर शीर्षक बदल देना मुख्य पात्रों का नाम बदलकर पाठ्य क्रम में शामिल करना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता |उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से आशा की जाती कि जैसे दूसरे अपराधों पर शासन ने नकेल कसी है ओर भी थोड़ा ध्यान देगी |
प्रभुदयाल श्रीवास्तव