विवेक कुमार पाठक स्वतंत्र पत्रकार
फिल्मों के शौकीनों ने पान सिंह तोमर फिल्म जरुर देखी होगी। युवा निर्देशक की इस फिल्म ने दिखाया कि किस कदर व्यवस्था ईमानदार आदमी को इंसाफ के लिए परेशान कर सकती है और सब तरफ से निराश एक अच्छे दिलेर फौजी को खेल के मैदान से बीहड़ में कूंदने को मजबूर होना पड़ता है। तिंग्माशु धूलिया की पान सिंह तोमर में इरफान खान ने मुरैना के पान सिंह तोमर की उस दो रास्तों की जिंदगी को जिया है। पान सिंह तोमर फिल्म पर्दे पर एक इंटरव्यू के जरिए फौजी पान सिंह से बागी पान सिंह तोमर की कहानी को पर्दे पर दिखाती है। फिल्म में ये इंटरव्यू मुरैना का एक देहाती पत्रकार किस तरह लेता है देखना बहुत दिलचस्प है। मुरैना के भिड़ौसा गांव से रिटायरमेंट की जिंदगी छोड़कर मजबूरन बागी हुए पान सिंह तोमर का सजीव किरदार इरफान खान जीते नजर आते हैं तो देहाती पत्रकार के रुप में मथुरा के पुराने थियेटर कलाकार ब्रजेन्द्र काला दिखते हैं। इस फिल्म में एक नामचीन बागी के सामने डरे सहमे घबराए पत्रकार के किरदार में ब्रजेन्द काला इरफान खान की अदाकारी से कदमताल करते नजर आते हैं। डकैत का इंटरव्यू लेना जीवन मरण के भंवर में कूंदना जैसा है किसी भी खबरनवीस के लिए। फिर भी पत्रकार अपने पत्रकारिता धर्म के लिए जान हथेली पर रखकर दुर्दांन्त डकैतों से लेकर माओवादियों, तस्करों व अपराधियों के साक्षात्कार लेने जाते रहे हैं। चंदन तस्कर वीरप्पन के बारे में टीवी और अखबारों में हम इसलिए पढ़ते रहे क्यांकि तमिल पत्रिका नकीरन के संपादक वीरप्पन से मिलने जंगल में जाने में जान का खौफ नहीं खाते थे।पान सिंह तोमर फिल्म में ब्रजेन्द्र काला ने डकैत के साक्षात्कार के समय अपने संवादों व भाव भंगिमा से एक डरे सहमे और घबराए पत्रकार का हाल ए दिल दिमाग गजब साकार किया है। अपनी बुसर्ट के अंदर से जब वे इंटरव्यू के लिए कॉपी निकालते समय पान सिंह तोमर के शागिर्द द्वारा कब्जे में लिए जाते हैं देखने लायक दृश्य है। डकैत पान सिंह के सामने जमीन पर बैठकर धड़ाधड़ बताया जा रहा डिक्टेशन जैसा लिखते जाना और सुध बुध खोकर उसमें रम जाना यादगार दृश्य रहा। ब्रजेन्द्र काला एक घबराए सहमे पत्रकार के किरदार और अपनी संवाद अदायगी से इरफान के सामने बराबरी से रंग जमाते दिखे। मथुरा के थियेटर से निकलकर मुंबई सिनेमा में अपने काम के बल पर ब्रजेन्द काला ने स्वतंत्र पहचान बनाई है। उनकी अदाकारी नसरुदीन शाह रघुवीर यादव, पंकज कपूर, रजत कपूर के क्लब वाली ही है। वे संवादों से कहीं अधिक अपने चेहरे, आंखें और हाव भाव से बिना शब्दों के भी अभिनय करना जानते हैं। शुभ मंगल सावधान में ही उन्हें देख लीजिए। नायिका भूमि पेंढारकर के ताउ के छोटे किरदार में वे अपना प्रभाव छोड़ गए हैं। प्रौढ़ भाइयों का मेरा तेरा वाला संवाद दिखाता है कि उम्र बढ़ती है रिस्तों में बचपना कभी बूढ़ा नहींं होता।काला पीके फिल्म में मंदिर के बाहर पीके बने आमिर खान के उलजलूल सवालों से विस्मित नजर आए थे। वे जब भी मेट, जॉली एलएलबी, शब्द सहित तमाम फिल्मों से निरंतर हिन्दी सिनेप्रेमियों की पसंद बनते जा रहे हैं। काला जल्द ही उप्र की अपराधिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म धप्पा में अपनी अदाकारी का हुनर दिखाते नजर आएंगे। वे नंद के लाल की धरती से निकले हैं सो बहुत आशा है कि वे अपनी अदाकारी में श्रीकृष्ण की विविधता भरे जीवन की तरह विविधता के साथ सिने पर्दे पर निरंतर आते रहेंगे।