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हिन्दू राष्ट्रवादी मोदी माफी क्यूँ मांगे ?

modi newअनिल गुप्ता

समाचार एजेंसी रायटर को दिए साक्षात्कार में नरेन्द्र मोदी जी से प्रश्न पूछा गया था की क्या स्वयं को हिन्दू राष्ट्रवादी मानते हैं?उन्होंने जवाब दिया ”मैं राष्ट्रवादी हूँ.और जन्म से एक हिन्दू हूँ.अतः आप मुझे हिन्दू राष्ट्र वादी कह सकते हैं”.इस बयान ने धर्मनिरपेक्षतावादियों के पेट में इतना दर्द किया की कई दिन बीतने के बाद भी अभी तक ठीक नहीं हो पाया है.कोई कह रहा है कि उन्होंने संविधान का अपमान कर दिया है.क्योंकि संविधान में ’सेकुलर’ शब्द लिखा है.कोई कह रहा है कि उन्होंने देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का अभियान छेड़ दिया है.और भी न जाने कितनी कितनी बातें कही जा रही हैं.
भारत का संविधान जब बनाया गया था तो उस समय देश की संविधान सभा कोई संविधान निर्माण के लिए निर्वाचित संस्था नहीं थी.बल्कि ये उस समय राज्यों में मौजूद प्रांतीय असेम्बलियों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुने गए लोगों को लेकर गठित की गयी थी.ये प्रांतीय असेम्ब्लियाँ भी सभी लोगों के व्यस्क मताधिकार पर आधारित नहीं थीं.बल्कि १९३५ के अंग्रेजों द्वरा बनाये गए गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया एक्ट के अधीन सीमित चुनाव के आधार पर गठित की गयी थीं.संविधान सभा में केवल मुसलमानों और सिखों को अल्पसंख्यकों के रूप में शामिल किया गया था.तथा अधिकांश प्रान्तों में केवल कांग्रेसी सरकारें ही काम कर रही थीं.अतः कांग्रेस विरोधी विचार रखने वालों को संविधान सभा में कोई स्थान नहीं दिया गया था.अनेक लोगों ने इस सभा द्वारा बनाये गए संविधान को पैच वर्क संविधान बताया था क्योंकि इसमें अलग अलग भाग अलग अलग देशों से लिए गए थे.न तो इस संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों पर जनता कि राय ली गयी थी और न ही संविधान को स्वीकार करने से पूर्व ही कोई जनमत संग्रह कराया गया था.ये संविधान भावी भारत कि आकांक्षाओं को पूरा करने में पूरी तरह विफल रहा है इसका सबसे बड़ा उदाहरण है इसके अब तक हो चुके ९८ संशोधन.
संविधान के मूल प्रारूप में ’सेकुलर’ शब्द का कोई उल्लेख नहीं था.लेकिन श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा १९७५-७७ के दौरान आतंरिक आपातस्थिति लगा कर देश के सब विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया था और उस दौरान एक बंधक संसद से संविधान संशोधन पारित कराकर संविधान की प्रस्तावना में ’सेकुलर,सोसियलिस्ट’ शब्द जोड़ दिए गए थे.१९७७ में सत्ता में आने वाली जनता पार्टी द्वारा इस संशोधन को समाप्त नहीं किया गया.लेकिन देश के न तो संविधान में और न ही किसी अन्य कानून में ’सेकुलर’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है.आज दिग्विजय सिंह जी श्री मोदी से ’सेकुलर’ शब्द कि परिभाषा पूछ रहे हैं.पहले खुद तो बतादो कि सेकुलर कि क्या परिभाषा है.
अब तक का व्यवहार यही दिखाता है कि हर उस चीज का विरोध जिससे इस देश की प्राचीन संस्कृति( जो निर्विवाद रूप से हिन्दू संस्कृति थी) की झलक मिलती हो.तथा केवल मुस्लिम परस्ती को ही सेकुलरिज्म के रूप में पेश किया जाता रहा है.चाहे एक योगासन सूर्यनमस्कार का मामला हो या कोई और.हर बात का विरोध.
ऐसे में ये कहना सही ही है की अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में भाजपा से इतर दल विशेष कर कांग्रेस ही हैं.जो हिन्दुओं को जाती बिरादरी के आधार पर बाँटने का कार्य करते हैं और मुसलमानों और ईसाईयों के थोक वोटों के लिए उनकी हर जायज नाजायज मांग मानते हैं.
जो लोग मोदीजी से उनके बयान के लिए माफ़ी की मांग करते हैं मैं उनसे पूछना चाहता हूँ की उन्होंने देश के विभाजन के लिए क्या कभी कोई माफ़ी मांगी?जबकि उनके सबसे बड़े नेता ने कहा था की देश का विभाजन मेरी लाश पर होगा.लेकिन जब जवाहर लाल नेहरु ने दो जून १९४७ की दोपहर में ११ बजे से २ बजे तक तीन घंटे बंद कमरे में तत्कालीन गवर्नर जनरल माऊंटबेटन की पत्नी एडविना माऊंटबेटन के साथ ”वार्ता” करके देश के विभाजन की स्वीकृति दे दी तो सर्वोच्च नेता ने कहा दिया की मैं बूढा हो गया हूँ.मुझमे अब जवाहर के फैसले के विरुद्ध लड़ने की ताकत नहीं बची है.इतिहास गवाह है की इस देशघातक फैसले ने बीस लाख लोगों को मौत के मुंह में पहुंचा दिया.और पांच करोड़ लोगों को अपना घरबार संपत्ति छोड़कर शरणार्थी बनना पड़ा.क्या इस अक्षम्य अपराध के लिए क्या कभी किसी कांग्रेसी नेता ने आज तक कोई क्षमा मांगी है या खेद प्रगट किया है.
१९४९ में साम्यवादी चीन के उदय के बाद से ही उसके विस्तारवादी मंसूबों को भांप कर रा.स्व.स. के तत्कालीन प्रमुख गुरूजी (मा.स.गोलवलकर) तथा जनसंघ के नेताओं ने चीन से होने वाले खतरों के प्रति आगाह किया था.यहाँ तक की तत्कालीन देश के गृह मंत्री सरदार पटेल ने भी अपने अंतिम पत्र में विस्तार से चीन से खतरे का उल्लेख करते हुए प्रधान मंत्री नेहरु से इस विषय पर वार्ता के लिए अनुरोध किया था.लेकिन सरदार पटेल के प्रति अपने तिरस्कार के भाव को दर्शाते हुए नेहरूजी ने इस महत्त्व पूर्ण विषय पर भी उन्हें वार्ता का समय नहीं दिया.जब चीन ने आक्सायिचिन में घुसपेठ प्रारंभ कर दी और मामला संसद में उठा तो नेहरु जी ने मामले की गंभीरता को समाप्त करते हुए बयान दे दिया की ”वहां घास का एक तिनका भी पैदा नहीं होता है”.ये तो उन्ही के केबिनेट मंत्री महावीर त्यागी जी ने अपनी गंजी खोपड़ी पर हाथ फेरते हुए कहा की पैदा तो इस पर भी कुछ नहीं होता.परिणाम सबके सामने है.आज भी हमारी चालीस हजार वर्ग मील भूमि चीन के कब्जे में है.और संसद का इसे मुक्त करने का संकल्प केवल कागजी घोषणा साबित हो रहा है.जग नहीं सुनता कभी दुर्बल जनों का शांति प्रवचन, सर झुकाता है उसे जो कर सकें रिपु मान मर्दन.
पाकिस्तान के सन्दर्भ में भी शुरू से ही दब्बू नीति रही है.१९४७ में जब कबायलियों के वेश में पाकिस्तान ने कश्मीर पर धावा बोला तो सबने कहा की मामले को यु.एन ओ.में न ले जाओ. लेकिन बिना पूरा कश्मीर खली कराये युद्ध विराम कर दिया और फिर मामले को यु.एन ओ. में लेजाकर सदा सदा के लिए विवादित बना दिया.महाराजा हरिसिंह ने विलाय्पत्र पर हस्ताक्षर करते समय कोई शर्त नहीं रखी थी लेकिन नेहरूजी ने उसमे जबरदस्ती शेख अब्दुल्लाह को सत्ता सोंपने की शर्त घुसेड दी.१९७२ में शिमला समझौते से पूर्व भी इंदिरा जी को अटल जी ने कहा था की समझौते से पूर्व कश्मीर के पाकिस्तान के कब्जे वाले भूभाग को खाली कराने का समझौता अवश्य करलें.लेकिन इंदिरा जी ने हाथ में आये एक लाख पाकिस्तानी फौजियों को छोड़ दिया.और कश्मीर पर कोई समाधान नहीं हुआ.आज भी कश्मीर एक समस्या बना हुआ है.
आसाम प्रारंभ से ही पाकिस्तान की नज़रों में एक टारगेट बना हुआ था.प्रारंभ से ही वहां तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से घुसपेठ हो रही थी.जब इस सम्बन्ध में गुप्तचर एजेंसियों ने सूचना दी तो उसके लिए जिम्मेदार तीन नेताओं फखरुद्दीन अली अहमद,मोयिनुल हक चौधरी और बिमल प्रसाद चालिहा को सजा देने की जगह केंद्र में प्रतिष्ठित कर दिया गया.आज आसाम में जो असामान्य स्थिति बनी हुई है वह केवल और केवल नेहरूवादी नीतियों का परिणाम है.
पंजाब में जो हालत अस्सी के दशक में पैदा हुए उनके लिए भी उस समय का कांग्रेसी नेतृत्व ही जिम्मेदार था जिसने जनता पार्टी शासन के दौरान पंजाब में शासक अकाली-जनसंघ सर्कार को अस्थिर करने के लिए एक भोले भले धार्मिक नेता भिंडरावाले को बलि का बकरा बनाया.
गिनने के लिए तो अनगिनत मसले हैं.लेकिन क्या किसी कांग्रेसी नेता ने आज तक इनमे एक भी अपराध के लिए कभी क्षमा मांगी है क्या?ऐसे में श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस देश की गौरवशाली थाती की याद दिलाकर हिंदुत्व का प्रचार कोई अपराध नहीं है.देश की देशभक्त जनता इसे समझ चुकी है की केवल चिकनी चुपड़ी बातों से ही धर्मनिरपेक्षता नहीं आ सकती है.ये केवल हिन्दुओं का ही दायित्व नहीं है की वो धर्मनिरपेक्षता का जाप करते रहे.औरों के लिए भी जरूरी है की वो इस देश की सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करें.वन्दे मातरम पर विरोध, सरस्वती पूजा पर विरोध,सूर्य नमस्कार पर विरोध कौन सी मानसिकता है?,आखिर इस देश के मुसलमानों की रगों में भी हिन्दू पूर्वजों का ही रक्त है ये अब डी एन ए परिक्षण से प्रमाणित हो चुका है.