अपना जब कोई बस
तस्वीर होगया……
कल तक ‘है’ था,
आज ‘था’ हो गया…….
लगता है आ जायेगा
लौटकर कहीं से भी
यहीं कहीं होगा
अग्नि को सौंपा था
जिसे कल ही,
वो कहीं कोई
सपना ही तो नहीं था!
यथार्थ को स्वीकारना
सरल तो नहीं होता
इस दौर से गुज़रता है
जब अपना ही कोई..
इक दूसरे का दर्द
सहता है हर कोई
कांधा किसी का मिला
तो आंसू निकल गये
दर्द बहते बहते
बहुत सारी शक्ति दे गये।
धुंध और बादल धीरे धीरे
छँट जायेंगे
रास्ते दुर्गम सही
दूर तक जायेंगे
उन पर राही यों ही क़दम बढ़ायेंगे।
जाने वाला तो चला गया
तस्वीर रह गई
तस्वीर पर अपने माला चढ़ायेंगे
कभी मुस्कुरायेंगे
कभी आँसू भी आयेंगे।