लालकृष्ण आडवाणी
पिछले सप्ताह नई दिल्ली की यात्रा पर एक विशिष्ट अतिथि पाकिस्तान के विदेश सचिव जलील अब्बास जिलानी आए थे। पूर्व में वह नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में काम कर चुके हैं और वह यहां मिशन के उप प्रमुख रहे हैं। श्री जिलानी, भारत में नव नियुक्त पाकिस्तानी उच्चायुक्त सलमान बशीर सहित अनेक अन्य पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ मेरे आवास पर मिलने आए। पाक अधिकारीगण लगभग एक घंटे तक वहां रहे और भारत-पाक सम्बन्धों से जुड़े अनेक मुद्दों पर खुलेपन और स्पष्टता से बातचीत हुई।
पाकिस्तानी विदेश सचिव ने भारत और पाकिस्तान के बीच सद्भावना और सम्बंधों को सामान्य बनाने में एनडीए सरकार के किए गए गंभीर प्रयासों की भरपूर प्रशंसा की। मैंने उनको कहा कि हमें सर्वाधिक ज्यादा खेद इसको लेकर है कि इस्लामाबाद मे सार्क सम्मेलन के बाद जनरल मुशर्रफ और श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान अपने देश के किसी हिस्से या अपने नियंत्रण वाले किसी क्षेत्र को भारत के विरुध्द आतंकवादी अभियानों के लिए उपयोग नहीं होने देगा-का ईमानदारी से पालन नहीं हो रहा।
मैंने उन्हें बताया कि आज पाकिस्तान में अनेक आतंकवादी संगठन सक्रिय है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आतंकवादियों के हाथों पाकिस्तान में मरने वाले लोगों की संख्या भारत में मरने वाले लोगों की संख्या से ज्यादा है। और इसलिए भारत सरकार और यहां के लोग इसके प्रति सचेत हैं कि आज इस्लामाबाद अपनी ही सीमाओं में आतंकवाद से अति सक्रियता से लड़ रहा है। लेकिन हमारे यहां यह मत है कि यद्यपि पाकिस्तान तहरीफ-ए-तालिबान-ए-पाकिस्तान जैसे आतंकवादी संगठनों से जूझ रहा है जिन्होंने पाकिस्तान को अपना निशाना बनाया हुआ है, लेकिन यह साथ ही लश्करे-तोयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों जिनका निशाना भारत बना हुआ है, को सहायता देना जारी रखे हुए है।
और इससे भी ज्यादा तकलीफदेह यह है कि आतंकवाद के मुद्दे पर हमारे बीच जारी तनाव इस तथ्य को लेकर भी है कि पाकिस्तान ने दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेनन जैसे घोषित आतंकवादियों को आज भी पाकिस्तान में सरंक्षण दिया हुआ है। यदि सऊदी अरब का अनुसरण कर पाकिस्तान दाऊद इब्राहिम को भारत को सौंप सके तो इससे पाकिस्तान के प्रति भारतीय जनमत का नजरिया रातोंरात बदल सकता है।
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11 जनवरी, 2011 को नई दिल्ली में एम.जे. अकबर की पाकिस्तान पर पुस्तक टिंडरबाक्स लोकर्पित हुई थी। वर्तमान में यह लेखक अमेरिका की यात्रा पर हैं, जहां संयोग से टिडंरबाक्स के अमेरिकी संस्करण का लोकार्पण होना है।
मुझे याद है कि गत् वर्ष भारत में जिस दिन यह पुस्तक लोकार्पित हो रही थी उसी दिन पाकिस्तान में एक जघन्य हत्या हुई। पाकिस्तान के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की उनके ही सुरक्षा गार्ड मलिक मुमताज कादरी ने हत्या कर दी। तासीर को यह कीमत एक ईसाई महिला आयशा बीबी जो वर्तमान में ईशनिंदा के आरोपों में मृत्युदण्ड की सजा काट रही, के मुखर समर्थन में बालने के कारण चुकानी पड़ी। तासीर ईशनिंदा कानून बदलने की निडरतापूर्वक वकालत कर रहे थे।
पुस्तक के आमुख में अकबर ने लिखा है:
^^ब्रिटिश भारत के मुस्लिमों ने एक सेकुलर भारत की संभावनाओं को नष्ट करते हुए जिसमें हिन्दू और मुस्लिम सह-अस्तित्व से रह सकते थे को छोड़ 1947 में पृथक होमलैण्ड चुना। क्योंकि वे मानते थे कि एक नए राष्ट्र पाकिस्तान में उनकी जान-माल सुरक्षित रहेगी और उनका मजहब भी सुरक्षित रहेगा। इसके बजाय, छ: दशकों के भीतर ही पाकिस्तान इस धरती पर सर्वाधिक हिंसक राष्ट्रों में एक बन गया है, इसलिए नहीं कि हिन्दू मुस्लिमों की हत्या कर रहे थे अपितु इसलिए कि मुस्लिम मुस्लिमों को मार रहे थे।”
उस दिन अपने अत्यन्त संक्षिप्त भाषण में एम.जे. अकबर ने उसी दिन लाहौर में घटी इस भयंकर त्रासदी का संदर्भ देते हुए कहा:
यदि सलमान तासीर भारत में होते, तो उन्हें मरना नहीं पड़ता!
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गत् सप्ताह, समाचारपत्रों में कुछ चुनींदा समाचार प्रकाशित हुए जो पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम द्वारा लिखित उनके संस्मरणों पर आधारित पुस्तक टर्निंग प्वाइंट्स से लिए गए हैं। कथित रुप से पुस्तक पर आधारित गुजरात सम्बन्धी समाचार रिपोर्टों को देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया जिसमें वाजपेयीजी को नरेन्द्र मोदी सरकार को बचाने के प्रयासों का दोषी पाया गया है! डा. कलाम की पुस्तक अभी तक रिलीज नहीं हुई है। लेकिन मैं इस पुस्तक के नवें अध्याय जिसका शीर्षक है: ”माई विज़िट टू गुजरात” को पाने में सफल हो गया हूं। डा. कलाम कहते हैं कि राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद अगस्त, 2002 में उनकी गुजरात यात्रा ”पहला महत्वपूर्ण काम” थी। वह कहते हैं:
”किसी भी राष्ट्रपति ने अभी तक ऐसी परिस्थितियों में इन क्षेत्रों का दौरा नहीं किया होगा, अनेक ने इस मौके पर राज्य की मेरी दौरे की आवश्यकता पर प्रश्नचिन्ह भी लगाए। मंत्रालय और नौकरशाही के स्तर पर यह सुझाया गया कि उस मौके पर मुझे गुजरात जाने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए। एक प्रमुख कारण राजनीतिक था। हालांकि मैंने जाने के लिए अपना मन बना लिया था और राष्ट्रपति भवन, राष्ट्रपति के रूप में मेरी इस यात्रा को सफल बनाने में पूरी तरह जुटा था। वाजपेयी ने मुझसे सिर्फ एक प्रश्न पूछा: ”क्या आपको इस समय गुजरात जाना आवश्यक लगता है?” मैंने प्रधानमंत्री को बताया, ‘मैं इसे महत्वपूर्ण कार्य मानता हूं ताकि पीड़ा मिटाने और राहत गतिविधियों को तेज करने तथा दिलों की एकता करने में कुछ काम आ सकूं जोकि मेरा मिशन है, जैसाकि अपने शपथ ग्रहण समारोह सम्बोधन में मैंने जोर भी दिया है।”
मैं अक्सर महसूस करता हूं कि भारत के राजनीतिक इतिहास में जितना सुनियोजित और घृणापूर्वक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी को बदनाम किया गया है उतना किसी और को नहीं। क्या इससे यह रहस्योद्धाटित नहीं होता कि प्रधानमंत्री द्वारा आकस्मिक पूछताछ कि ”क्या इस समय गुजरात जाना आपको आवश्यक लगता है” को लेकर नरेन्द्रभाई और गुजरात के बारे में जानबूझकर एक निंदा प्रयास किया गया कि मानों प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को गुजरात जाने से रोकना चाहते थे। डा. कलाम ने उन आशंकाओं का भी संदर्भ दिया है जो उन्होंने सुनी थीं कि उनकी यात्रा का बहिष्कार हो सकता है। डा. कलाम का अनुभव इसके उलट था। मोदी और उनकी सरकार ने उत्साहपूर्वक डा. कलाम के साथ सहयोग किया। तब भी किसी पत्रकार ने इस प्रशंसा को प्रकाशित करना जरूरी नहीं समझा!