मनमोहन सिंह पर बनी फिल्म पर विवाद क्यों?

सुरेश हिन्दुस्थानी
हमारे देश में एक प्रचलित कहावत है ‘मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थूÓ। वर्तमान राजनीति में यह कहावत एक दम सटीक बैठ रही है। चाहे वह कोई भी राजनीतिक दल क्यों न हो, हर कोई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने मायने निकालता है। यह सच्चाई है कि सत्य हमेशा कड़वा होता है और जो सच को स्वीकार करने की हिम्मत दिखाता है, वह झूठ को भी स्वीकार कर उसमें सुधार लेता है। हमें स्मरण होगा कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश में कई प्रकार के अभियान चलाए गए। यहां तक कि देश के विरोध में उठे स्वरों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दिया गया। लेकिन इस सबके बाद भी ११ जनवरी को प्रदर्शित होने वाली एक फिल्म द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर के बारे में भी विरोध में स्वर उठने लगे हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि इस फिल्म में डॉ. मनमोहन सिंह कैसे प्रधानमंत्री बने, यह सब फिल्माया गया है। हालांकि इस सत्य को पूरा देश जानता है, लेकिन यह सत्य एक बार नहीं, बार-बार देश के सामने आए तो इसमें अपराध ही क्या है?
भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर समाज के सामने कुछ भी परोसने का सिलसिला आज भी जारी है। राजनीतिक पृष्ठभूमि पर बनी कुछ फिल्मों को राजनीतिक दलों द्वारा विरोध करने की सामान्य परिपाटी सी भी बनी हुई है। इंदिरा गांधी के राजनीतिक चरित्र को प्रदर्शित करने वाली फिल्म आंधी को भी कांगे्रस के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी विसंगति तो यह है कि हमारे देश में सांस्कृतिक ताने-बाने को समाप्त करने वाली वैचारिक अभिव्यक्तियों को बोलने की आजादी का नाम देकर भारत विरोधी व्यक्तियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से समर्थन दिया जाता रहा है। हम जानते ही हैं कि विवादास्पद चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन ने हिन्दू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीर बनाकर भारत की आस्था और श्रद्धा पर करारी चोट पहुंचाई थी। इसके विपरीत किसी विशेष राजनीतिक दल के मुखियाओं पर आधारित व्यक्तियों के चरित्र पर कोई फिल्म का निर्माण होता है तो उसे विरोध का सामना करना पड़ता है। सवाल यह है कि जब भारत की आस्था पर हमला किया जाता है, तो उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दिया जाता है, लेकिन जब उनकी स्वयं की चित्रावली को फिल्म के माध्यम से जनता के सामने लाया जाता है तो उस पर प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की जाती है।
कुछ समय पहले वाटर और पीके फिल्म का विरोध किया गया, लेकिन यह विरोध तर्कसंगत था। इस फिल्म में भारत की आस्था पर हमला किया गया। यह भावनात्मक विरोध था। इन फिल्मों में सच्चाई के नाम पर कुछ भी नहीं था। लेकिन द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर में पूरी सच्चाई है। फिर भी यह फिल्म विवादों के घेरे में आती जा रही है। फिल्म का नाम द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर है। इस फिल्म में दस वर्ष तक भारत के प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठने वाले डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में होने वाले घटनाक्रमों को सामने रखा गया है। वास्तव में किसी व्यक्तित्व पर फिल्म का निर्माण करना एक महानतम उपलब्धि ही कही जाएगी। फिर इस पर प्रतिबंधात्मक कार्यवाही क्यों की जा रही है। इस सामान्य से प्रश्न का उत्तर तलाश किया जाए तो यही कहना समीचीन होगा कि इसमें कांगे्रस सरकार की उपलब्धियों का बखान होगा तो वहीं दूसरी ओर उसकी कमियां भी प्रदर्शित की जाएंगी। बात कुछ भी हो, परंतु सच का सामना करना ही चाहिए। यह वास्तविकता ही कही जाएगी कि सच का सामना करने के लिए बहुत बड़ी हिम्मत की आवश्यकता होती है। द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर पर प्रतिबंध लगाने वाली कार्यवाही निश्चित रुप से कायरता पूर्ण कदम ही माना जाएगा।
कुछ वर्ष पूर्व जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे और हमें चाहिए आजादी जैसे नारे लगाए गए, तब कांगे्रस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने स्पष्ट रुप से कहा था कि सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध लगा रही है। लेकिन अब इसी अभिव्यक्ति की आजादी पर कांगे्रस का विरोध प्रदर्शन किसी भी दृष्टि से सही नहीं ठहराया जा सकता। मध्यप्रदेश में नई बनी कांगे्रस की सरकार के मुखिया कमलनाथ की सरकार ने तो द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म को प्रतिबंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है। कमलनाथ जी इस बात को भली भांति जानते ही होंगे कि डॉ. मनमोहन सिंह वास्तव में द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ही थे। उस समय के लोकसभा चुनाव परिणाम आने तक किसी को भी यह नहीं पता था कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा। इसलिए इस फिल्म के नाम में सार्थकता है। कांगे्रस के इस कदम का विरोध होने के बाद यह सफाई भी दी जाने लगी है कि मध्यप्रदेश में इस प्रकार के प्रतिबंध लगाने की सरकार की कोई योजना नहीं है। संभवत: कांगे्रस को इस बात का खटका है कि फिल्म से कहीं मनमोहन सिंह की छवि खराब न हो जाए। कांगे्रस को यह पता होना चाहिए कि किसी भी फिल्म में आपत्तिजनक दृश्यों को हटाने या नहीं हटाने का निर्णय सेंसर बोर्ड ही लेता है। अभी सेंसर बोर्ड ने कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन कांगे्रस का विरोध सेंसर बोर्ड से ऊपर हो गया है, ऐसा लगने लगा है। अगर फिल्म कानूनी तरीके से पास हो चुकी है तो फिर सरकार की जिम्मेदारी बन जाती है फिल्म को सही तरीके से चलवाने में प्रशासनिक सहयोग करें। इसके बाद भी अगर किसी को किसी पात्र के साथ नाइंसाफी लगती है तो फिर विरोध किया जा सकता है।
हम जानते ही होंगे कि इसी प्रकार की बातें पहले भी होती रही हैं। गंगा जमुना, हे राम और हैदर फिल्मों को भी भारी विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन हे राम और हैदर के समय कांगे्रस की सरकारों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी का नाम दिया था। द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म का सच भी अभिव्यक्ति की आजादी ही है। इस सच को सामने आने दीजिए। फिर राय बनाइए। अभी से कुछ भी राय बना लेना पूर्वाग्रह का संकेत करता है।

फिल्म पर विवाद क्यों?
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश में कई प्रकार के अभियान चलाए गए। यहां तक कि देश के विरोध में उठे स्वरों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दिया गया। लेकिन इस सबके बाद भी ११ जनवरी को प्रदर्शित होने वाली एक फिल्म द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर के बारे में भी विरोध में स्वर उठने लगे हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि इस फिल्म में डॉ. मनमोहन सिंह कैसे प्रधानमंत्री बने, यह सब फिल्माया गया है। राजनीतिक पृष्ठभूमि पर बनी कुछ फिल्मों को राजनीतिक दलों द्वारा विरोध करने की सामान्य परिपाटी सी भी बनी हुई है। इंदिरा गांधी के राजनीतिक चरित्र को प्रदर्शित करने वाली फिल्म आंधी को भी कांगे्रस के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी विसंगति तो यह है कि हमारे देश में सांस्कृतिक ताने-बाने को समाप्त करने वाली वैचारिक अभिव्यक्तियों को बोलने की आजादी का नाम देकर भारत विरोधी व्यक्तियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से समर्थन दिया जाता रहा है। विवादास्पद चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन ने हिन्दू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीर बनाकर भारत की आस्था और श्रद्धा पर करारी चोट पहुंचाई थी। सवाल यह है कि जब भारत की आस्था पर हमला किया जाता है या फिर फिल्मों के माध्यम से तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की जाती है तो उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दिया जाता है। कुछ समय पहले वाटर और पीके फिल्म का विरोध किया गया, लेकिन यह विरोध तर्कसंगत था। इस फिल्म में भारत की आस्था पर हमला किया गया। यह भावनात्मक विरोध था। इन फिल्मों में सच्चाई के नाम पर कुछ भी नहीं था। लेकिन द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर में पूरी सच्चाई है। फिर भी यह फिल्म विवादों के घेरे में आती जा रही है। फिल्म का नाम द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर है। इस फिल्म में दस वर्ष तक भारत के प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठने वाले डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में होने वाले घटनाक्रमों को सामने रखा गया है। इसमें यूपीए सरकार की उपलब्धियों का बखान होगा तो वहीं दूसरी ओर उसकी कमियां भी प्रदर्शित की जाएंगी। बात कुछ भी हो, परंतु सच का सामना करना ही चाहिए। यह वास्तविकता ही कही जाएगी कि सच का सामना करने के लिए बहुत बड़ी हिम्मत की आवश्यकता होती है। द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर पर प्रतिबंध लगाने वाली कार्यवाही निश्चित रुप से कायरता पूर्ण कदम ही माना जाएगा। कुछ वर्ष पूर्व जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे और हमें चाहिए आजादी जैसे नारे लगाए गए, तब कांगे्रस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने स्पष्ट रुप से कहा था कि सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध लगा रही है। लेकिन अब इसी अभिव्यक्ति की आजादी पर कांगे्रस का विरोध प्रदर्शन किसी भी दृष्टि से सही नहीं ठहराया जा सकता। मध्यप्रदेश में नई बनी कांगे्रस की सरकार के मुखिया कमलनाथ की सरकार ने तो द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म को प्रतिबंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है। कमलनाथ जी इस बात को भली भांति जानते ही होंगे कि डॉ. मनमोहन सिंह वास्तव में द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ही थे। उस समय के लोकसभा चुनाव परिणाम आने तक किसी को भी यह नहीं पता था कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा। इसलिए इस फिल्म के नाम में सार्थकता है। संभवत: कांगे्रस को इस बात का खटका है कि फिल्म से कहीं मनमोहन सिंह की छवि खराब न हो जाए। हम जानते ही होंगे कि इसी प्रकार की बातें पहले भी होती रही हैं। गंगा जमुना, हे राम और हैदर फिल्मों को भी भारी विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन हे राम और हैदर के समय कांगे्रस की सरकारों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी का नाम दिया था। द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म का सच भी अभिव्यक्ति की आजादी ही है। इस सच को सामने आने दीजिए। फिर राय बनाइए। अभी से कुछ भी राय बना लेना पूर्वाग्रह का संकेत करता है।

2 COMMENTS

  1. !! नौ सौ चूहे खा के
    बिल्ली हज को चली !!
    जब बात चोरी की ही चली
    पता चला चोरी में पूरी वंशावली मिली !!
    छल – कपट जिनके खून में समाया
    झूठी आजादी का झंडा लहराया !!
    जीप घोटाले से शुरू हुए
    आते – आते कोयला तक चबाया !!
    धन – धान से भरे देश को
    कर्जे में डुबाया !! ????
    फूट डालो राज करो की नीति बना
    कर भाई को भाई से लड़वाया !!
    रही बात चौकीदार की जन – जन
    ने मिलकर उन्हें चौकीदार बनाया !!

    सच कहूँ तो नकली गाँधी के
    पापों का घड़ा अब फूट गया !!
    जो आया गाँधी बन कर लूट गया !!
    ?????????
    !! अमित आनंद !!

    • अमित आनंद जी, बहुत सुन्दर! दरिद्र भारत की ओर से साधुवाद|

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