विविधा

देश द्रोही कौन?

desh drohश्री विनोद कुमार सर्वोदय का एक आलेख  प्रवक्ता में आया है. आलेख का शीर्षक है: क्या भारतीय मुस्लिमों के कारनामे देशभक्ति पूर्ण हैं?

इस  पूरे आलेख में कुछ ऐसे  उदाहरण दिए  गये हैं,जिससे वह व्यक्ति विशेष या वे व्यक्ति कठघरे में खड़े किए जा सकते हैं. पर इन उदाहरणों से यह कहाँ सिद्ध होता है कि पूर्ण मुस्लिम  समाज देश द्रोही है. दूसरी बात जो सामने आती है,वह यह है कि अगर यह आलेख किसी मुस्लिम द्वारा लिखा गया होता ,तो यह कहा जा सकता था कि वह व्यक्ति विशेष,जिसने यह आलेख  लिखा है,अपने ही मज़हब कुछ लोगों द्वारा किए गये कारनामों के लिए अपने को शर्मिंदा महसूस कर रहा है और उसी भावना में बह कर उसने यह आलेख लिखा है. इस तरह के आलेख प्रवक्ता में आए भी हैं और लोगों ने उनकी भावनाओं को सराहा भी है,पर यह आलेख तो किसी हिंदू द्वारा लिखा गया है, तो पहला प्रश्न यह खड़ा हो जाता हैकि क्या किसी  अन्य धर्म या मज़हब वालों को किसी पर इस तरह का लांच्छन  लगाने का अधिकार है?

आलेख का प्रारंभ होता है  उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख समाजवादी नेता और उत्तर प्रदेश  सरकार में शहरी विकास मंत्री श्री आज़म ख़ान के  उस वक्तव्य से जिसमे उन्होने  कहा था कि भारत के मुसलमानों की देशभक्ति पर संदेह करने की जरुरत नहीं है। देश के लिए वे जान देने में जरा भी गुरेज नहीं करेगा, जरुरत है उस पर विश्वास करने की।’’ ठीक ही तो कहा था उन्होने.  यह सच है कि इस तरह के प्रश्न बार बार उन लोगों द्वारा उठाए जाते रहे हैं, जो स्वयं  ही देश भक्ति को ठीक से  परिभाषित  नहीं कर पाए हैं.इस पर लेखक द्वारा एतराज जताने का कारण? क्यों लेखक खड़ा हो गया ,उनकी बात काटने के लिए? आज़म ख़ान ने शायद भारत माता की तस्वीर के बारे में कुछ  अपशब्द कहे थे,पर मेरे विचारानुसार  उससे उनका देशद्रोह नहीं सिद्ध होता ,क्योंकि किसी  चितेरे के हाथ   चित्रित एक काल्पनिक तस्वीर को कोई  भारत  राष्ट्र  का  प्रतीक मान सकता है तो किसी दूसरे को वह  वैसा ही करने को वाध्य नहीं कर सकता. आज़म ख़ान केवल हिंदुओं के धार्मिक भावनाओं को ठेस  पहुँचाने  के दोषी हो सकते हैं. .

आलेख में कुछ अन्य उदाहरण  भी हैं.  उसमे ऐसे  उदाहरण  भी हैं ,जहाँ  उन लोगों को देश द्रोही  कहा जा सकता है,जिन्होने वे कार्य संपन्न  किए या वैसी विचार धारा के पोषक बने.  अब प्रश्न यह उठता है कि इससे पूर्ण मुस्लिम समाज को देश  द्रोही कहा जा सकता है क्या?

बहुत से हिंदुओं के कारनामे भी सामने आए हैं,जहाँ उन्हे पाकिस्तान के लिए  या किसी अन्य देश के लिए  जासूसी करते पकड़ा गया है. १९६२ में चीन  के  आक्रमण के समय बहुत लोगों ने खुलाम खुला चीन की तरफ़दारी की थी.     कुछ   लोगों ने   उन्हे देश द्रोही  भी कहा था,पर उससे पूरे हिंदू समाज  पर तो उंगली नहीं उठी,तो यह सौतेला व्यवहार मुस्लिमों के प्रति क्यों?

और तो और जिस गौ माता के विरुद्ध एक शब्द बोलने पर देश द्रोही,विधर्मी और न जाने कितने अल्नकारों से सुशोभित किया जाता है,उनकी बंगला देश  के लिए तस्करी में हिंदू भी पकड़े गये हैं,पर उससे पूरे हिंदू  क़ौम को तो बदनाम नहीं किया गया.

बुनियादी प्रश्न तो इससे भी उपर है. क्या भारत  के आज की  हालात में किसी को  किसी अन्य   को यह कहने का अधिकार है क्या कि वह देश द्रोही है. जबकि  हाल यह है कि हम एक दूसरे को इस बात में मात देने में लगे हुए हैं कि कौन इस देश को ज़्यादा हानि  पहुँचा सकता है. हिंदू मुस्लिम का प्रश्न तो बाद में आता  है.

पहला प्रश्न है भ्रष्टाचार का. क्या  कोई भीं भ्रष्ट व्यक्ति देश भक्त हो सकता है क्या?

दूसरा प्रश्न आता है   मिलावट का. मिलावट हमारे यहाँ बहुत बड़ा व्यापार बन गया है. इसमे डीजल ,पेट्रोल में मिलावट के साथ मसालों और अन्य खाद्य सामग्रियों में मिलावट की बात आती है.   असली  दूध के बदले नकली दूध और खोए के बदले नकली खोए बाज़ारों में आम बात है. यहाँ तक की जीवन रक्षक दवाइयों में मिलावट सबसे ज़्यादा भारत में है. क्या इसमे लगे लोग देश भक्त हो सकते हैं क्या?  आप कहेंगे कि इनका कोई धर्म या मज़हब नहीं होता,पर क्या हिंदू बहुल देश में इनमे से अधिकतर  हिंदू नहीं होंगे?

तीसरा महत्व पूर्ण प्रश्न आता है प्रदूषण का. पूरा देश प्रदूषण के बोझ से कराह रहा है. पवित्र  नदियाँ  गंदे नालों में  परिवर्तित हो रहीं हैं. क्या इस  स्थिति के लिए ज़िम्मेवार लोग देश द्रोही नहीं हैं

इस तरह के अनगिनत प्रश्न  हैं, जिसका उत्तर ढूँढना  आवश्यक है.  इन प्रश्नों के घेरे में राष्ट्र रसातल की ओर जा रहा है और हम देश द्रोहियों कों ढूँढने निकले हैं.

कभी कभी लगता है कि मैं ही ग़लत हूँ,अतः  यह   सब बकवास और अरण्य  रोदन से अधिक कुछ नहीं.

आर सिंह