नारी उपभोग की वस्तु नही!

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ladyअब्दुल रशीद

16 वर्य की उम्र को शादी व्याह लायक उमर तो समाज भी सामान्य तौर पर स्वीकार नहीं करता ।बलात्कार एक अपराध है और उसे उम्र की सीमा मे बांध कर रखना बलात्कार की कोशिश को बढावा दिया जाना ही साबित होगा

नारी न तो खुबसुरत खिलौना है न ही उसका शरीर उपभोग की वस्तु।वह एक खुबसुरत बचपन है, एक बेटी है, एक बहन है,एक जीवन साथी है,एक बहु है,एक मॉं है,और बुढी दादी नानी है। सृष्टि की वह महत्वपूर्ण कड़ी है स्त्री जिसके कोंख से भविष्य जन्म लेता है और पलता है।जिस दिन यह कडी समाप्त हो जायेगी इस ब्रहमाण्ड से जीवन ही समाप्त हो जायेगा।वह सृष्टि के विकास की जड़ है और विकास क्रम के हर स्टेज पर किसी न किसी रूप मे मौजूद रहती है ।इसी लिये भारतीय संस्कृति मे नारि को आदिशक्ति कह कर पुकारा गया है।दयानन्द सरस्वती से लेकर विवेकानन्द तक ने पुरूष व नारी के संबन्धो को जेन्टील मैन व लेडीज ह्य पुरूष व स्त्रीहृ के स्थान पर ब्रदर व सिस्टरह्य भाई व बहनहृ के रूप मे स्वीकारा है।

आज के माहौल मे इस देश मे विधायक व सांसद वही व्यक्ति बन सकते हैं जो लाख अवगुणों के बाद भी करोडों की संपत्ति रखते हों।उंगलीयो पर गिने जा सकने वाले बहुत कम ही ऐसे सांसद होंगे जो करोडपति न हो कर लाखपति होंगे।आर्धिक असन्तुलन मे आम आदमी से बहुत दूर रहने वाले ऐसे लोगों को आम आदमी की जमीनी समाजिक सच्चाई से दूर दूर तक वास्ता नहीं हो पाता है।उन्हें नहीं मालुम कि भोलेभाले युवतीयों को बहला फुसला कर शारीरिक संबन्ध बना लेने की घटनाएं अब आम हो चुकी हैं।यौवन की दहलीज पर कदम रखने के करीब पहुँच चुकी अधिकांश लडकीयां दिमागी परिपक्वता के अभाव मे अबोध मानसिकता के कारण ऐसे स्थानो पर जा पहुँचती हैं या फुसला कर पहॅुंचा दी जाती हैं जहॉं मौजूद कामातुर लोगों के बलात्कार या सामुहिक बलात्कार की शिकार हो जाती रहीं हैं।दूःखद यह है कि ऐसी अबोध लडकीयां अक्सर अपने युवा दोस्तों के हवस का शिकार होती रहीं हैं।साक्षरता की भाषा मे 16 वर्ष की उमर बारहवीं कक्षा की उम्र मानी गयी है।इस उम्र मे अपने भले बुरे का परिपक्व सोच बन जाना लगभग असम्भव होता है।आजकल के खानपान और प्रदूषित वातावरण के कारण लडकीयां शारीरिक रूप से भले ही जल्दी विकसित हो जा रही हों परन्तु यह जरूरी नही कि उनका मानसिक विकास भी उसी अनुपात मे हो रहा हो।

इस देश की प्राचीन चिकित्सा पद्वति आयुर्वेद के ग्रन्थों मे 12 से 13 वर्ष के बीच नवयुवतीयों मे मासिकधर्म “एमसी” आने की बात कही है जो आज हजारों साल बाद भी उसी उम्र मे युवतीयों को होता आ रहा है.। पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान भी इसी तत्थ को स्वीकार करता है।16 वर्षीय बाला को प्राचीन सहित्य मे नवयौवना कहा गया है स्पष्ट है कि यह यौवन के पूर्व की अवस्था है।इस कच्ची उमर मे होते शादी विबाह को चिकित्सीय और समाजिक रूप से

गलत मानते हुए बाल गंगाधर तिलक ने बालविबाह रोकने की सफल मुहिम छेडी. थी।इस उमर की लडकीयों को बहला फुसला कर भगा ले जाने वाला व्यक्ति 16 वर्ष का कानुन बन जाने पर पकडे जाने पर छूट सकता है क्यों कि तार्किक रूप से वह सिद्ध कर सकता है कि उसकी सहमति से भगा कर उससे वह संबन्ध बनाया है। अतः बालिग होने की 18 साल उमर जिस उम्र मे ड्राईविंग लाईसेंस व वोट देने का अधिकार दिया गया है वही उम्र सेक्स सहमति के लिये रखा जाना चाहिए।

आवाम के बढते जा रहे दबाव और राजनैतिक दबाव के कारण शायद 16 साल उम्र कि सीमा शायद बदल भी जाए लेकिन एक अहम सवाल का जवाब जनता जरूर जानना चाहेगी की क्या स्त्री पुरुष को बराबरी का दर्जा देने का ढोंग करने वालों के मन में आखिर नारी का सम्मान है भी या नहीं?

 

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