मैं कौन हूं? साकार जीवात्मा निराकार परमात्मा जीवन आधार हूं

—विनय कुमार विनायक
मैं कौन हूं?
क्या मैं एक बालक हूं?
नहीं वो कभी था
अब मैं बालक नहीं हूं
फिर मैं युवा हूं
नहीं वो भी कभी था अब कहां हूं
तो फिर मैं वृद्ध हूं
हो सकता है अभी मैं वृद्ध हूं
तो फिर क्या मैं चिरकाल तक
एक वृद्ध बनकर रहूंगा
नहीं मैं वृद्ध के बाद मृतक हो जाऊंगा
तो क्या मैं मृतक हूं
अगर हां तो कोई मृतक
क्यों नहीं कहता कि मैं मृतक हूं?
जैसे कि मैं बालक हूं मैं युवा हूं
मैं वृद्ध हूं कहता है हरकोई इस देह से
वैसे मृतक क्यों नहीं कहता
कि मैं मृतक हूं इसी देह से
फिर तो मैं मृतक नहीं हूं
मैं बालक जब था खुद को बालक कहा
मैं युवा जब था खुद को युवा कहा
मैं जब वृद्ध हूं खुद को वृद्ध कहता हूं
कहता रहूंगा मगर मैं मृतक हूं
ना मैंने कभी कहा ना कभी कहूंगा
ना किसी मृतक से कहते सुना हूं
और ना कोई मृतक कभी कहेगा
फिर तो मैं मृतक कभी नहीं हूं
यानि मृतक के बाद भी मैं हूं
मगर मैं देह नहीं हूं
जैसे कि मैं बोलता हूं मगर मैं मुंह नहीं हूं
बल्कि मुंह मेरा है
मैं चलता हूं मगर मैं पैर नहीं हूं
बल्कि पैर मेरा है
मैं मरता हूं मगर मैं मृतक नहीं हूं
बल्कि वह शरीर मेरा है
लेकिन अब मैं उस शरीर में नहीं हूं
मैं शरीर से शरीर लेकर आया नन्हा सा
ध्वनित जोर से मुंह से ध्वनि करता हुआ
तो क्या मैं मुंहजोर वाकवीर ब्राह्मण हूं?
नहीं वर्षों मुझे बोलना सिखाया नाम दिया
उपाधि दी उपनयन पहनाया
तिलक लगाया ब्रह्मणत्व दिया पिता ने
तब कही मेरे मुख से कहलाया मैं ब्राह्मण हूं
मेरी भुजाओं को सहलाया मुझमें क्षत्रियत्व भरा
तब मैंने खुद को क्षत्रिय समझा
मुझे आभूषणों से सजाया धनोष्मित किया
तब मुझे वणिक महासेठ होने का अहसास हुआ
और न जाने क्यों जब लोगों ने
मुझे दबाया सताया सबकुछ छीन श्रीहीन कर दिया
तब मेरे मन में दलित छलित भाव भर आया
तो मैं ब्राह्मण से दलित व ईसाई मुस्लिम नहीं हूं
ये तो आया गया भाव प्रभाव दबाव बदलाव है
तो क्या मैं सनातन वैदिक हिन्दू हूं?
नहीं हिन्दुत्व तो सतत समारोपित मनोभाव गुणधर्म है
जिसे झटके से तिलक उपनयन त्याग कर
कुछ और हो जा सकता हूं आवेश में ठेंगा दिखाकर
तो फिर मैं कौन हूं जब मौन हूं जब गौण हूं
जब अकार हूं जब निराकार हूं जब अस्वीकार हूं
क्षितिज धरा जल पावक गगन समीर से परे
असीम सीमाहीन परमाणु से परमात्मा तक प्रसार हूं
आकार में बंधा साकार जीवात्मा हूं
निराकार जीव से परे परमात्मा जीवन आधार हूं!
—विनय कुमार विनायक

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