सोने की घड़ी

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ओ सोने से बनी बेशकीमती साअत 

तू इतनी भी खास तो नही 

समय का तनिक भी एहसास तो नही 

     तेरे समय के पन्ने कुछ दस्तुरे ए ख़ालिस तो नही 

सिर्फ चढ़ी हैं जर की चरसा सा भ्रम 

क्या हर समय , हर वक्त बदलते हैं तेरे सुई के क्रम 

कांचन की तु सारंगी , मगर समय का आभास नहीं 

हर कतरा बना कटीले का , मगर चांदी का लास नही 

 ओ सोने की साअत बता दे अपने संसारे कांचन की कथा 

    तेरे उस रंग , रूप पे हैं संसार को व्यथा 

क्या तुझे भी लोग पहनते तुम्हारे चरसा की प्रपंच में 

क्या तु भी बनी हैं आयस के समान रूपा से 

नही इतनी बिसात अपनी के करे अलंकृत 

मुख्तारे रुखसर में

हैं बड़ी दिलचस्प तेरी उस जर्रे के कहानी 

मायानगरी या चांदी नही तेरे अफसानी 

तेरी हश्रे समय , तेरी कांचन संसारी तुझे ही मुबारक 

गलसुफ्रत मैं ठहरा 

सुनता बनकर ताइर ए-खुश अल्हान चातक

हैं ये वक्त नामा तेरे कांचन अलीले का 

मैं खुश अपने सिल्वरे साअत नीले का 

ओ जर की महबूबा सुन ले अपने गुमान को 

इतना भी क्यों हैं गुमान तुझे अपने चरसे के इतमान पर 

माना तु कीमती , बेशकीमती 

पर मुझसे अधिक पाख तो नही 

इतनी भी तु खास तो नही 

समय का तनिक भी एहसास तो नहीं 

  ओ सोने की महबूबा 

बता दे अपने संसारे अजूबा 

क्या वहां भी हैं समय का खेल 

इहलोक जैसा अनमेल 

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