तथाकथित अपवित्र राजनीतिज्ञों के आगे अब क्यों गिड़गिड़ा रही है अन्ना एंड कंपनी…

श्रीराम तिवारी

भारत के मध्यम वित्त वर्ग में इन दिनों एक बृहद बैचेनी स्पष्ट परिलक्षित हो रही है.वर्तमान पूंजीवादी प्रजातंत्र ने देश के तीनों राजनैतिक समूहों {यूपीए,एनडीए और तीसरा मोर्चा} को उसी तरह हेय दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है;जिस तरह अतीत में उसने बर्बर सामंती या विदेशी आक्रान्ताओं के शाशन तंत्र को देखा था. राजनैतिक नेताओं को अविश्वाश से देखने के लिए राजनैतिक लोग जितने गुनाहगार हैं,उसे ज्यादा देश की वह जनता भी जिम्मेदार है जो तमाम शोषण-दमन और भय-भूंख-भृष्टाचार से पीड़ित होने के वावजूद उन्हीं नेताओं और दलों को ६५ साल से चुनती आ रही है जो उसके इस मौजूदा दयनीय हश्र के लिए परोक्ष रूप से जिम्मेदार है. आइन्दा जब भी कोई चुनाव होंगे तब पुनः वे ही दल और नेता फिर से जीत कर संसद में पहुंचेंगे जिन पर यह अराज्नैतिकता की आकांक्षी जनता,बाबा-लोग, ,अन्ना एंड कम्पनी और मीडिया के लोंग नाना प्रकार से सच्चे -झूंठे आरोप लगाने में एक दुसरे से बढ़-चढ़कर हैं. अपनी बैचेनी को अभिव्यक्ति देकर ये समझते है की इस तरह कोई गैरराजनैतिक अवतारी पुरुष,कोई बाबा कोई योगी ,कोई गांधीवादी या कोई चमत्कार उनके दुःख दारिद्र दूर कर देगा?जहां तक निम्न आय वर्ग-,रोजनदारी मजदूरों,भूमिहीन-किसानों,आदिवासियों,दलितों,कामगार-महिलाओं,निजी क्षेत्र में कार्यरत कम वेतन और ज्यादा मेहनत करने वा� ��े मजबूर नौजवानों की आम और सनातन चिंता का सवाल है तो उसको वाणी देने के लिए गोस्वामी तुलसीदास बाबा ने शानदार शब्द रचना की है..

कोऊ नृप होय हमें का हानी ! चेरि छोड़ होहिं का रानी !!

इन दिनों दो तरह के लोग अपने-अपने ढंग और अपने-अपने मिजाज़ के अनुरूप भृष्टाचार,कालेधन ,महंगाई,और कुशाशन के खिलाफ लड़ रहे हैं. एक तरफ उन लोगों की विशाल कौरवी सेना है जो या तो राज्यों की सत्ता में है या केंद्र में काबिज़ है.ये लोग वर्तमान व्यवस्था पर घडियाली आंसू बहाकर अपने पापों को छिपाने की सफल कोशिश कर रहे हैं.धनबल-बाहुबल-राजबल और मीडिया का इन बदमाशों को भरपूर समर्थन प्राप्त है.रजनीती की पतित पावनी गंगा को मैला करने में इसी वर्ग का हाथ है.इस वर्ग को रोटी-कपडा -मकान की फ़िक्र नहीं बस उनकी चिंता है कि लूट की वर्तमान भृष्ट व्यवस्था कहीं नंगी न हो जाए अतेव उसे आड़ में छिपाने के लिए कभी -कभी इन तथाकथित गैरराजनैतिक पाखंडियों, शिखंडियों का उपयोग करते रहते हैं. जब अन्ना एंड कम्पनी ने जंतर-मंतर पर ६-७ अप्रैल कोअनशन का स्वांग रचाया था तो सुश्री उमा भारती और अन्य उन राजनीतिज्ञों को मंच के पास नहीं फटकने दिया गया था;जो अन्ना के समर्थन {भले ही अपने मतलब के लिए }में वहाँ आये थे.अब -जबकि अन्ना एंड कम्पनी को मालूम पड़ा की देश की संसद में पारित किये बिना उनकी सारी मशक्कत बेमतलब है, चाहे जन-लोकपाल बिल हो या कोई भी क़ानून के समापन या संधारण का काम हो उसका रास्ता रायसीना हिल से जाता है. ये लोग कभी-कभी वर्गीय अंतर्विरोध के चलते आपस में भी टकरा जाते हैं.लोकपा� � के दायरे में कौन-कौन होगा?कौन नहीं होगा?इन तमाम नकली सवालों में देश की आवाम को उलझाए रखकर अपने वर्गीय हितों को बड़ी चालाकी से सुरक्षित रखा जाता है.

जब तक अन्ना हजारे और बाबा रामदेव जैसे स्वतः स्फूर्त जन-नायक खुले आम राजनीति में नहीं कूंदते तब तक वे वर्गीय अंतर्विरोध में महज फूटवाल की तरह कभी कांग्रेस,कभी भाजपा,कभी माकपा,कभी सपा जैसे राष्ट्रीय दलों और कभी क्षेत्रीय दलों की चौखट पर समर्थन की भीख मांगते नज़र आयेंगे.राजनीती को कल तक बुरा बताने वाले आज राजनीतिज्ञों के सामने सिर्फ इसलिए नहीं गिडगिडा रहे की लोकपाल पास हो जाए,बलकि इसलिए शरणम गच्छामि हो रहे हैं कि राजसत्ता की वर्तमान भृष्ट और शैतानी व्यवस्था के अजगर ने इन स्वतः स्फूर्त जनांदोलनो में शामिल कतिपय बाबाओं,वकीलों,सामाजिक कार्यकर्ताओं की वैयक्तिक कमजोरियों का कच्चा-चिठ्ठा तैयार कर रखा है.यदि ये आन्दोलन वर्तमान व्यवस्था से समझौता नहीं करेंगे तो धूमकेतु की तरह दोपहर में अस्त हो जायेंगे. उनके प्रणेता भी -जयप्रकाश नारायण,लोहिया,दीनदयाल औ र वी टी रणदिवे की तरह इतिहास में असफल विभूति के रूप में याद किये जायेंगे.जनता भी इन्हें भूलकर रोटी-कपडा-मकान की सनातन आकांक्षा लेकर फिर से नागनाथ्जी या सांपनाथ जी को वोट देकर उसी भृष्ट, अपवित्र ,राजनैतिक सिस्टम को दुलारने लगती है जिसे अन्ना या रामदेव के सामने बड़े जोश -खरोश से गरियाती हुई खीसें निपोरती रहती है.

भृष्टाचार मुक्त देश की कामना हर देश भक्त और सभ्य समाज को है मैं भी उसका अभिलाषी हूँ किन्तु कालाधन देश में वापिस आये, यह तो वैसे ही है कि मेरे घर में गंदगी आये…

2 COMMENTS

  1. तिवारी जी आखिर आप किस धातु के बने हैं. या तो आप समझते नहीं या समझ कर भी न समझने का ढोंग करते हैं.यह सही है की जो लोग इस आन्दोलन को चला रहे है वे नहीं चाहते की यह आन्दोलन जनता का आन्दोलन न होकर किसी वर्ग विशेष का आन्दोलन बन जाये,पर यह भी सत्य है की इस आन्दोलन की सफलता बिना उचित क़ानून के सम्भव ही नहीं है,अत: उनके कदमों को वहां तक तो जाना ही होगा,जहां इसे कानूनी रूप दिए जाने का प्रवधान है.
    ऐसे एक बात जो अब तक मैंने नहीं कही थी वह आज कहता हूँ की भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़े कानूनों से जिनको सीधा घाटा होगा उसमें सब नेता शामिल हैं,चाहें वे किसी राजनैतिक दल के नेता हों या किसी संगठन के. खास कर मजदूर संगठनों के,क्योंकि मेरा निजी अनुभव है की ईमानदार प्रवंधन में सबसे पहले यूनियन लीडर का बेड़ा गर्क होता है.
    अगर आप सोचते हैं की वामपंथ इन सबका हल है तो आपका यह सोचना भी समय की कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है,क्योंकि अगर ऐसा होता तो रूस से लेकर बंगाल तक वामपंथ का यह हाल नहीं होता. कुछ हद तक चीन अपवाद है क्योंकि वह समय रहते सम्भल गया.

  2. किसी भी सामान्य समझबूझ वाले व्यक्ति को यह मालूम होना चाहिए कि संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में कोई भी कानून केवल संसद में लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा ही बनाया जा सकता है. ऐसी स्थिति में अन्ना को यह पता होना चाहिए था कि लोकपाल कानून केवल संसद द्वारा ही बनाया जा सकता है.और संसद में कानून केवल सोनिया गाँधी को चिट्ठी लिखने से नहीं बन सकते उसके लिए सांसदों का समर्थन जुटाना जरूरी था.लेकिन इस सच्चाई के बावजूद अन्ना व उनको घेरे हुई मंडली ने अपने अलावा बाकी सभी को दुत्कारने का कार्य किया. उमा भारती के अलावा जब आर एस एस के प्रतिनिधि श्री राम माधव जी संघ कि और से समर्थन व्यक्त करने धरना स्थल पर गए तो उन्हें हूट करके वापस जाने को मजबूर कर दिया. अब इसके विपरीत सत्तर के दशक में जय प्रकाश नारायण जी का व्यवहार देखें. लोकनायक जे पी पूरे समय संघ व जनसंघ की आलोचना करते रहे.लेकिन जब उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपना आन्दोलन छेड़ा तो सबसे आगे उन्हें समर्थन व सहयोग देने संघ व जनसंघ के लोग ही आगे आये. अटल जी ने ही कहा की अब समग्र क्रांति से ही काम चलेगा.नानाजी देशमुख ने न केवल उनके आन्दोलन में हिस्सा लिया बल्कि इंदिरा जी के निर्देश पर बिहार की कांग्रेसी सरकार ने जे पी के ऊपर घटक लाठी चार्ज किया जिसे सजग नानाजी ने अपने कंधे पर लिया और जे पी को सुरक्षित बचा लिया.विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं ने भी पूरा सहयोग दिया. अंततः इमरजेंसी का दमन चक्र चलाने के बावजूद लोगों ने इंदिरा जी को सत्ता से बेदखल कर दिया. हालाँकि बाद में कुछ लोगों की अति महत्वाकांक्षा और कुछ अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रों के चलते जनता का ये प्रयोग असफल हो गया.लेकिन इससे राजनीतिक ढांचे की अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता.दुर्भाग्य वश अन्ना को ऐसे लोगों ने घेर लिया है जिनकी आस्था लोकतान्त्रिक पद्धति में नहीं और जो लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के गतिजता (dynamics ) को या तो समझते नहीं हैं या उनकी इसमें आस्था नहीं है.इस प्रकार के व्यक्ति केन्द्रित अभियान केवल सीमित असर ही छोड़ पाते हैं. यद्यपि सीमित लाभ के कारन भी उनकी जन जागरण की शक्ति को कम करके नहीं आँका जा सकता. किसी भी आन्दोलन की सफलता के लिए जनसहयोग जुटाना आवश्यक है और जो लड़ाई लम्बी चलने की सम्भावना हो उसके लिए जन संगठन होना भी आवश्यक है.बिना जनसंगठन लम्बी अवधि का आन्दोलन नहीं चल सकता. बोफोर्स के खिलाफ लड़ाई के लिए भी केवल वी पी सिंह नहीं चल पाए और रामधन की अध्यक्षता में जनमोर्चा बनाना पड़ा था तभी राजीव गाँधी को सत्ताच्युत किया जा सका. आज की तारीख में सबसे ज्यादा काला धन देश की पहली राजनीतिक फॅमिली के पास है. लोगों के अनुसार इमरजेंसी के दौरान जयपुर राजघराने के जयगढ़ के किले से ही कम से कम चालीस ट्रक वेशकीमती खजाना इंदिरा गाँधी ने अपने पास मंगवाकर उसे सुरक्षित ठिकानों पर रख दिया था और आज की तारीख में उस सारे खजाने पर उस परिवार की राजनीतिक विरासत का सुख भोग रही विदेशी महिला का कब्ज़ा है. लेकिन बेचारे अन्नाजी आज भी उस विदेशी महिला पर जरूरत से कुछ ज्यादा ही भरोसा करते हैं. कभी उसे ख़त लिखता हैं तो कभी उसके दरबार में लोकपाल के लिए याचना करते हैं. अन्नाजी, देश आपको जे पी के स्थान पर रखना चाहता है. अपनी शक्ति व समर्त्य को पहचानों और उन लोगों का साथ पकड़ो जो निस्वार्थ भाव से इस देश की,तथा यहाँ की विरासत की चिंता अहर्निश करते हैं और जिनके पास समाज में बदल के लिए एक मजबूत संगठन भी है. निर्णय अन्नाजी आप को लेना है की आप सबको सस्थ लेकर इतिहास बनाने का काम करना चाहेंगे या एक कोटरी के घेरे में रहकर अपने अन्द्लन से उपजी उर्जा को व्यर्थ बिखरने ( dissipate ) देना चाहेंगे?

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