सुनहरे सपनों के बीच क्यों दम तोड़ रही हैं जिंदगियां ?

मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा के मामले में कोटा आज से करीबन बीस पच्चीस साल पहले से ही अग्रणी रहा है। पिछले आठ दस सालों से सीकर इन दोनों ही क्षेत्रों में उभर कर सामने आ रहा है।और आज बहुत से छात्र छात्राएं यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जयपुर भी मेडिकल और इंजीनियरिंग के मामले में कम नहीं रहा है और यहां भी आजकल बहुत से कोचिंग संस्थान उभर कर सामने आ रहे हैं। दूसरे शब्दों में हम यह बात कह सकते हैं कि राजस्थान में कोटा, जयपुर और सीकर जैसे शहर कोचिंग के गढ़ माने जाते हैं। आज कोटा ने जहां शिक्षा नगरी के रूप में पहचान बनाई है, और जयपुर सीकर भी शिक्षा के गढ़ बन गये हैं तो इसके पीछे यहां के शिक्षकों, विद्यार्थियों और निवासियों की बड़ी भूमिका रही है। इसके लिए वर्षों मेहनत की गई है। कोटा, सीकर व जयपुर के इन कोचिंग संस्थानों में पढ़कर सफल हुए विद्यार्थी आज देश-दुनिया में नाम कमा रहे हैं, लेकिन विद्यार्थियों द्वारा सामना की जा रही विभिन्न समस्याओं पर भी आज चिन्तन मनन की जरूरत है कि आखिर विद्यार्थियों को ऐसे खतरनाक कदम उठाने के लिए आखिरकार क्यों मजबूर होना पड़ रहा है ? विद्यार्थियों के मनोबल को आज बढ़ाने की जरूरत है, उन्हें यह बताने समझाने की जरूरत है कि सफलता और असफलता दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और व्यक्ति असफल होकर ही सफलता की सीढ़ियां चढ़ता है। सच तो यह है कि असफलता एक चुनौती है, हमें यह चाहिए कि हम विद्यार्थियों को यह बताएं कि कमियां क्या हैं, उनमें सुधार कैसे किया जा सकता है, समस्याओं से कैसे पार पाई जा सकती है। हमें बच्चों को हर मोड़ पर मोटिवेट करना है और यह बताने की जरूरत है कि ‘लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती,नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,चढ़कर गिरना गिरकर चढ़ना ना अखरता है,आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,कोशिश करने वालों की हार नहीं होती…।’ बहरहाल,आज कोटा, सीकर व जयपुर में राजस्थान के अन्य जिलों से ही नहीं अपितु देश के अनेक राज्यों के विद्यार्थी भी पढ़ाई करने आते हैं। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि विशेष रूप से कोटा और सीकर तो चिकित्सा और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं के लिए देशभर में विख्यात हो चुके हैं, लेकिन यहां अब तक कई विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम उठा लेना बहुत चिंता का विषय है। कोटा , सीकर व जयपुर में आज अनेकों कोचिंग सेंटर स्थापित है जो बच्चों को छठी कक्षा से ही फाउंडेशन कोर्सेज करवाते हैं, ऐसे में माता पिता, अभिभावकों को बच्चों को शिक्षा ग्रहण करवाने के लिए इन क्षेत्रों में या तो साथ रहना पड़ता है अथवा हास्टल, या पीजी (पेइंग गेस्ट) के रूप में बच्चों को रखना पड़ता है। जो बच्चे अपने अभिभावकों, माता पिता अथवा रिश्तेदारों के साथ रहते हैं, अक्सर वे तो मेडिकल और इंजीनियरिंग की परीक्षाओं का दबाव अधिक सहन नहीं करते, क्यों कि उनको समय समय पर अपने अभिभावकों, रिश्तेदारों, माता पिता से गाइडेंस, प्रोत्साहन, सकारात्मक ऊर्जा, सकारात्मक वातावरण मिलता रहता है लेकिन जो बच्चे घर से दूर अकेले रहते हैं, घर से, परिवार से, अभिभावकों, माता पिता, रिश्तेदारों से दूर रहने के कारण बहुत बार तनाव, अवसाद में आ जाते है और गलत कदम उठा बैठते हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल में यहां राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) की तैयारी कर रही एक 16 वर्षीया छात्रा ने आत्महत्या कर ली थी। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि सरकार तक ने भी यह माना है कि कोचिंग छात्र-छात्राओं की आत्महत्या के मामले प्रदेश में बढ़ रहे हैं। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो पता चलता है कि अकेले कोटा संभाग में विगत चार साल 2019 से 2022 तक स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटर के विद्यार्थियों के आत्महत्या के कुल 53 मामले दर्ज हुए हैं। यहां हमें यह सोचने की जरूरत है कि आखिर विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या के प्रमुख कारण क्या हैं ? तथा सरकार ने विद्यार्थियों की काउंसलिंग और सुरक्षा के लिए क्या-क्या प्रयास किए हैं ? वास्तव में, आज हर तरफ घोर प्रतिस्पर्धा का जमाना है।कोचिंग सेंटरों में होने वाले टेस्ट, परीक्षाओं आदि में में छात्रों के पिछड़ जाने के कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, आज माता-पिता, अभिभावकों की अपने बच्चों से उच्च महत्वाकांक्षाएं हैं, जीवन में जो वे स्वयं (माता पिता, अभिभावक) हासिल नहीं कर सके, वे सब वे अपने बच्चों में पूर्ति होना देखना चाहते हैं, बच्चों की आज दूसरे बच्चों से तुलनाएं की जाती है ‌‌‌।छात्रों में शारीरिक, मानसिक और पढ़ाई संबंधित तनाव उत्पन्न होना, आर्थिक तंगी, ब्लैकमेलिंग और प्रेम-प्रसंग जैसे प्रमुख कारण भी हैं, जो छात्र छात्राओं को गलत दिशा की ओर ले जाते हैं। वास्तव में आज छात्र-छात्राओं के अध्ययन के तनाव को कम करने के लिए उनके कोचिंग में आवासीय क्षेत्रों के निकट मनोरंजन, खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों की सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है। बच्चों को मोटिवेट किया जाना चाहिए। उनमें सकारात्मक सोच का निर्माण किया जाना अति आवश्यक है ‌‌। उच्च न्यायालय भी इस विषय को(आत्महत्याओं के विषय को) बहुत गंभीरता से ले रहा है। माननीय कोर्ट द्वारा महाधिवक्ता, न्यायमित्र और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से इस संबंध में सुझाव प्रस्तुत करने को कहा है। माना जा रहा है कि इस कदम से कोचिंग विद्यार्थियों को मनोवैज्ञानिक परामर्श उपलब्ध कराने के लिए प्रणाली की स्थापना का रास्ता खुलेगा। निस्संदेह आज इसकी बहुत ज़रूरत है। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि आज के समय में हमारे देश ही नहीं, पूरी दुनिया में अकेलेपन, अवसाद और आत्‍महत्‍या के मामले बढ़ रहे हैं। विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या बहुत ही चिंताजनक है। विद्यार्थी किसी भी देश व समाज की नींव होते हैं। देश, समाज का भविष्य युवाओं पर ही टिका होता है। आत्महत्या किसी समस्या का हल भी नहीं है। आज आत्‍महत्‍या एक महामारी का रूप धरती जा रही है। लोग कई वजहों से आत्‍महत्‍या करते हैं, ऐसे में अगर उन्‍हें समय रहते पेशेवर सहायता मिल जाए, दोस्‍त-परिवार वाले उनकी मदद करें तो हम आत्‍महत्‍या के मामलों को कम कर सकते हैं। आज के समय में बच्चों का कोचिंग में एडमिशन करवा दिया जाता है, उस पर लाखों रुपए का खर्चा हो जाता है। फिर पढ़ाई के भार, कड़ी प्रतिस्पर्धा और पिछड़ने के डर के कारण उसे घबराहट, बेचैनी, तनाव और अवसाद घेर लेते हैं। वह अपने भविष्य को लेकर चिंतित होने लग जाता है। उसे अपनी योग्यता पर संदेह होने लगता है उसे बार बार महसूस होता है कि उसने ऐसा विकल्प चुन लिया, जिसके लिए शायद वह नहीं बना है। वह स्वयं को कमजोर समझने लगता है और उसे लगने लगता है कि वह कभी सक्सेस नहीं हो सकता है। वास्तव में बच्चों के लिए यह समय बड़ा नाजुक होता है। अगर इस दौरान माता पिता, अभिभावक, शिक्षक या परिवार का कोई भी व्यक्ति, रिश्तेदार या कोई भी व्यक्ति उसका हौसला बढ़ा दे, उसमें सकारात्मक सोच का निर्माण कर दे, उसकी चिंताओं को, परेशानियों को दूर कर दे और उसकी शक्तियों को जगा दे, उसे आत्मविश्वास से पूर्णतया लबरेज कर दे,  तो यह उसके लिए एक प्रकार से संजीवनी बूटी का काम कर सकता है। हमें बच्चों को यह बताने की जरूरत है कि हमें ईश्वर ने यह जीवन जीने के लिए दिया है न कि ऐसे कदम उठाने के लिए। संघर्ष ही जीवन है और जीवन में हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जीवन कभी भी फूलों की सेज नहीं है। जीवन में फूल हैं तो कांटे भी हैं। आजकल अभिभावक, माता पिता का बच्चों पर बहुत ज्यादा दबाव होता है और बच्चे आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। यह बहुत ही संवेदनशील और गंभीर है। वास्तव में, पेरेंट्स को यह चाहिए कि वे अपने बच्चों को अपना जीवन जीने दें,हां कुछ गलत हो रहा है तो बच्चे का मार्गदर्शन करें। बच्चों पर दबाव कभी भी न डालें। अभिभावकों, माता पिता की सही सलाह बच्चों का जीवन बदल सकती है। वर्तमान में ऐसा दौर आ गया है, जब बच्चों पर अभिभावकों, माता पिता का बहुत दबाव होता है। पेरेंट्स सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ाई और सरकारी नौकरी के लिए अपने बच्चों पर दबाव बनाते हैं जो कि ठीक नहीं है। दरअसल हम अभिभावकों की यह बहुत बड़ी कमी है कि हम अपने बच्चों को ठीक ढंग से गाइड नहीं कर पाते हैं। आज बच्चों को सकारात्मक माहौल दिया जाना बहुत जरूरी और आवश्यक हो गया है।नकारात्मक विचारों से दूरी बहुत ही जरूरी है। आगे निकलने की होड़ आज बहुत ही घातक सिद्ध हो रही है। इस पर हमें ध्यान देना चाहिए। बहुत बार देखा गया है कि बच्चे का इंटरेस्ट किसी अन्य फील्ड में होता है और हमारा इंटरेस्ट किसी और फील्ड में। अक्सर मां बाप,अभिभावक बच्चों से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं रखते हैं और जीवन में जो लक्ष्य खुद अभिभावक खुद के लिए रखते आए हैं, वही लक्ष्य वे अपने बच्चों से पूर्ण करने की अपेक्षाएं रखते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी बच्चे का इंटरेस्ट आर्ट्स में है और अभिभावक चाहते हैं कि उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बने। हमें हमारे सपने उन पर आखिरकार क्यों लादने चाहिए, यह सवाल यक्ष है। बच्चों को अपनी पसंद के सब्जेक्ट, पसंद का फील्ड चूज करने के अवसर क्या हम अभिभावकों को नहीं देने चाहिए ? आज पेरेंट्स को यह चाहिए कि एक एक्जाम क्लियर नहीं कर पाया है अथवा नहीं कर पा रहा है तो उसे दूसरा आप्सन दिया जाना चाहिए। बच्चा जिस भी फील्ड में जाना चाहता है, उसे क्या उस फील्ड में नहीं जाना चाहिए। तो इसका सीधा सा उत्तर यह है कि बच्चे का जिस भी फील्ड में इंटरेस्ट है, उस पर हम अभिभावकों का कतई दबाव नहीं होना चाहिए। हमें यह चाहिए कि हम अपने बच्चों को सही रास्ता चुनने में उसकी मदद करें, उसे मोटिवेट करें। वास्तव में, परीक्षा में असफलता या फेल होने से निराश होकर आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाना चाहिए। हमें चाहिए कि हम बच्चों को लगातार मोटिवेट करें,सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें। बच्चों को संघर्ष के बारे में बतायें। आदर्श लोगों की जीवनियों को पढ़ाकर, उन्हें आदर्श लोगों के बारे में बताकर पाजीटिविटी बनायें। मेडिटेशन तनाव, डिप्रेशन में बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है। जब बच्चा डिप्रेशन में हो तो उसे प्रकृति और पेड़ पौधों से प्यार करना सिखाएं। एक्सरसाइज करने से शरीर में हैप्पी हार्मोन का निर्माण होता है। म्यूजिक सुनना हमारे तनाव और अवसाद को काफी कम कर सकता है। हम बच्चों से बात करें। उनकी सहायता करें। हम अपने बच्चों में हमेशा आत्मविश्वास जगाएं। उन्हें बात बात पर डांटे नहीं। बात बात पर उनकी कमियां न निकालें। उन्हें ताने नहीं मारें। उनसे अधिकाधिक बात करें, समस्या को जानें,समझें। नकारात्मक लोगों से बच्चों की दूरी बनाए। बच्चों को उनके दोस्तों से जोड़ें। बच्चे को व्यस्त रहना सिखाएं, क्यों कि खाली दिमाग वैसे भी शैतान का घर होता है। हम अपने बच्चों को यह बताएं कि सिर्फ हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए। दूसरों से मुकाबला करना और उनसे आगे निकलने की होड़ गलत नहीं है, लेकिन इस होड़ में अगर हमें थोड़ी नाकामी भी मिले तो हमें निराश और हताश नहीं होना चाहिए। हमें अपने बच्चों को यह बताना चाहिए कि जीवन में इच्छानुसार सफलता न मिलने से हमें निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें हमें यह बताना चाहिए कि हमें अपनी असफलता पर मंथन करना है और अपनी कमियों को दूर करने की कोशिश करनी है। जीवन में परेशानियां आनी स्वाभाविक है, यह प्रकृति का नियम है लेकिन परेशानियों से जूझकर बाहर निकला जा सकता है। सफलता और असफलता जीवन के दो पहलू हैं लेकिन असफलता कभी भी स्थाई नहीं होती। जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है। वास्तव में, हमें अपने बच्चों को संस्कारशील बनाने, उनमें नैतिकता, इंसानियत का निर्माण करने का पाठ पढ़ाने, आत्मविश्वास एवं हौंसला बढ़ाने के लिए हमेशा प्रयास करने चाहिए। हम अपने बच्चों को बतायें कि हमें जीवन में अच्छाइयों को ढ़ूढना है और बुराइयों से हमेशा दूर रहना है। हमें सदैव अच्छा सोचना है, हम बच्चों को इसके बारे में बतायें। अच्छी सोच हमारे अंदर सकारात्मकता का निर्माण करती है और जब हम सकारात्मक होते हैं तो सब कुछ अच्छा होता है। अगर बच्चे को यह बात समझ में आ गई कि मुश्किल समय तो हर किसी के जीवन में आता है, परीक्षाओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों के जीवन में भी, लेकिन उससे हिम्मत हारने के बजाय अपनी शक्तियों को पहचानते हुए उस पर विजय पानी है, तो वह उससे उबर जाएगा। फिर उसका पढ़ाई में भी मन लगेगा और अच्छा प्रदर्शन कर सफल होने की संभावना ज्यादा होगी। वह भविष्य में अन्य विद्यार्थियों को भी प्रोत्साहित कर सकेगा। बस जरूरत इस बात की है कि हम बच्चों को हमेशा हिम्मत और हौसला दें। उनकी समस्याएं ध्यान से सुनें और उचित समाधान करें। वास्तव में, हमें बच्चों को यह बताने की जरूरत है कि अधिक सकारात्मक सोचने की शुरुआत करके, वे खुद पर विश्वास करना सीख सकते हैं और अपने व्यक्तिगत भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं। हमें बच्चों को यह बताना है कि वे बेस्ट हैं,उनसे अच्छा कोई नहीं है, हर दिन उनका दिन है, वे अपना भाग्य खुद चुन सकते हैं, वे हर काम को मेहनत के बल पर कर सकते हैं, उनकी जीत निश्चित है, उनके लिए कोई भी काम कोई भी टास्क मुश्किल नहीं है, वे आत्मविश्वास से लबरेज हैं। हमें उन्हें यह बताने की जरूरत है कि वे हर हाल और परिस्थितियों में विजेता हैं और ईश्वर हमेशा उनके साथ है। यदि हम ऐसी सकारात्मकता उनमें भर पाए तो कोई दोराय नहीं कि हम अपने बच्चों की सफलता का रास्ता न बना सकें। हमारी गाइडेंस से बहुत कुछ संभव हो सकता है।

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