वो अढाई साल और भोपाल का गौरव दिवस

0
46

मनोज कुमार
15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश आजाद हवा में सांस ले रहा था तब भोपाल की धडक़न थरथरा रही थी. भोपाल के वाशिंदों को एक-दो दिन नहीं, पूरे अढाई साल आजाद हवा में सांस लेने के लिए इंतजार करना पड़ा था. आखिर एक लम्बे इंतजार के बाद हौले से आजादी ने भोपाल के दरवाजे पर दस्तक दी. ये अढाई साल भोपालियों के लिए संघर्ष के उन दिनों से ज्यादा भारी थे जो उन्होंने फिरंगियों से लिये थे. इस बार लड़ाई घर में थी. वह तो भला हो उस लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जिन्होंने उन नापाक मंसूबों को धराशायी कर दिया. वे ऐसा नहीं करते तो आज भोपाल, भोपाल नजर नहीं आता और गौरव दिवस तो छोडिय़े, मेरा भोपाल कहने लायक भी नहीं रहते . आज भोपाल का गौरव दिवस मनाते समय उस घाव का दर्द महसूस करना इसलिए जरूरी हो जाता है कि हमारी नयी पीढ़ी जान सके कि गौरव ऐसे ही नहीं पाया जाता है. 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से देश को भले ही आजादी मिली हो, लेकिन, भोपाल के लोगों ढाई साल तक गुलाम ही महसूस करते रहे। 15 अगस्त 1947 के बाद भी यहां नबावों का शासन था। इसके लिए ढाई साल तक संघर्ष हुआ। खास बात यह भी है कि तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की सख्ती के बाद 1 जून 1949 को भोपाल रियासत का विलय भारत में हो गया।
15 अगस्त, 1947 को तब भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्लाह थे। अंग्रेजों के खास नवाब हमीदुल्लाह भारत में विलय के पक्ष में नहीं थे क्योंकि वे भोपाल पर शासन करना चाहते थे। जब भारत को आजाद करने का फैसला किया गया उस समय यह निर्णय भी लिया गया कि पूरे देश में से राजकीय शासन हटा लिया जाएगा। मौजूदा तथ्य बताते हैं कि जब पाकिस्तान बनाने पर निर्णय हुआ और जिन्ना ने हिन्दुस्तान के सभी मुस्लिम शासकों को भी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव दिया। जिन्ना के करीबी होने के कारण भोपाल नवाब को पाकिस्तान में सेक्र्रेटरी जनरल का पद सौंपने की बात की गई। ऐसे में हमीदुल्लाह ने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल का शासन बनाकर रियासत संभालने को कहा, लेकिन इंकार कर दिया गया। अंतत: हमीदुल्लाह भोपाल में ही रहे और भोपाल को अपने अधीन बनाए रखने के लिए भारत सरकार के खिलाफ खड़े हो गए। देश आजाद हो चुका था, हर मोर्चों पर भारतीय ध्वज लहराया जाता था लेकिन, भोपाल में इसकी आजादी किसी को नहीं थी। दो साल तक ऐसी स्थिति रही। तब भोपाल के नवाब भारत सरकार के किसी कार्यक्रम में शिरकत नहीं करते थे और आजादी के जश्न में भी नहीं जाते थे।
सरदार पटेल जैसे कडक़ मिजाज वाले होम मिनिस्टर नहीं होते तब शायद संभव था कि भोपाल पाकिस्तान का हिस्सा बन चुका होता. इधर मार्च 1948 में भोपाल नवाब हमीदुल्लाह ने रियासत को स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी। मई 1948 में नवाब ने भोपाल सरकार का एक मंत्रिमंडल घोषित कर दिया। प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय बनाए गए थे। इसी दौर में भोपाल रियासत में विलीनीकरण के लिए विद्रोह शुरू हो चुका था। भोपाल में चल रहे बवाल पर आजाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सख्त रवैया अपना लिया। पटेल ने नवाब के पास संदेश भेजा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता है। भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा। 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त करते हुए सत्ता के सभी अधिकार अपने हाथ में ले लिए। इसके बाद भोपाल के अंदर ही विलीनीकरण के लिए विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। तीन माह तक जमकर आंदोलन हुआ।
होम मिनिस्ट पटेल के कड़े रूख के आगे नवाब हमीदुल्ला को अपनी जिद छोडक़र 30 अप्रैल 1949 को विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद भोपाल रियासत 1 जून 1949 को भारत का हिस्सा बन गई। केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त चीफ कमिश्नर एनबी बैनर्जी ने भोपाल का कार्यभार संभाला और नवाब को 11 लाख सालाना का प्रिवीपर्स तय कर सत्ता के सभी अधिकार उनसे ले लिए। उल्लेखनीय है कि भारत सन् 1947 को स्वाधीन हो गया था किन्तु मध्यप्रदेश के 2 जिले रायसेन एवं सीहोर भोपाल नवाब हमीदुल्ला के गुलाम थे। इसी गुलामी को समाप्त करने हेतु तत्कालीन रियासत भोपाल के नागरिकों ने जो आंदोलन चलाया था उसे इतिहास में भोपाल विलीनीकरण आंदोलन के नाम से जाना जाता है।
भोपाल विलीनीकरण आंदोलन भी इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. हमीदुल्लाह ने भारत सरकार के साथ बातचीत करते हुए भोपाल को अलग स्वतंत्र राज्य घोषित करने पैरवी की थी. असल में, भोपाल एक मुस्लिम नवाबी स्टेट था लेकिन वहां आबादी हिंदू बहुल थी. नवाब के अलग रहने की इच्छा बने रहने की खबर के बाद दिसंबर 1948 में भोपाल में जनआंदोलन शुरू हुआ, जब नवाब हज के लिए गए हुए थे. शंकरदयाल शर्मा, भाई रतन कुमार गुप्ता जैसे नेताओं के नेतृत्व में भोपाल के भारत में विलय के लिए ‘विलीनीकरण आंदोलन’ शुरू हुआ. आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा तो नवाबी व्यवस्था ने इसे कुचलने की कोशिश भी की. कुछ आंदोलनकारी शहीद हुए तो शर्मा जैसे कुछ नेताओं को कई महीनों के लिए जेल में रहना पड़ा. आंदोलन जनक्रांति का रूप धारण कर उग्र हो गया। नबाबी कार्यालयों पर तिरंगा फहराना एवं वंदे मातरम् गान पर गिरफ्तारी, लाठी चार्ज किया जाता था।
भोपाल विलीनीकरण आंदोलन 14 जनवरी 1949 को मकर संक्रांति मेले में क्षेत्र के नवयुवकों का उत्साह चरम पर था। नर्मदा किनारे बोरास घाट पर मेला भरा हुआ था कि बीच मेले में भोपाल नवाव के खिलाफ विलीनीकरण आंदोलन के नवयुवकों द्वारा झंडा वंदन एवं सभा का आयोजन किया गया। झंडा वंदन होने के बाद स्व. बैजनाथ गुप्ता बिजली बाबा ने झंडा वंदन गीत गाया। जाफर अली ने सभास्थल पहुंचकर झंडा उतारने एवं सभा बंद करने चेतावनी दी। इस चेतावनी से बेपरवाह 16 साल के छोटेलाल आगे आए और बोला गोली का क्या डर बताता है? तभी थानेदार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस गोली से छोटेलाल शहीद हो गए। सुल्तानगंज निवासी 25 वर्षीय वीर धनसिंह राजपूत ने थाम लिया, किन्तु अगली गोली धनसिंह के सीने में समा गई। तीसरे शहीद हुए 30 वर्षीय मंगल सिंह, 3 नवयुवकों के शहीद होने के बाबजूद झंडे नीचे नहीं गिरे। चौथे नवयुवक ग्राम भुआरा निवासी विशाल सिंह ने थाम लिया परन्तु गोली चलना जारी था। विशाल सिंह के सीने में 2 गोलियां लगी परन्तु उसने भी झंडा नहीं छोड़ा। पुलिस कू्ररता पर उतर आई संगीन उसके पेट में उमेठ दी गई किन्तु विशाल सिंह ने झंडा झुकने नहीं दिया. झंडे की शान को कायम रखते हुए विशाल नर्मदा के जल तक ले गए और गड़ा दिया और हर नर्मदे कह कर अंतिम सांस ली। भोपाल की आजादी में जिन नायकों ने अपना सर्वस्व स्वाहा कर दिया प्रो. अक्षय कुमार जैन, रामचरण राय, शंकरदयाल शर्मा, उद्धवदास मेहता, रतन दास गुप्ता, प्रेमनारायण श्रीवास्तव, बाल कृष्ण गुप्ता, ठाकुर लाल सिंह, शांति देवी, मोहिनी देवी, मथुरा बाबू आदि शामिल थे। दमन की कार्यवाही के बाद भी विलीनीकरण आंदोलन तेज होता गया। उस दौर में 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता सेनानियों ने जुमेराती उप डाकघर पर तिरंगा फहराया था।
भोपाल गौरव दिवस अपने होने को सार्थक कर रहा है. यह बताने का माकूल वक्त है कि आजादी के परवानों ने कैसी-कैसी आहूति दी है तब जाकर हम आजाद हैं. अंग्रेजों की कू्ररता के सामने सिर ना झुकाने वाले नायकों ने कू्रर और बेरहम नवाब को भी झुकने के लिए मजबूर कर दिया. ऐसा है मेरा भोपाल और हम हैं भोपाली.

Previous articleसुनहरे सपनों के बीच क्यों दम तोड़ रही हैं जिंदगियां ?
Next articleभारत महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर, हल्के में न आंकें चीन।
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,677 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress