भारत किसी का पिछलग्गू क्यों बने ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी ने आग में घी डालने का काम किया है। उसने भारत-चीन सीमा को लेकर ऐसा भड़काऊ और उकसाऊ बयान दे दिया है कि यदि भारत उस पर अमल करने लगे तो दोनों पड़ौसी देश शीघ्र ही आपस में लड़ मरें। अमेरिकी उप-विदेश मंत्री एलिस वेल्स का कहना है कि चीन अपनी बढ़ती हुई ताकत का इस्तेमाल दक्षिण चीनी समुद्र और भारतीय सीमाओं पर बहुत ही आक्रामक और उत्तेजक ढंग से कर रहा है। वैसे चीन और भारत के फौजियों की एक छोटी-मोटी मुठभेड़ मई के पहले हफ्ते में लद्दाख में हो चुकी है। लिपुलेख क्षेत्र में भारत द्वारा सड़क बनाने को लेकर नेपाल के साथ भी इन दिनों तनाव बढ़ गया है। इसके पीछे भी चीन का हाथ बताया जा रहा है।

वास्तव में भारत और चीन के बीच जो 3488 किमी की नियंत्रण-रेखा है, उस पर दोनों देशों के जवानों की मुठभेड़ें होती रहती हैं। वे कभी भूल-चूक से और कभी अत्यंत आवश्यक होने पर एक-दूसरे की सीमा में चले जाते हैं। पूरी सीमा पर 29 ऐसे स्थान हैं, जिन्हें लेकर विवाद हैं और जो सामरिक दृष्टि से नाजुक भी हैं। इस वर्ष चीनी फौजियों ने 300 बार सीमा का उल्लंघन किया है और जब 2017 में डोकलाम-विवाद छिड़ा था, तब उन्होंने 426 बार किया था। जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो वे प्रायः घटना-स्थल पर तैनात फौजी अफसरों के बीच बातचीत से हल हो जाती हैं। अभी भी दौलतबेग ओल्डी क्षेत्र में बनी भारत की सड़क को लेकर दोनों देशों में विवाद छिड़ा हुआ है। चीनियों ने उस सड़क पर तंबू तान लिये हैं और उसके पास फौजी वाहन अड़ा दिए हैं। उनका कहना है कि वह सड़क चीनी क्षेत्र में बनाई गई है। इस मुद्दे पर दोनों पक्षों की बातचीत जारी है।

कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों और विपक्षी नेताओं से जब भी मेरी बात हुई है, मैं उन्हें हमेशा भारत—चीन सीमा—विवाद का उदाहरण देता रहा हूं। मैं उनसे कहता हूं कि कश्मीर को लेकर हम युद्ध और आतंकवाद फैलाएं, इसकी बजाय भारत और चीन की तरह बातचीत क्यों न करें? लेकिन इस मामले को अमेरिका अनावश्यक तूल दे रहा है। वह चाहता है कि चीन के साथ चल रहे उसके शीतयुद्ध में भारत उसका पिछलग्गू बन जाए। डोनाल्ड ट्रंप रोज़ पानी पी-पीकर चीन को कोस रहे हैं। उनका कुछ भरोसा नहीं। वे पल में माशा और पल में तोला हो जाते हैं। वे चाहते हैं कि भारत उनकी तरह तालिबान से भी गलबहियां कर ले लेकिन भारत को अपनी विदेश नीति अपने हित-संपादन के लिए चलानी है, किसी अन्य महाशक्ति की तोप का गोला बनने के लिए नहीं। इसीलिए चाहे चीन हो या तालिबान, भारत को अपने व्यावहारिक मध्यम मार्ग पर ही टिके रहना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,708 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress