
जब बात सार्वजनिक हित के लक्ष्यों की प्राप्ति की हो, तो हर मतभेद किनारे रख देने चाहिए। खास तौर पर शिक्षा के मंदिरों को अपनी तुच्छ राजनीति का अड्डा नहीं बनाना चाहिए l जब सभी युवा साथी इस सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो ऐसी कोई मंजिल नहीं, जो हम हासिल नहीं कर सकें। लेकिन देश का प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान आईआईएमसी फिर से कुछ वाहियात किस्म के धरने और प्रदर्शन को लेकर सुर्खियों में है। यहां अब कुछ लोग संदिग्ध आतंकी गतिविधियों से जुड़े संगठन से सांठगांठ के आरोप में जेल जा चुके काप्पन सिद्दीकी की पोस्टरों को लेकर धरना दे रहे हैं । विगत 3 फरवरी से चार छात्र यहां मेन गेट पर धरने पर हैं। छात्रों की मांग है कि इनकी लिखित शिकायत पर महीना भर बीतने के बावजूद आईआईएमसी प्रशासन कोई एक्शन नहीं ले रहा है। दूसरी ओर आईआईएमसी प्रशासन यह कहकर खामोश है कि मामला दो छात्र गुटों से जुड़ा है। दोनों ओर शिकायतें आई हैं। प्रो. गोविंद सिंह की अध्यक्षता में अनुशासन समिति जांच कर रही है, जांच रिपोर्ट आने पर ही कोई बात कही जा सकती है। दूसरी ओर चारों छात्र जो पिछले एक महीने में तीसरी बार धरने पर बैठे हैं, इस बार उनके धरने के पीछे की मुख्य मांग यही है कि जांच समिति जल्द से जल्द जांच समाप्त करे और रिपोर्ट पेश करे। मांग है कि हमें माओवादी कहने वाली दोषी ल़डकियों के खिलाफ कार्यवाही हो।
पिछले कुछ समय से आईआईएमसी को बार बार एक विशेष मानसिकता के तहत बदनाम किया जा रहा है। जहां दूर दराज से बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं उनको एक खास एजेंडे के तहत परेशान किया जा रहा है। कुछ लोग हिन्दी विभाग की कक्षाओं में बार-बार व्यवधान पैदा कर रहे हैं और किसी ना किसी बहाने धरने पर बैठ जा रहे हैं।
मनगढ़ंत और बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं। इससे छात्रों में मानसिक तनाव की स्थिति है। कुछ लोग किसी खास एजेंडे से प्रेरित होकर ही यहां यह सब कर रहे हैं।
मामले की गहराई से पड़ताल करने पर यह समझ आया कि धरने पर मौजूद चारों छात्रों का रोल खुद में ही बेहद संदिग्ध है और परिसर को अशांत करने की तैयारी का यह एक हिस्सा मात्र है, इसके पीछे सोची-समझी साजिश भी है। यह मामला इसलिए भी और संगीन है क्योंकि धरने को लीड कर रहा छात्र आशुतोष कुमार आईआईएमसी के डिजिटल पत्रकारिता विभाग में दाखिला लेने के बाद पूरे एक महीने दस दिन तक गायब रहा है।
आशुतोष कुमार के बारे में बताया जा रहा है कि इसने दो लाख रुपये का पचास प्रतिशत देकर डिजिटल जर्नलिज्म में दाखिला लिया और फिर बगैर सूचना के एक महीने दस दिन तक गायब रहा। सूत्र कहते हैं कि इस बीच वो अपने पूर्व संस्थान बीएचयू में आंदोलनात्मक गतिविधियों में शामिल रहा। बीएचयू के सूत्र भी बताते हैं कि परिसर में आशुतोष कुमार वामपंथी आईसा समेत अतिवादी छात्र गुटों के साथ रहकर अक्सर हिंसा, झगड़े और बदतमीजी में लिप्त पाया गया था। उसके ऊपर पहले से ही अराजकता फैलाने के मामले में कई केस दर्ज हैं। सूत्रों का कहना है कि पहले लेफ्ट के अतिवादी कुछ प्रोफेसर बीएचयू में अपने हितों के लिए उसका इस्तेमाल करते थे लेकिन बाद में इसके ‘वसूली-चरित्र’ को लेकर लेफ्ट के प्रोफेसरों ने भी इससे किनारा कर लिया। सूत्रों के मुताबिक, आईआईएमसी प्रशासन को इसकी कारगुजारियों की भनक लगी और तमाम दस्तावेज समय पर जमा न करने और बगैर सूचना के गायब रहने के मामले में उसे नोटिस भेजने की तैयारी थी कि अचानक ही वह हाजिर हो गया और रातों रात 30 विद्यार्थियों की तादाद वाले डिजिटल जर्नलिज्म से हटकर 68 विद्यार्थियों की तादाद वाले हिंदी पत्रकारिता विभाग में उसने ट्रांसफर ले लिया। हिंदी विभाग के कई छात्र सवाल उठाते हैं कि ऐसा कैसे हुआ कि डिजिटल कोर्स में दाखिला हो जाने के बाद उसे हिंदी विभाग में ट्रांसफर किया गया। एक छात्र का आरोप है कि उसने प्रमाणपत्रों में भी जालसाजी कर रखी है, उसकी उम्र के सर्टिफिकेट और जाति प्रमाणपत्र में फर्जीवाड़ा है।
खैर, इन बातों से इतर जब हमारे संवाददाताओं ने आईआईएमसी परिसर में मौजूद हंगामें की वजहों को टटोला तो जो बातें सामने आईं वो संस्थान के लिए बेहद चिंताजनक हैं। सूत्र बताते हैं कि आशुतोष कुमार कई तरह के नशे का शौकीन है। बीएचयू में धरना-प्रदर्शन और अराजकता फैलाने का प्रयोग इसने आईआईएमसी परिसर में भी करना शुरु किया, लेकिन चंद रोज में ही हिंदी पत्रकारिता विभाग के छात्रों के सामने इसकी नीयत बेपर्दा हो गई। हिंदी के छात्र बताते हैं कि वो 19 दिसंबर 2022 को पहली बार क्लास में आया। जबकि क्लासेस 9 नवंबर 2022 से ही शुरु हो गई थीं, उसे कैसे इतने दिनों बाद हिंदी पत्रकारिता की क्लास में शामिल होने की इजाजत दी गई, इस पर भी सवाल हैं।
हिंदी पत्रकारिता की क्लास में आते ही उसने अटेंडेंस को मुद्दा बनाया और इस काम में उसे साथ मिला एक अन्य छात्रा का जिसे कि पिछले सत्र में कम अटेंडेंस की वजह से एक्जाम में बैठने की इजाजत नहीं मिली। छात्र बताते हैं कि भावना नामक छात्रा 2021 बैच में आई थी। वो यूपीएससी एक्जाम में जुटी रहती थी। उसका एडमिशन कोचिंग संस्थान में भी था, इसलिए वो कई कई हफ्ते गायब रहती थी। बगैर क्लास किए अपने अटेंडेंस को लेकर वो तब के कोर्स डायरेक्टर प्रोफेसर आनन्द प्रधान और एकेडमिक समन्वयक साधिका कुमारी पर दबाव बनाती थी। कम अटेंडेंस की वजह से नियमों का हवाला देकर प्रो. आनन्द प्रधान ने उसे एक्जाम में बैठने की इजाजत देने से मना कर दिया। उसे 2022 की बैच में दोबारा दाखिला लेना पड़ा। मन मसोसकर उसे क्लास करनी पड़ रही है तो उसने अब क्लास से इतर के सवाल उठाने शुरु कर दिए।
इस मुद्दे पर हिंदी के दूसरे छात्रों का कहना है कि आशुतोष सहित जितने भी छात्र धरने पर बैठे हैं, वो हर क्लास डिस्टर्ब करते हैं । वो कोई चीज सुनने को ही राजी नहीं होते । हर बात की उनकी मनमानी ‘लेफ्टवादी’ व्याख्यान होता है। क्लास में बीफ और गोमांस का मुद्दा उठाना, आईआईएमसी के सिक्योरिटी एजेंसी पर बेतुका सवाल करना और स्वामी विवेकानंद, मालवीय जी, संत रैदास और ऋषि वाल्मीकि के बारे मे ऊल जुलूल सवाल करना और हर क्लास में एजेंडा थोपना इनका शगल है। इस ग्रुप की शिक्षा विरोधी दूषित सोच को भी ये दिखाता है।
छात्रों के मुताबिक, धरना देने वाले छात्रों के बर्ताव से सभी दुःखी हैं। ये लायब्रेरी में लंच मंगाना चाहते हैं, लाइब्रेरी की महिला स्टाफ़ से बदतमीजी कर चुके हैं। हिंदी की कई लड़कियां इनकी गुंडागर्दी से आहत हैं जिस पर प्रशासन को कई बार पूरी क्लास और ग्रुप ने लिखित शिकायत दी है, लेकिन प्रशासन मौन है। ज्यादातर छात्र मानते हैं कि आशुतोष, मुकेश, चेतना और भावना का आईआईएमसी के मुख्य द्वार पर धरना देना इस दूषित सोच को स्थापित करने का एक प्रयास मात्र है कि जो हम सोचते हैं केवल वही सत्य है। जो किसी भी विद्या के मंदिर के लिए सही नहीं हो सकता है ।
फिलहाल किस्सा ये है कि चारों ही छात्र आईआईएमसी के मुख्य द्वार पर धरने पर बैठे हैं । जाहिर तौर पर, जैसा मामला अब तक अनेक मीडिया पोर्टलों के हवाले से सामने आया है,मामला उससे कहीं इतर और गहरा है। हिंदी पत्रकारिता विभाग के ज्यादातर छात्र बहुत शांत, सरल और मेरिटोरियस हैं। वो नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की टॉप मेरिट की वजह से आईआईएमसी में फर्स्ट च्वॉइस से आए हैं। लेकिन कुछ छात्रों के हंगामें ने मानो सारा जायका ही बिगाड़ दिया है। छात्रों का दुःख ये भी है कि ज्यादातर वैकल्पिक मीडिया से जुड़े वेब पोर्टल सच लिखने की बजाए वो लिख रहे हैं जो आशुतोष का नैरेटिव है। जो कि प्रोपेगेंडा जर्नलिज्म का हिस्सा मात्र हैं। जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है सत्य कड़वा हो और हित न करता हो तो भी अनुकरणीय नहीं है । यह अक्षरशः सत्य प्रतीत हो रहा है आईआईएमसी में।