– श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र
15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यह पावन दिवस अत्यंत गौरव और कीर्ति का दिन है। भारत माता को शताब्दियों से पड़ी जंजीरों से मुक्त कराया था हमारे सभी देशवासियों ने। असंख्य स्वातन्त्र्य प्रेमी देशवासियों ने हँसते- हँसते अपने प्राणों को न्योछावर किया था, अपने प्राणों की आहुति दे दी। अनेक माताओं की गोद सूनी हो गई, बहनों ने अपने भाइयों को खोया, अनेकों ने अपने पति को। कोख सूनी, माँग सूनी तथा राखी के दिन बिलखती बहनें अपने देश की आजादी के लिए खोकर भी पाने की लालसा में जीवित थीं।
अंग्रेजों के अत्याचारों के शोषण से जनता बौखला गयी। 1857 से भारतीय विरोध कर रहे थे, अकस्मात् अंग्रेजों की दमनपूर्ण नीति से सर्वत्र बिगुल बज गया। अंग्रेजमुक्त भारत बनाने के लिए अपने प्राणों को उत्सर्ग तक करने को कटिबद्ध हो गए। महात्मा गाँधी, नेहरू, तिलक, चन्द्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र, भगतसिंह आदि विभूतियों ने अपनी परवाह न कर देश को आजाद करने के लिए जान की बाजी लगा दी। उन लोगों के त्याग और बलिदान को देखकर देश के हर नागरिक मर मिटने के लिये तैयार हो गए। देशप्रेमी आजादी दिलाने के लिए तथा प्रगति के लिए, बलिदान के लिये प्राणप्रण से जुड़ गए। अन्ततः देश के लिए मर मिटनेवाले लोगों के त्याग और तपस्या से देश आजाद हुआ।
इस पुनीत अवसर पर हम अतीत की सफलताओं और असफलताओं का विश्लेषण कर भविष्य में निरन्तर सफलता के पथ पर उन्मुख होने का संकल्प लेते हैं। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित कर देशवासियों को देश की स्वतंत्रता, अखण्डता की रक्षा करने के व्रत की स्मृति दिलाते हैं। 15 अगस्त को प्रधानमन्त्री ऐतिहासिक प्राचीर लालकिले से ध्वजारोहण के पश्चात् जनता को सम्बोधित करते हैं, देशवासी अपने देश की स्वतंत्रता का संकल्प दोहराते हैं। यह पर्व एकता, देशभक्ति तथा बलिदान का संदेश देता है।
क्या हम वास्तव में देशभक्त हैं ? जरा विचार करें? क्या हम अपने पूर्वजों के स्वप्न को साकार कर रहे हैं? शहीदों की कुर्बानी को, उनकी इच्छाओं को पूर्ण कर रहे हैं? हम सब भाईचारे निभा रहे हैं? देश में एकता ला रहे हैं? प्राणों की आहुति देने वालों के स्वप्न को साकार कर रहे हैं, स्वाधीनता की रक्षा कर रहे हैं? हजारों यक्ष प्रश्न मेरे सामने सुरसा की तरह मुँह बाये खड़े हैं। पर इन सभी प्रश्नों का मात्र एक उत्तर है ‘नहीं’।
हम दण्डनीय अपराध कर रहे हैं। हम स्वार्थी हो गये हैं। छोटी- छोटी बातों पर भाई-भाई लड़ रहे हैं। बड़े-बड़े वायदे कर जनता से वोट ले कर चयनित हो जाते हैं। लेकिन कुछ करते नहीं हैं। अपने परिवार तथा अपनी झोली भरने लगते हैं। पक्ष-विपक्ष एक दूसरे को अपमानित कर कमियाँ निकालते रहते हैं। संसद में सांसद बच्चों की तरह लड़ते रहते हैं। अपशब्द, व्यंग्य वाण तथा आरोप-प्रत्यारोप इनका प्रमुख कर्म है। वर्तमान में मणिपुर में इतनी भीषण समस्या है। प्रायः प्रतिदिन नागरिक प्रताड़ित व मारे जा रहे हैं। वहाँ दहशत, प्रताड़ना के साये में जीवित हैं मानव, लेकिन हम में से कितने लोग उन सबके लिये कुछ कर पाते हैं। आज देश के हर क्षेत्र में भय का वातावरण व्याप्त है।
मजेदार तो तब हो जाता है जब आधुनिक मनुवादी लोग वोट बैंक सुरक्षित करने लगते हैं और राजनैतिक शब्दकोश से राजनैतिक शब्दों का इन दुर्घटनाओं की आड़ में अपनी रोटी सेंकने हेतु प्रयोग करने लगते हैं। सार्वजनिक जीवन में सदा जात-पात का विरोध करने वाले वोट बैंक के खातिर देश की जनता को आधुनिक जाति और वर्गों में बाँटते हैं। उनका प्रिय वोट ग्राही शब्दों में है-दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक, जनजाति, अनुसूचित, आदिवासी इत्यादि ! वे इन शब्दों से प्यार करते हैं, इन नामों से सम्बोधित लोग इनके वोट बैंक हैं, जिनके सहारे ये लोगों को बाँट कर अपनी आर्थिक उन्नति करते हैं।
गरीबी : यह अपने आप में गुलामी का द्योतक है। गरीबी से आजादी का नारा बुलंद करने पर दण्डित होने की सम्भावना हो जाती है। कचरे से या फेंके हुए पत्तलों से क्षुधा तृप्ति का झूठा एहसास करते हुये लोग जहाँ हों, क्या उन्हें आजाद कहना क्षुद्र मानसिकता नहीं है!
शिक्षा : सरकारी स्कूल में अध्ययन के लिये जाने की ललक न होकर भोजन हेतु बच्चों का भेजा जाना तथा सरकारी स्कूल गरीबों का भोजनालय होना और अध्ययन का न तो रोजगारपरक और न ही ज्ञानपरक होना क्या आजादी का द्योतक है?
बेरोजगारी : जिस देश में सफाईकर्मी के पद हेतु लाखों की संख्या में ग्रेजुएट व पोस्ट-ग्रेजुएट आवेदक हों वहाँ आजादी है यह स्वीकार करना अपने आप को धोखा देने जैसा नहीं है?
नशा : जहाँ शराबबन्दी का विरोध हो, अधिकांश युवावर्ग मार्गभ्रमित हों, नशे के वशीभूत हों उसे आजाद कह सकेंगे ?
आर्थिक परतन्त्रता : विदेशी कम्पनियाँ हमारे देश में हमें गुलाम बना रही हैं। स्वदेशी उद्योग बन्द हो रहा है। चाईना से आयातित सामग्री स्व-उत्पादिता को मात दे हमें रोजगार से वंचित कर परतंत्रता की ओर धकेल रही है। क्या यह आजादी है ? लगता नहीं कि हम आजाद हैं।
हम तब आजाद होंगे जब हम-
आधुनिक मनुवादी से आजाद होंगे
गरीबी से आजाद होंगे
कुकर्मों से आजाद होंगे
नशे से आजाद होंगे
अशिक्षा से आजाद होंगे
बेरोजगारी से आजाद होंगे
कुप्रथा से आजाद होंगे तथा
विभेद से आजाद होंगे।
15 अगस्त के पुनीत अवसर पर देश के सभी मानव देश की इन सभी समस्याओं को समूल नष्ट करने का प्रण ले लेंगे तो वास्तव में कुछ वर्षों के पश्चात् हम अपने शहीद पूर्वजों के स्वप्नों को साकार कर सच्ची श्रद्धांजलि बाह्यरूपेण नहीं आन्तरिक निर्मलता के साथ देकर आनन्दपूर्वक इस पावन उत्सव को सच्चाई के साथ मनाएँगे। देश के सच्चे सपूत का कर्तव्य निभाएँगे।