आँखों में सपने सजाकर

संग मेरे तुम चलो
आँखों में सपने सजाकर।
जिंदगी हो जाने जाँ
तुम चलो मुस्करा कर।

मुझको है विश्वास यह
तुम हमारे ही रहोगे
दुनिया बदल जाए मगर
तुम नजारों में रहोगे
तुम सितारों की रोशनी हो
चाँदनी से याराना तुम्हारा
इंद्रधनुषी छटा तुम्हारी
गुलों का रंग भी है तुम्हारा
संग मेरे तुम चलो
आँखों में सपने सजाकर।

श्वेत क्रान्ति से सुसज्जित
ऐसी नजर आती हो तुम
सरस्वती साक्षात उतरी
जैसे वीणा बजाती हो तुम
शर्म का गहना तुम्हारा
बेचैन हमको कर रहा
जैसे कोई योद्धा समर का
अस्त्रों के बिना ही लड़ रहा
संग मेरे तुम चलो
आँखों में सपने सजाकर।

मधुमास बीता बरसात बीता
तुम नहीं आए सनम
समय का परिंदा धीरे-धीरे
उड़ चला है सनम
पास आओ बैठो जरा
तुमको साँसों में बसा लूँ
शायद नसीब चमक जाए
दो पल ठहर कर देख लूँ
संग मेरे तुम चलो
आँखों में सपने सजाकर।

मेरे लिए अमरत्व हो तुम
अपरिजात हो मेरे लिए
दिल तुम्हारी बात सुनकर
है बाँवरा तुम्हारे लिए
शुभ्र चाँदनी से नहा कर
शीतलता स्वीकार कर लो
उड़कर लटें मनुहार करती
तुम भी जरा सा प्यार कर लो
संग मेरे तुम चलो
आँखों में सपने सजाकर।

समय बीता जा रहा है
कहानी हमारी है अधूरी
जख्म सब भर जाएँगे
कोई रहेगी ना मजबूरी
बस इशारा हो तुम्हारा
ख्वाहिशें सजाऊंगा
महफिलों में रंग भरकर
ख्वाबों को बरसाउँगा
संग मेरे तुम चलो
आँखों में सपने सजाकर।
© राकेश कुमार सिंह

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राकेश कुमार सिंह
जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में 15 फरवरी सन 1965 को हुआ। शिक्षा स्नातक पेशे से सिक्योरिटी ऑफिसर वाईएमसीए नई दिल्ली में कार्यरत शौकिया लेखन क्रॉउन पब्लिकेशन के द्वारा काव्य संकलन *'यादें'* इपीफैनी पब्लिकेशन के द्वारा काव्य संग्रह *तुम्हारे बिना* और स्ट्रिंग पब्लिकेशन के द्वारा *सीपियाँ*और *काव्यमंजरी* प्रकाशित। (काव्य संकलन 120 सर्वश्रेष्ठ कविताएं *दिव्या* और 200 सर्वश्रेष्ठ शायरियां साझा संकलन में सहभागिता ऑनलाइन पत्रिकाओं जैसे प्रवक्ता.कॉम, अमर उजाला.कॉम, रिटको.कॉम, योर कोटस.कॉम पर हजारों रचनाएं प्रकाशित।

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