देश द्रोही कौन?

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desh drohश्री विनोद कुमार सर्वोदय का एक आलेख  प्रवक्ता में आया है. आलेख का शीर्षक है: क्या भारतीय मुस्लिमों के कारनामे देशभक्ति पूर्ण हैं?

इस  पूरे आलेख में कुछ ऐसे  उदाहरण दिए  गये हैं,जिससे वह व्यक्ति विशेष या वे व्यक्ति कठघरे में खड़े किए जा सकते हैं. पर इन उदाहरणों से यह कहाँ सिद्ध होता है कि पूर्ण मुस्लिम  समाज देश द्रोही है. दूसरी बात जो सामने आती है,वह यह है कि अगर यह आलेख किसी मुस्लिम द्वारा लिखा गया होता ,तो यह कहा जा सकता था कि वह व्यक्ति विशेष,जिसने यह आलेख  लिखा है,अपने ही मज़हब कुछ लोगों द्वारा किए गये कारनामों के लिए अपने को शर्मिंदा महसूस कर रहा है और उसी भावना में बह कर उसने यह आलेख लिखा है. इस तरह के आलेख प्रवक्ता में आए भी हैं और लोगों ने उनकी भावनाओं को सराहा भी है,पर यह आलेख तो किसी हिंदू द्वारा लिखा गया है, तो पहला प्रश्न यह खड़ा हो जाता हैकि क्या किसी  अन्य धर्म या मज़हब वालों को किसी पर इस तरह का लांच्छन  लगाने का अधिकार है?

आलेख का प्रारंभ होता है  उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख समाजवादी नेता और उत्तर प्रदेश  सरकार में शहरी विकास मंत्री श्री आज़म ख़ान के  उस वक्तव्य से जिसमे उन्होने  कहा था कि भारत के मुसलमानों की देशभक्ति पर संदेह करने की जरुरत नहीं है। देश के लिए वे जान देने में जरा भी गुरेज नहीं करेगा, जरुरत है उस पर विश्वास करने की।’’ ठीक ही तो कहा था उन्होने.  यह सच है कि इस तरह के प्रश्न बार बार उन लोगों द्वारा उठाए जाते रहे हैं, जो स्वयं  ही देश भक्ति को ठीक से  परिभाषित  नहीं कर पाए हैं.इस पर लेखक द्वारा एतराज जताने का कारण? क्यों लेखक खड़ा हो गया ,उनकी बात काटने के लिए? आज़म ख़ान ने शायद भारत माता की तस्वीर के बारे में कुछ  अपशब्द कहे थे,पर मेरे विचारानुसार  उससे उनका देशद्रोह नहीं सिद्ध होता ,क्योंकि किसी  चितेरे के हाथ   चित्रित एक काल्पनिक तस्वीर को कोई  भारत  राष्ट्र  का  प्रतीक मान सकता है तो किसी दूसरे को वह  वैसा ही करने को वाध्य नहीं कर सकता. आज़म ख़ान केवल हिंदुओं के धार्मिक भावनाओं को ठेस  पहुँचाने  के दोषी हो सकते हैं. .

आलेख में कुछ अन्य उदाहरण  भी हैं.  उसमे ऐसे  उदाहरण  भी हैं ,जहाँ  उन लोगों को देश द्रोही  कहा जा सकता है,जिन्होने वे कार्य संपन्न  किए या वैसी विचार धारा के पोषक बने.  अब प्रश्न यह उठता है कि इससे पूर्ण मुस्लिम समाज को देश  द्रोही कहा जा सकता है क्या?

बहुत से हिंदुओं के कारनामे भी सामने आए हैं,जहाँ उन्हे पाकिस्तान के लिए  या किसी अन्य देश के लिए  जासूसी करते पकड़ा गया है. १९६२ में चीन  के  आक्रमण के समय बहुत लोगों ने खुलाम खुला चीन की तरफ़दारी की थी.     कुछ   लोगों ने   उन्हे देश द्रोही  भी कहा था,पर उससे पूरे हिंदू समाज  पर तो उंगली नहीं उठी,तो यह सौतेला व्यवहार मुस्लिमों के प्रति क्यों?

और तो और जिस गौ माता के विरुद्ध एक शब्द बोलने पर देश द्रोही,विधर्मी और न जाने कितने अल्नकारों से सुशोभित किया जाता है,उनकी बंगला देश  के लिए तस्करी में हिंदू भी पकड़े गये हैं,पर उससे पूरे हिंदू  क़ौम को तो बदनाम नहीं किया गया.

बुनियादी प्रश्न तो इससे भी उपर है. क्या भारत  के आज की  हालात में किसी को  किसी अन्य   को यह कहने का अधिकार है क्या कि वह देश द्रोही है. जबकि  हाल यह है कि हम एक दूसरे को इस बात में मात देने में लगे हुए हैं कि कौन इस देश को ज़्यादा हानि  पहुँचा सकता है. हिंदू मुस्लिम का प्रश्न तो बाद में आता  है.

पहला प्रश्न है भ्रष्टाचार का. क्या  कोई भीं भ्रष्ट व्यक्ति देश भक्त हो सकता है क्या?

दूसरा प्रश्न आता है   मिलावट का. मिलावट हमारे यहाँ बहुत बड़ा व्यापार बन गया है. इसमे डीजल ,पेट्रोल में मिलावट के साथ मसालों और अन्य खाद्य सामग्रियों में मिलावट की बात आती है.   असली  दूध के बदले नकली दूध और खोए के बदले नकली खोए बाज़ारों में आम बात है. यहाँ तक की जीवन रक्षक दवाइयों में मिलावट सबसे ज़्यादा भारत में है. क्या इसमे लगे लोग देश भक्त हो सकते हैं क्या?  आप कहेंगे कि इनका कोई धर्म या मज़हब नहीं होता,पर क्या हिंदू बहुल देश में इनमे से अधिकतर  हिंदू नहीं होंगे?

तीसरा महत्व पूर्ण प्रश्न आता है प्रदूषण का. पूरा देश प्रदूषण के बोझ से कराह रहा है. पवित्र  नदियाँ  गंदे नालों में  परिवर्तित हो रहीं हैं. क्या इस  स्थिति के लिए ज़िम्मेवार लोग देश द्रोही नहीं हैं

इस तरह के अनगिनत प्रश्न  हैं, जिसका उत्तर ढूँढना  आवश्यक है.  इन प्रश्नों के घेरे में राष्ट्र रसातल की ओर जा रहा है और हम देश द्रोहियों कों ढूँढने निकले हैं.

कभी कभी लगता है कि मैं ही ग़लत हूँ,अतः  यह   सब बकवास और अरण्य  रोदन से अधिक कुछ नहीं.

आर सिंह

23 COMMENTS

  1. विकासात्मक राजनीति के अतिरिक्त न्याय व्यवस्था व विधि का प्रवर्तन ही समाज में नागरिकों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं| भारत में दोनों ही लुप्त है| कीचड़ में बैठे हम एक दूसरे पर कीचड़ उछाले जा रहे हैं|

  2. टिप्पणी पर टिप्पणी लिखना अछ्छी बात नहीं है.
    मूल लेख में यह khnaa के कोई एक sampraday deshbhaktse heen नहीं हो saktee shayad sahee नहीं है
    भारत के अनेक bibhajan hinduo की sanhyaa ghatnebale bhagpn की hui है (अफगानिस्तान, पाकिस्तान-बांग्लादेश) -sanhee vibhajan aise नहीं huwe hain (जैसे नेपाल,aaur भारत)-
    राष्ट्र और देश अलग cheej है- अफगानिस्तान से balee-काम्पुचिया और तिब्बत से श्रीलंका तक एक संस्कृतक भारत राष्ट्र है जिसके सभी संतान भारती हैं यदि वे अपनी पुण्यभूमि भी ise ही मानें (मैं इसमें मॉरिशस फिजी या अमेरिका आदि देशों में भी हो हिन्दू है उनकी राष्ट्रीयता भारती है और जो अहिंदू हैं उनकी पुण्यभूमि यहाँ नही होने के कर्ण ही यह संदेह कीबात आती है – चुनकी इस्लाम पशिमी निकट पड़ोसी है उनसे यहाँ आ न केवल लूटपाट की देश का विखंडन भी कर दिया और एक राष्ट्र के नाते इस्लाम अलग राष्ट्र है और jab koi muslamaan islamee राष्ट्र का है तो usase आप राष्ट्रभक्ति की अपेक्षा क्यों करते हैं ? ——————————————————–एक राष्ट्रमे जिसमे अनेक देश hote rahe है पर हिन्दू धर्म ने use एक rakhaa है- चाहे नेपाल की बात हो या भारत की – इसलिए हिन्दू को राष्ट्रवादी कहने की आवश्यकता नहीं है जो वह नहीं है वह गद्दार है-जिसके अनेक उदाहरN दिए गए हैं लेखमे – तो फिर प्रश्न उठेगा जो मुसलमान अछे हैं वे kyaa हैं? वे अलग राष्ट्रके हैं इसलिए हिन्दू राष्ट्र के किसी देशमे वे अछे नागरिक या इन्सान हो सकते हैं और ऐसे बहुत हैं पर इसका अर्थ यह नही की वे भारती राष्ट्र के हैं – उनके पुरखे जरूर थे पर जब पुण्यभूमि उन्होनेबदल डाला वे अलग राष्ट्रके हो गए – उनमे कुछ बहुत महान हुवे और अपनी जीन के अनुसार रामभक्त रहीम हो गए और उन्हें भारती राष्ट्र का मानना चाहिए इस्लामी राष्ट्र का नहीं ———————————————-मधुसूदंजी अमेरिका में हैं पर भारती हैं (असली अमरीकी राष्ट्र तो रेड इंडियन का है बांकी सभी वहा लुटेरे हैं unheeme आज वे भी एक हैं बुश -वाशिंगटन पुराने लुटेरे रहे हैं)- amrika inke जाने के पहले उत्तरी ध्रुव या दक्षिणे एध्रुव के एताढ़ जनविहीन नही था की ये अपनी राष्ट्रीयता उन पर थोपें- जब तक एक भी रेड इंडियन है अमेरिका उसका है -वैसे ही एक भे एहिंदु है आज का पाकिस्तान बांग्लादेश हिन्दू राष्ट्र है – असंभव लगती है न ये बात- एक भयानक भूकंप आवे प्रलय हो – अनु युद्ध्ह हो यदि बचा मनु vahaan हिन्दू रहेगा तो भारती नहे ईटीओ मुसल्मा हो तो इस्लामी राष्ट्र … ——————————————————————यानी एक मुसलमान अछा नागरिक और नेक इंसान हो सकता पर जब तक वह मुसलमान है भारती राष्ट्र का नहीं है ————————–एक हिन्दू बेईमान, गद्दार हो सकता ही पर वह भारती राष्ट्र का अराष्ट्रीय नही ——————————————————————————————————किसी देश के कानून के अनुसार कोई अछा या बुरा नागरिक हो सकता अहि वहां हिन्दू -मुसलमान में भेद नहीं और यही सेकुलरिज्म की कसौटी है ————–टिप्पणी पर टिप्पणी लिखना अछ्छी बात नहीं है. पर जो बात त्यागी ने लिखी है यदि वे कुरान और सुरा में हैं तो इस्लाम राष्ट्र के लोगों को सोचना चाहिए- और जिनको लोग लुटेरे समझाते रहे वे फिर धार्मिक मने जायेंगे उनके औसर और इस्लामिक के लिए इस्लाम दुनिया का संकट और सभी इस्लामी एक हो इस्लाम को ख़त्म कर देंगे आज नहीं तो कल वैसे ईसाइयत का इतिहास भी आतंक का रहा है जिसके विष्कुम्भ पर पयोमुख – दूध रहा है- वहां के यानी इसी राष्ट्रीयता के लोगों में अधिक विचारवान हुवे हैं – इसीप्रकार शिक्षा के प्रचार से संभव है इस्लाम भी बदले – पर उसके लिए हिन्दू राष्ट्र को sangthit होना होगा जिसमे मीना जैसे निरंकुश पर तार्किक विचारक व्यक्ति की आवश्यकता बहुत रहेगी —————————————————————-

    • मैंने लिखा है कि कभी कभी लगता है कि मैं ही गलत हूँ,पर आज भी मैं अपने इस विचार पर कायम हूँ कि राष्ट्र धर्म निभाने के लिए व्यक्तिगत शुचिता पहली आवश्यकता है.भारतीय संस्कृति जिसमे क्रमश: सभी धर्मों और मतों का समावेश होता गया,हमें यही शिक्षा देती है. रही बात किसी धर्म या मजहब में जिहाद की बात तो जब हम सनातन धर्म में देवासुर संग्राम की चर्चा करते हैं ,तो कुछ उसी तरह का आभास होता है,पर मेरे विचार से,(जैसा मैंने पहले भी लिखा है) धर्म एक युग यानि उस वर्तमान का जिस समय उस पर कुछ कहा लिखा गया,उसके लिए दिशा निर्देश करता है,जिसको युग परिवर्तन के साथ ही छोड़ देना चाहिए.धर्म या मजहब का शाश्वत अंग युग युग के लिए होता है.इंसान को नीर क्षीर विवेक के अनुसार उस शाश्वत अंग को हमेशा अपनाना चाहिए और युग के अनुसार आवश्यक अंश को उस युग क़ी समाप्ति के साथ ही त्याग देना चाहिए,पर इसके लिए जिनको पहल करनी चाहिए ,वे तो इसको व्यापार बना लिए हैं और धर्म या मजहब क़ी परिभाषा व्यक्तिगत नफ़ा या नुकशान के तराजू से करते हैं
      अगर धर्म को राष्ट्र के समानार्थक भी मान लिया जाए,तो कोई भी व्यक्ति अपने को तब तक देशभक्त नहीं कह सकता,जब तक वह समाज या देश के प्रतिं अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता.मेरे आलेख का मूल यही है..मेरे विचार से देश भक्ति का गीत गाने या दूसरे को देश द्रोही कहने से हम देश भक्त नहीं बन जाते.मेरे विचार से किसी खास धर्म या मजहब में जन्म लेनेसे हीं कोई देश भक्त या देश द्रोही नहीं हो जाता.अगर इश्वर क़ी आराधना या अल्लाह क़ी इबादत को राष्ट्र या देश भक्ति से जोड़ दिया जाए तो सारे नास्तिक देश द्रोही हो जायेंगे,पर वास्तिवता .यह नहीं है.
      एक बात और.यह कहना कि हिन्दू धर्म कि व्याख्या यह कहती है कि दुनिया के किसी कोने में बसे हुए हिन्दू भारत राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं या भारत को अपना राष्ट्र मानते हैं,तो मैं इसे उनलोगों को उस देश के लिए गद्दार कहूँगा,जहां के वे नागरिक हैं,क्योंकि हमारे देश के क़ानून के अनुसार अगर कोई व्यक्ति दूसरे देश का नागरिक बन जाता है ,तो उसकी भारत की नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है.. आज अगर भारत के साथ उस देश का युद्ध होता है,तो उसका कर्तव्य है कि वह भारत के विरुद्ध समग्र शक्ति के साथ उस देश का साथ दे.

      • आपके पास अनुभवों का भण्डार है , भावनाओं का सागर है पर उससे ही सभी प्रश्न उत्तरित नही होंगे – देशभक्ति या गद्दारी किसी की नागरिकता के दृष्टि से समान सोची जा सकती पर राष्ट्रीयता के लिए नहीं जिसे मैंने समझाने की कोशिश की थी .. —————————————————————————–हिंदू धर्म संप्रदाय नहीं है वह एक जीवन पध्हती है ——————————————————पर भारत के सापेक्ष्य में जिसका विभाजन इस्लामी दबाब के कारण हुवा और इस्लाम ने एक राष्ट्रीयता का रूप लिया हिन्दू राष्ट्र को भी दृढ होना होगा —————————————————————-नागरिकता samvaidhanik मामला है पर राष्ट्रीयता को इससे कुछ लेना देना नहीं है वह हमारी आत्मा है नागरिकता शरीर —————————————————————————कोई सम्प्रदाय राष्ट्रिय हो सकता है पर जैसे इस्लाम भारत में पर इसका मतलब नही की कुछ या अधिकांश नागरिक देशभक्त नहीं हो सकते – पर जब किसी इस्लामी देश से झगडा होगा उनका झुकाव उनकी राष्ट्रीयता के अनुसार होगा देश के अनुसार नहीं(यह आप क्रिकेट में भी देख सकते हैं )

        • डाक्टर साहिब अफ़सोस तो यह है कि आपलोग मूल प्रश्न को बार बार टाल जा रहे हैं. जहाँ तक मेरा अनुभव या ज्ञान है,हिन्दू धर्म और संस्कृति का आधार है,व्यक्तिगत शुचिता. अगर वह किसी में नहीं है,तो वहहिन्दू ही नहीं है, फिर राष्ट्र भक्ति या देशभक्ति का प्रश्न कहाँ उठता है?.मेरे आलेख का मूल आधार यही है कि जब हम स्वयं उस पैमाने पर खरा नहीं उतर रहे हैं यानि हम स्वयं अपने धर्म की परिभाषा के अनुसार न हिन्दू हैं और न देशभक्त,तो दूसतों पर उंगली उठाने वाले हम कौन होते हैं? जहाँ तक हिन्दू धर्म और इस्लाम के जीवन पद्धति होने या न होने का प्रश्न है,मैंने दो वर्ष पहले एक पुस्तक पढ़ी थी,” इस्लाम चैलेन्ज टू रेलिजन ‘.उसमे लेखक ने तर्कों द्वारा सिद्ध किया था ,कि इस्लाम कोई मजहब नहीं है,यह तो जीवन पद्धति है. पुस्तक अभी मेरे पास नहीं है,पर अगर किसी को पढने की जिज्ञासा हो ,तो मैं उसके लेखक और प्रकाशक का नाम अवश्य देने का प्रयत्न करूंगा.
          डाक्टर साहिब,जब तक आपलोग मेरे मूल प्रश्न को नजर अंदाज करते रहेंगे,तब तक यह बहस यो ही चलती रहेगी.

  3. टिप्पणी पर टिप्पणी लिखना अछ्छी बात नहीं है.
    मूल लेख में यह khnaa के कोई एक sampraday deshbhaktse heen नहीं हो saktee shayad sahee नहीं है
    भारत के अनेक bibhajan hinduo की sanhyaa ghatnebale bhagpn की hui है (अफगानिस्तान, पाकिस्तान-बांग्लादेश) -sanhee vibhajan aise नहीं huwe hain (जैसे नेपाल,aaur भारत)-
    राष्ट्र और देश अलग cheej है- अफगानिस्तान से balee-काम्पुचिया और तिब्बत से श्रीलंका तक एक संस्कृतक भारत राष्ट्र है जिसके सभी संतान भारती हैं यदि वे अपनी पुण्यभूमि भी ise ही मानें (मैं इसमें मॉरिशस फिजी या अमेरिका आदि देशों में भी हो हिन्दू है उनकी राष्ट्रीयता भारती है और जो अहिंदू हैं उनकी पुण्यभूमि यहाँ नही होने के कर्ण ही यह संदेह कीबात आती है – चुनकी इस्लाम पशिमी निकट पड़ोसी है उनसे यहाँ आ न केवल लूटपाट की देश का विखंडन भी कर दिया और एक राष्ट्र के नाते इस्लाम अलग राष्ट्र है और jab koi muslamaan islamee राष्ट्र का है तो usase आप राष्ट्रभक्ति की अपेक्षा क्यों करते हैं ? ——————————————————–एक राष्ट्रमे जिसमे अनेक देश hote rahe है पर हिन्दू धर्म ने use एक rakhaa है- चाहे नेपाल की बात हो या भारत की – इसलिए हिन्दू को राष्ट्रवादी कहने की आवश्यकता नहीं है जो वह नहीं है वह गद्दार है-जिसके अनेक उदाहरN दिए गए हैं लेखमे – तो फिर प्रश्न उठेगा जो मुसलमान अछे हैं वे kyaa हैं? वे अलग राष्ट्रके हैं इसलिए हिन्दू राष्ट्र के किसी देशमे वे अछे नागरिक या इन्सान हो सकते हैं और ऐसे बहुत हैं पर इसका अर्थ यह नही की वे भारती राष्ट्र के हैं – उनके पुरखे जरूर थे पर जब पुण्यभूमि उन्होनेबदल डाला वे अलग राष्ट्रके हो गए – उनमे कुछ बहुत महान हुवे और अपनी जीन के अनुसार रामभक्त रहीम हो गए और उन्हें भारती राष्ट्र का मानना चाहिए इस्लामी राष्ट्र का नहीं ———————————————-मधुसूदंजी अमेरिका में हैं पर भारती हैं (असली अमरीकी राष्ट्र तो रेड इंडियन का है बांकी सभी वहा लुटेरे हैं unheeme आज वे भी एक हैं बुश -वाशिंगटन पुराने लुटेरे रहे हैं)- amrika inke जाने के पहले उत्तरी ध्रुव या दक्षिणे एध्रुव के एताढ़ जनविहीन नही था की ये अपनी राष्ट्रीयता उन पर थोपें- जब तक एक भी रेड इंडियन है अमेरिका उसका है -वैसे ही एक भे एहिंदु है आज का पाकिस्तान बांग्लादेश हिन्दू राष्ट्र है – असंभव लगती है न ये बात- एक भयानक भूकंप आवे प्रलय हो – अनु युद्ध्ह हो यदि बचा मनु vahaan हिन्दू रहेगा तो भारती नहे ईटीओ मुसल्मा हो तो इस्लामी राष्ट्र … ——————————————————————यानी एक मुसलमान अछा नागरिक और नेक इंसान हो सकता पर जब तक वह मुसलमान है भारती राष्ट्र का नहीं है ————————–एक हिन्दू बेईमान, गद्दार हो सकता ही पर वह भारती राष्ट्र का अराष्ट्रीय नही ——————————————————————————————————किसी देश के कानून के अनुसार कोई अछा या बुरा नागरिक हो सकता अहि वहां हिन्दू -मुसलमान में भेद नहीं और यही सेकुलरिज्म की कसौटी है ————–टिप्पणी पर टिप्पणी लिखना अछ्छी बात नहीं है. पर जो बात त्यागी ने लिखी है यदि वे कुरान और सुरा में हैं तो इस्लाम राष्ट्र के लोगों को सोचना चाहिए- और जिनको लोग लुटेरे समझाते रहे वे फिर धार्मिक मने जायेंगे उनके औसर और इस्लामिक के लिए इस्लाम दुनिया का संकट और सभी इस्लामी एक हो इस्लाम को ख़त्म कर देंगे आज नहीं तो कल वैसे ईसाइयत का इतिहास भी आतंक का रहा है जिसके विष्कुम्भ पर पयोमुख – दूध रहा है- वहां के यानी इसी राष्ट्रीयता के लोगों में अधिक विचारवान हुवे हैं – इसीप्रकार शिक्षा के प्रचार से संभव है इस्लाम भी बदले – पर उसके लिए हिन्दू राष्ट्र को संग्थोत होना होगा जिसमे मीना जैसे निरंकुश पर तार्किक विचारक व्यक्ति की आवश्यकता बहुत रहेगी —————————————————————-

    • मैंने लिखा है कि कभी कभी लगता है कि मैं ही गलत हूँ,पर आज भी मैं अपने इस विचार पर कायम हूँ कि राष्ट्र धर्म निभाने के लिए व्यक्तिगत शुचिता पहली आवश्यकता है.भारतीय संस्कृति जिसमे क्रमश: सभी धर्मों और मतों का समावेश होता गया,हमें यही शिक्षा देती है. रही बात किसी धर्म या मजहब में जिहाद की बात तो जब हम सनातन धर्म में देवासुर संग्राम की चर्चा करते हैं ,तो कुछ उसी तरह का आभास होता है,पर मेरे विचार से,(जैसा मैंने पहले भी लिखा है) धर्म एक युग यानि उस वर्तमान का जिस समय उस पर कुछ कहा लिखा गया,उसके लिए दिशा निर्देश करता है,जिसको युग परिवर्तन के साथ ही छोड़ देना चाहिए.धर्म या मजहब का शाश्वत अंग युग युग के लिए होता है.इंसान को नीर क्षीर विवेक के अनुसार उस शाश्वत अंग को हमेशा अपनाना चाहिए और युग के अनुसार आवश्यक अंश को उस युग क़ी समाप्ति के साथ ही त्याग देना चाहिए,पर इसके लिए जिनको पहल करनी चाहिए ,वे तो इसको व्यापार बना लिए हैं और धर्म या मजहब क़ी परिभाषा व्यक्तिगत नफ़ा या नुकशान के तराजू से करते हैं
      अगर धर्म को राष्ट्र के समानार्थक भी मान लिया जाए,तो कोई भी व्यक्ति अपने को तब तक देशभक्त नहीं कह सकता,जब तक वह समाज या देश के प्रतिं अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता.मेरे आलेख का मूल यही है..मेरे विचार से देश भक्ति का गीत गाने या दूसरे को देश द्रोही कहने से हम देश भक्त नहीं बन जाते.मेरे विचार से किसी खास धर्म या मजहब में जन्म लेनेसे हीं कोई देश भक्त या देश द्रोही नहीं हो जाता.अगर इश्वर क़ी आराधना या अल्लाह क़ी इबादत को राष्ट्र या देश भक्ति से जोड़ दिया जाए तो सारे नास्तिक देश द्रोही हो जायेंगे,पर वास्तिवता .यह नहीं है.
      एक बात और.यह कहना कि हिन्दू धर्म कि व्याख्या यह कहती है कि दुनिया के किसी कोने में बसे हुए हिन्दू भारत राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं या भारत को अपना राष्ट्र मानते हैं,तो मैं इसे उनलोगों को उस देश के लिए गद्दार कहूँगा,जहां के वे नागरिक हैं,क्योंकि हमारे देश के क़ानून के अनुसार अगर कोई व्यक्ति दूसरे देश का नागरिक बन जाता है ,तो उसकी भारत की नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है.. आज अगर भारत के साथ उस देश का युद्ध होता है,तो उसका कर्तव्य है कि वह भारत के विरुद्ध समग्र शक्ति के साथ उस देश का साथ दे.

  4. डाक्टर मीणा धन्यवाद,.मेरी अपनी एक विचार धारा है,जिसे मैं किसी तरह की संकीर्णता से ऊपर मानता हूँ..कभी कभी लगने लगता है कि मैं ही गलत हूँ,पर जब उस विचार धारा के विरुद्ध लोग ठोस तर्क नहीं प्रस्तुत कर पाते तो फिर सोचना पड़ता है.मेरा पूर्ण मापदंड व्यक्तिगत शुचिता पर आधारित है. मैं इस सिद्धांत का समर्थक हूँ, कि जब तक मैं गुड खाना नहीं छोडू ,दूसरे को उसे छोडने का उपदेश नहीं दे सकता. मेरे विचारानुसार आज समाज उस स्थिति में है,जहां पर उपदेश कुशल बहुतेरे. हमें इसमे थोडा परिवर्तन करने की आवश्यकता है कि उपदेश से उदाहरण अच्छा होता है.

  5. श्री सिंह साहब आपने लिखा है कि-

    “किसी चितेरे के हाथ चित्रित एक काल्पनिक तस्वीर को कोई भारत राष्ट्र का प्रतीक मान सकता है तो किसी दूसरे को वह वैसा ही करने को वाध्य नहीं कर सकता”

    मुझे नहीं पता कि आपकी उक्त पंक्ति पर कितने लोगों की भोंहें तनेंगी और कितने सहमत होंगे, लेकिन कट्टरपंथी बेशक वे किसी भी पंथ के अनुयायी उन्हें किसी की भी तार्किक और न्याय संगत न तो समझ में आती है और न ही वे समझना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें “तार्किक और न्याय संगत” बातों पर विचार करने की आज़ादी नहीं दी जाती है! कट्टरपंथी एक ही बात को जनता है-

    “मैं/हम जो कह रहे हैं वो सही, सत्य और न्याय संगत है, इसलिए दूसरे लोग भी हमारी सही, सत्य और न्याय संगत बात/विचारधारा का समर्थन करें।”

    जो लोग उनकी इस बात को नहीं मानते वे देशद्रोही, धर्मद्रोही, विधर्मियों के समर्थक और मानवता के दुश्मन हैं!

    ऐसे लोग इस बात पर विचार नहीं करना चाहते कि उनकी नज़र में जो कुछ ‘सही, सत्य और न्याय संगत है’ उस पर दूसरे लोगों को सवाल उठाने या तर्क करने का हक़ होता है! इसलिए दूसरों के तर्कों और शंकाओं को सुनना, समझना और उनका समाधान करना भी उनका नैतिक दायित्व होता है!
    ——————
    श्री नवीन त्यागी जी की टिप्पणी के निम्न अंश

    “आर सिंह जी आपकी उम्र को देखते हुए आपकी बातों से लगता है की आप बे सर पैर की बातों से मुसलमानों को देश भक्त सिद्ध करना चाहते हैं ….”

    को छोड़कर हर एक शब्द/बिंदु विचार, चर्चा का विषय है!

    श्री नवीन त्यागी जी से आग्रह है कि किसी भी पाठक या लेखक के बारे में व्यक्तिगत टिप्पणी करते समय संयम और शिष्टता का परिचय दें, तो चर्चा अधिक सार्थक होगी! आप निम्न अंश
    को लिखे बिना भी “आपकी उम्र को देखते हुए आपकी बातों से लगता है की” अपनी बात बखूबी कह सकते थे. जैसे-

    “आर सिंह जी आप बे सर पैर की बातों से मुसलमानों को देश भक्त सिद्ध करना चाहते हैं ….”

    श्री नवीन त्यागी जी ने जो उदाहरण लिखे है, यदि वे सही हैं तो मेरी राय में-
    “मामला अत्यंत गंभीर है और धर्म निरपेक्षता के नाम पर इस प्रकार के धर्म या पंथ के विस्तार की आज़ादी किसी भी गैर इस्लाम राष्ट्र में प्रश्नास्पद ही नहीं आत्मघाती भी है!”

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  6. आर सिंह जी आपकी उम्र को देखते हुए आपकी बातों से लगता है की आप बे सर पैर की बातों से मुसलमानों को देश भक्त सिद्ध करना चाहते हैं ….इस्लाम में देश भक्ति है ही नहीं ….उनके लिए केवल इस्लाम है ….क्या आप कुरआन को झुठला सकते हैं …..मानव एकता और भाईचारे के विपरीत कुरान का मूल तत्व और लक्ष्य इस्लामी एकता व इस्लामी भाईचारा है. गैर मुसलमानों के साथ मित्रता रखना कुरान में मना है. कुरान मुसलमानों को दूसरे धर्मो के विरूद्ध शत्रुता रखने का निर्देश देती है । कुरान के अनुसार जब कभी जिहाद हो ,तब गैर मुस्लिमों को देखते ही मार डालना चाहिए।

    सुरा ९ की आयत २३ में लिखा है कि, “हे इमां वालो अपने पिता व भाइयों को अपना मित्र न बनाओ ,यदि वे इमां कि अपेक्षा कुफ्र को पसंद करें ,और तुमसे जो मित्रता का नाता जोडेगा तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे। ”
    इस आयत में नव प्रवेशी मुसलमानों को साफ आदेश है कि,जब कोई व्यक्ति मुस्लमान बने तो वह अपने माता , पिता, भाई सभी से सम्बन्ध समाप्त कर ले। यही कारण है कि जो एक बार मुस्लमान बन जाता है, तब वह अपने परिवार के साथ साथ राष्ट्र से भी कट जाता है।

    सुरा ४ की आयत ५६ तो मानवता की क्रूरतम मिशाल पेश करती है ………..”जिन लोगो ने हमारी आयतों से इंकार किया उन्हें हम अग्नि में झोंक देगे। जब उनकी खाले पक जाएँगी ,तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसा-स्वादन कर लें। निसंदेह अल्लाह ने प्रभुत्वशाली तत्व दर्शाया है।”

    सुरा ३२ की आयत २२ में लिखा है “और उनसे बढकर जालिम कोन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा चेताया जाए और फ़िर भी वह उनसे मुँह फेर ले।निश्चय ही ऐसे अप्राधिओं से हमे बदला लेना है। ”

    सुरा ९ ,आयत १२३ में लिखा है की,” हे इमां वालों ,उन काफिरों से लड़ो जो तुम्हारे आस पास है,और चाहिए कि वो तुममे शक्ति पायें।”

    सुरा २ कि आयत १९३ …………”उनके विरूद्ध जब तक लड़ते रहो, जब तक मूर्ती पूजा समाप्त न हो जाए और अल्लाह का मजहब(इस्लाम) सब पर हावी न हो जाए. ”

    सूरा २६ आयत ९४ ……………….”तो वे गुमराह (बुत व बुतपरस्त) औन्धे मुँह दोजख (नरक) की आग में डाल दिए जायंगे.”

    सूरा ९ ,आयत २८ …………………..”हे इमां वालों (मुसलमानों) मुशरिक (मूर्ती पूजक) नापाक है। ”
    गैर मुसलमानों को समाप्त करने के बाद उनकी संपत्ति ,उनकी औरतों ,उनके बच्चों का क्या किया जाए ? उसके बारे में कुरान ,मुसलमानों को उसे अल्लाह का उपहार समझ कर उसका भोग करना चाहिए।
    सूरा ४८ ,आयत २० में कहा गया है ,…..”यह लूट अल्लाह ने दी है। ”

    बुरा मत मानना …आप जैसे लोगों की वजह से ही भारत में इस्लाम हावी हो रहा है ….

    • मेरे आलेख का अंतिम वाक्य पढ़िए, जो यह है,”कभी कभी लगता है कि मैं ही ग़लत हूँ,अतः यह सब बकवास और अरण्य रोदन से अधिक कुछ नहीं.”
      मैं नहीं समझता कि इसके बाद भी मुझे कुछ कहने की आवश्कता है.

    • श्री नवीन त्यागी जी की टिप्पणी के निम्न अंश

      “आर सिंह जी आपकी उम्र को देखते हुए आपकी बातों से लगता है की आप बे सर पैर की बातों से मुसलमानों को देश भक्त सिद्ध करना चाहते हैं ….”

      को छोड़कर हर एक शब्द/बिंदु विचार, चर्चा का विषय है!

      श्री नवीन त्यागी जी से आग्रह है कि किसी भी पाठक या लेखक के बारे में व्यक्तिगत टिप्पणी करते समय संयम और शिष्टता का परिचय दें, तो चर्चा अधिक सार्थक होगी! आप निम्न अंश
      को लिखे बिना भी “आपकी उम्र को देखते हुए आपकी बातों से लगता है की” अपनी बात बखूबी कह सकते थे. जैसे-

      “आर सिंह जी आप बे सर पैर की बातों से मुसलमानों को देश भक्त सिद्ध करना चाहते हैं ….”

      श्री नवीन त्यागी जी ने जो उदाहरण लिखे है, यदि वे सही हैं तो मेरी राय में-
      “मामला अत्यंत गंभीर है और धर्म निरपेक्षता के नाम पर इस प्रकार के धर्म या पंथ के विस्तार की आज़ादी किसी भी गैर इस्लाम राष्ट्र में प्रश्नास्पद ही नहीं आत्मघाती भी है!”

      डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

    • मूर्ति पूजा में तो मैं भी विशवास नहीं करता.हिन्दू धर्म का एक बहुत बड़ा हिस्सा,जो महर्षि दयानंद से प्रभावित है और जो आर्य समाज के नामसे जाना जाता , है,वह मूर्ति पूजा का विरोधी है ,पर न मैं और न आर्य समाज के लोग मूर्ति पूजकों के प्रति यह द्वेष भाव रखते हैं,तो क्या कारण है कि कुरआन के माध्यम से सन्देश देने वाले ने ऐसा किया? मैंने अपने बहुत से टिप्पणियों में युग धर्म और युग युग धर्म कि बात कही है. यह शायद उस समय के युग धर्म कि मांग थी,पर इसके तह में भी जाना होगा कि ऐसी क्या परिस्थितियाँ उस समय थी,जिसके कारण कुरआन में ऐसा लिखना पडा? पर कठिनाई तो यह है कि इस तह में जाए कौन? उन लोगों से तो उम्मीद नहीं की जा सकती,जिन्होंने धर्म और मजहब को व्यापार बना रखा है. अगर कोई इस पर शोध नहीं करता ,तो यह घृणा का वातावरण ऐसे ही पनपता रहेगा.

  7. डाक्टर मधुसूदन,”भारतीय मुस्लिमों के कारनामें देशभक्ति पूर्ण हैं ?” के सन्दर्भ में मेरी एक टिप्पणी के उत्तर में आपने लिखा था,”बुनियादी प्रश्न का उत्तर टिपण्णी में नहीं आलेख से दिया जाए.
    क्या आपसे ऐसा आलेख लिखने का अनुरोध मैं कर सकता हूँ?
    यह चर्चा को जन्म देगा. पर चर्चा आवश्यक है.”
    डाक्टर साहब,आज चार दिनों से मेरा आलेख प्रवक्ता के वाल पर पड़ा हुआ है और इसका प्रेक्ष्ण भी हो रहा है,पर अभी तक वह चर्चा आरंभ भी नहीं हुई,जिसका संकेत आपने दिया था. इसका अर्थ मैं क्या समझू ?

    • आदरणीय़, सिंह साहब आप के आलेख की पाठक संख्या बता रही है, कि, उसे बहुतो ने पढा है।
      यह तो अच्छी बात है। चर्चा कोई तभी करेगा, जब आप से सहमति ना हो।
      मेरा मत मात्र अलग है। निम्न पढें।
      (१)
      राष्ट्र भक्ति से विपरित राष्ट्र द्रोह होता है। इस लिए मेरी अपेक्षा थी, कि, आप राष्ट्र भक्ति क्या है? इस विषय में भी कुछ कहेंगे। राष्ट्र की अवधारणा के विषय में भी कुछ कहेंगे। इन दोनों बिंदुओं पर आप का आलेख मौन है।संसार की सारी पाठ्य पुस्तकें “नेशन” की व्याख्या करती है। जो आपके आलेख में नहीं है।
      (२) पर आलेख लेखक का होता है। उसने क्या लिखना चाहिए, वह उसीका अधिकार होता है। अतः मुझे इस विषय पर लिखना मेरा कर्तव्य बनता है।
      (३) आलेख को चर्चा द्वारा इतनी बडी अवधारणा के लिए अपहृत नहीं किया जा सकता।
      (४) मेरी व्यस्तता भी चल रही है।
      एक पूरे दिन की, सेमिनार का प्रबंधन मेरे उत्तर दायित्व पर है।एक दूसरी चार दिन की “वेदान्त कॉंग्रेस” में भी मैंने शोधपत्र प्रस्तुत करना है।
      (५)मेरी अभियांत्रिकी अध्यक्षता में, संचालित (कन्सल्टिंग) परामर्शक प्रकल्पों की सीमा दिनांकों के (डेड लाईनों) के बीच में “प्रवक्ता पर लिखने का प्रयास करता हूँ; आप जानते ही है।
      ऐसी अवस्था में —-आपने पूछा, तो उत्तर ना देना आपका अनादर माना जाता। इस लिए समय निकाला।
      आप जानते भी तो है ही। मैं नियमित तो प्रवक्ता पर भी लिख पाता नहीं हूँ–प्रवास पर भी रहता हूँ।
      आप ने मेरे अनुरोध पर आलेख डाला, अनेक धन्यवाद।

      • डाक्टर मधुसूदन धन्यवाद. यह तो मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि आप अपने अति व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय प्रवक्ता के लिए निकाल पाते हैं,उसके लिए प्रवक्ता के पाठकों को आपका अनुगृहित होना चाहिए
        डाक्टर साहब,मूलतः मेरी सोच सकारात्मक होती है.इस्का आभाष आपको मेरी टिप्पणियों में भी मिलता होगा. मेरे आलेख अवश्य मिश्रित श्रेणी में रखे जा सकते हैं.
        प्रस्तुत आलेख सच पूछिए तो एक ऐसे माहौल को सामने लाता है,जो आज के भारत की वास्तविकता है. देश प्रेम और देश भक्ति की रचनाओं से हमारे ग्रंथ भरे पड़े हैं,पर उस पर ध्यान कौन देता है? मेरे विचार से आज की आवश्यकता यह है कि हम आत्म निरीक्षण करें. अगर हमने ऐसा किया तो शायद किसी अन्य को ,वह भी एक पूरे समाज को हम कठघरे में खड़ा करे हीं नहीं.

  8. किसी एक दो मिसाल से किस पूरिपूरी कौम को देशभक्त या देशद्रोह साबित नही किया जा सकता लेकिन सिंह साहिब का सवाल बिलकुल सही है उसका जवाब अब तक kisi ne नही .diya hai

  9. कहाँ हैं , कहाँ हैं, कहाँ हैं ?
    जिन्हें नाज़ है अपने देश प्रेम पर वो आज कहाँ हैं?

  10. दरसल देशभक्त और देशद्रोही कोई व्यक्ति अपने स्वभाव से नहीं होता बल्कि देश-काल-परिस्थितियाँ उसके कारक हुआ करते हैं,.

    • तिवारी जी,इसमे मैं आपसे सहमत नहीं हूँ. इतिहास गवाह है कि एक ही काल में देश भक्त और देश द्रोही दोनो हुए हैं. उनकी संख्या के अंतर को भले ही आप परिस्थतिजन्य कह सकते हैं.

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